अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: पीपीपी के भरोसे कितनी टिकेगी पीएम गति शक्ति?
By अरविंद कुमार | Published: February 2, 2022 10:02 AM2022-02-02T10:02:53+5:302022-02-02T10:05:08+5:30
आम बजट में रेलवे को समाहित किया गया था तो कहा गया था कि भारतीय रेल आधुनिकीकरण और सुरक्षा पहलुओं पर अधिक ध्यान दे सकेगी. हालांकि अब हो उल्टा रहा है. सरकारी मदद की बजाय इसे निजी क्षेत्र के हवाले करने की तैयारी है.
संसद में वर्ष 2022-23 का आम बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के पूरे परिवहन तंत्र को पीएम गति शक्ति के इर्दगिर्द समेट दिया है. इसकी राष्ट्रीय मास्टर योजना में सड़क, रेल, वायु परिवहन, बंदरगाह, जलमार्ग और लॉजिस्टिक ढांचों को एक साथ जोड़कर एक महत्वाकांक्षी तानाबाना बुना जा रहा है.
इसे सात इंजन बताते हुए इसी के तहत रेलवे को भी समाहित कर लिया गया है. इससे यह साबित होता है तो 2017 तक जो भारतीय रेल आजाद भारत में अलग बजट के साथ अलग हैसियत रखते हुए भारत की जीवन रेखा बनी हुई थी, उसकी हैसियत अब बदल चुकी है. अभी भी वह सबसे अहम सरकारी महकमा होने के बावजूद एक नए रास्ते पर चल चुकी है और पीपीपी आने वाले सालों में इसकी योजनाओं का भाग्यविधाता होगा, जिसमें तेज रफ्तार की गाड़ियों के संचालन से लेकर माल ढांचे में निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका होगी.
परिवहन के सारे साधनों को समाहित करने की सोच नई नहीं है लेकिन पीएम गति शक्ति की योजना और विचार अलग है. इसमें 2022-23 में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क में 25 हजार किमी जुड़ेगा. ऐसा बेशक निजी क्षेत्र की मदद से होगा तो रेलवे की कुल माल परिवहन में हिस्सेदारी घटेगी और कुल मिलाकर रेलवे कमजोर होगा. सरकार ने योजना बनाई है कि छोटे किसानों तथा लघु उद्यमों के लिए वह नए उत्पाद और कार्यकुशल लॉजिस्टिक सेवाएं विकसित करेगा.
साथ ही एक स्थान एक उत्पाद की अवधारणा को लोकप्रिय बनाएगा. साथ ही आत्मनिर्भर भारत के तहत 2022-23 में 2000 किमी नेटवर्क को कवच के दायरे में लाया जाएगा जो विश्वस्तरीय देसी टेक्नोलॉजी है.
अगले तीन वर्षो के दौरान 400 नई पीढ़ी की वंदे भारत रेलगाड़ियों को चलाने की भी सरकार की योजना है लेकिन यह आम रेल यात्रियों के लिए खास कारगर नहीं होने वाली है. असली दिक्कत सबसे बड़ी तादाद वाले उन मुसाफिरों की है जो गैर वातानुकूलित श्रेणी से आते हैं. अभी भी उनके लिए सुविधाओं की भारी कमी है.
अगले तीन सालों में मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक सुविधाओं के लिए 100 पीएम गतिशक्ति कार्गो टर्मिनल तैयार होगा. पीपीपी पद्धति में चार स्थानों पर मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक पार्क आरंभ करने के साथ राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम भी चलाने की योजना है.
वैसे तो 2020-2021 का आम बजट प्रस्तुत करते समय वित्त मंत्नी सीतारमण ने संकेत दिया था कि भारतीय रेल के उद्धार का सहारा पीपीपी ही रह गया है. इसीलिए स्टेशनों के पुनर्विकास की चार परियोजनाओं और 150 यात्री गाड़ियों का प्रचालन पीपीपी मॉडल पर करने का ऐलान हुआ था.
2017-18 में आम बजट में रेलवे को समाहित किया गया था तो कहा गया था कि भारतीय रेल आधुनिकीकरण और सुरक्षा पहलुओं पर अधिक ध्यान दे सकेगी. रेलवे की वित्तीय जरूरतों के प्रति वित्त मंत्रालय उत्तरदायी होगा. लेकिन हो उलटा रहा है. सरकारी मदद की जगह उसे निजी क्षेत्र के हवाले किया जा रहा है.