'मुल्क' मुस्लिम-सेक्युलर-लिबरल लोगों के वर्तमान सेंटीमेंट्स को भुनाने की बेहद सतही कोशिश है

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 14, 2018 02:25 PM2018-08-14T14:25:02+5:302018-08-14T15:56:05+5:30

शाहिद की माँ और परिवार की देशभक्ति इस बात से साबित हुई कि उन्होंने डेडबॉडी लेने से इनकार कर दिया, क्या इस तरह हम अपने राह भटके बच्चों के लिए मेनस्ट्रीम में वापसी सारे रास्ते बंद कर देने वाले हैं?

Mulk audiance review: Superficial attempt to redeem the current Sentiments of the Muslim-Secular-Liberal | 'मुल्क' मुस्लिम-सेक्युलर-लिबरल लोगों के वर्तमान सेंटीमेंट्स को भुनाने की बेहद सतही कोशिश है

फिल्म के एक दृश्य में मुख्य किरदार निभा रहे ऋषि कपूर

-ज्योत्सना कुमारी

'पिंक' देख कर गुस्सा आया था कि तीन पढ़ी लिखी आत्मनिर्भर लड़कियों को अपने आप को सही साबित करने के लिए एक पागल सनकी से बूढ़े 'पुरुष' की जरूरत थी। ठीक वही गुस्सा आज ये फ़िल्म देखते हुए भी आया कि तमाम समझदार पढ़ा-लिखा इज्जतदार वकील का ऐसा परिवार जिसका बेटा लन्दन में बिजनेस करता है, जब मुसीबत में फंसे तो उनकी 'हिन्दू' बहू ही उनकी 'knight with shining armour' बनती है। 

लखनऊ के होटल के कमरे में टीवी के सामने खोये-खोये से बैठे थे, तभी एक ट्रेलर सामने से गुजरा और लगा कि ये फ़िल्म तो देखनी पड़ेगी। काफी क्रिटिक्स और दर्शकों ने इसे बेहद उम्दा और समय की जरूरत के हिसाब की फ़िल्म बनी और दिलदारी से 4-5 सितारे भी दिए, तो तय रहा कि इसके लिए वक़्त निकालना तो बनता है।

पर इस फ़िल्म को जितना बेहतर और मजबूत बताया गया है, हमारे सामने फ़िल्म उतनी ही कमजोर साबित हुई। कहानी, फिल्मांकन और संवाद अदायगी यहाँ तक कि कैमरा एंगल के तौर पर भी। ऐसा लगा कि फ़िल्म में एक सेंसिटिव इशू उठा तो लिया गया पर कहानी सिर्फ उस इशू में उलझी रही खुद में कही बिखर गई।

पटकथा पर काफी काम करने की जरूरत थी, जिस लड़के ने इंटर-रिलीजियस शादी करने की हिम्मत दिखाई उसकी आँखों में अपनी बीवी के लिए कभी प्यार दिखा ही नहीं। और बवाल इस बात पर की बच्चों के पैदा होने से पहले उन का धर्म तय हो! घर की तमाम महिलाएं सिर्फ हंसने मुस्कुराने और जार-जार रोने के लिए थीं।

और सबसे हार्ट-ब्रेकिंग काम तो तापसी पन्नू ने वकील बन के कर दिया। कोई अपने रोल में इतना इंकनवेंसिंग कैसे लग सकता है। प्रोसेक्यूशन ने लगातार 'शाहिद' को 'शहीद' बोला, कोई ऑब्जेक्शन नहीं।

शाहिद की माँ और परिवार की देशभक्ति इस बात से साबित हुई कि उन्होंने डेडबॉडी लेने से इनकार कर दिया, क्या इस तरह हम अपने राह भटके बच्चों के लिए मेनस्ट्रीम में वापसी के सारे रास्ते बंद कर देने वाले हैं?

और हमारी पुलिस या न्याय व्यवस्था यही है, मिडल और लोअर क्लास के लिए- एक मामूली पॉकेट मारी के केस में पुलिस आरोपी के पूरे खानदान को थाने में बिठाती है कि नहीं!

ये फ़िल्म सिर्फ वर्तमान समय में मुस्लिम समुदाय, और तमाम सेक्युलर लिबरल लोगों के सेंटीमेंट्स को भुनाने की बेहद सतही कोशिश तो करती है पर सही तौर पर वो भी नही कर पाती है।

(ज्योत्सना उत्तर प्रदेश में अध्यापिका के तौर पर कार्यरत हैं)

Web Title: Mulk audiance review: Superficial attempt to redeem the current Sentiments of the Muslim-Secular-Liberal

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