15 करोड़ भारतीय ड्राइवर में सिर्फ 8,000 चाहते हैं इलेक्ट्रिक कार, न पसंद करने वालों की ये है बड़ी वजह
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 6, 2019 12:07 PM2019-10-06T12:07:24+5:302019-10-06T12:07:24+5:30
फाइनेंस क्षेत्र में काम करने वाले 40 साल की निधि महेश्वरी अपने बच्चों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी बनाने और उनमें पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी विकसित करने के लिये इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदना चाहती हैं। जब ह्युंडई ने कोना लॉन्च किया तो उन्होंने ऑर्डर भी कर दिया लेकिन उनके मुताबिक चीजें हो नहीं पाई।
ह्युंडई मोटर कंपनी ने कुछ महीनों पहले ही भारत की पहली इलेक्ट्रिक SUV कार 'कोना' लॉन्च किया। इसके लिये कंपनी ने टीवी पर "ड्राइव इनटू द फ्यूचर" टैग लाइन दिया। इलेक्ट्रिक कार लॉन्च करने के कुछ ही महीनों बाद ह्युंडई इस सेगमेंट में कंपनी खुद को अकेला पाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग 15 करोड़ लोग कार चलाते हैं लेकिन ह्युंडई कंपनी अगस्त तक डीलर्स को सिर्फ 130 कोना ही बेच पाई। अब वहां से कितने लोगों ने खरीदा और कितनी कारें अभी शोरूम पर ही हैं इसकी जानकारी फिलहाल नहीं मिल सकी है।
इलेक्ट्रिक कार को लेकर लोगों का यह रूखा रवैया कार निर्माता कंपनियों को निराश कर रहा है। ह्युंडई कोना की कीमत लगभग 35 लाख रुपये है। जबकि एक आम भारतीय लगभग 10-12 लाख रुपये सालाना कमाता है। फिर भी लोग इलेक्ट्रिक व्हीकल को लेकर भारत में रुचि क्यों नहीं दिखा रहे हैं। इस चर्चा में निकलकर आया कि यहां चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, कार खरीदने के लिये बैंकों से लोन न मिलना, इलेक्ट्रिक कारों को लेकर सरकारी विभागों का रुचि न दिखाना प्रमुख कारण हैं।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 6 सालों में मुश्किल से 8,000 इलेक्ट्रिक गाड़ियां बेची गई वहीं चाइना में 2 दिन में इससे ज्यादा गाड़ियां बेंची जाती हैं। मारुति के चेयरमैन आर सी भार्गव का कहना है कि भारत में अभी इलेक्ट्रिक कार खरीदने का सामर्थ्य नहीं है। उनका कहना है कि अभी अगले 2-3 साल इलेक्ट्रिक गाड़ियों की खरीद में तेजी आने की उम्मीद कम है।
दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक भारत में सरकार के चार साल के प्रयास के बाद भी इलेक्ट्रिक वाहन सेगमेंट में तेजी नहीं दिख रही है। हालांकि भारत के इलेक्ट्रिक व्हीकल बाजार को इग्नोर नहीं किया जा सकता। यहां प्रति हजार व्यक्ति में केवल 27 लोगों के पास कार है वहीं जर्मन लोगों में प्रति हजार लोगों में 570 लोगों के पास कार है।
बड़ी कार निर्माता कंपनी जहां लोकल स्तर पर हर दूसरी कार मारुति की है वह अभी अगले साल तक भी कोई इलेक्ट्रिक कार लॉन्च करने की तैयारी में नहीं है। टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा कुछ इलेक्ट्रिक कार बनाते हैं लेकिन उनके पास एक लिमिटेड रेंज है या फिर जो कारें उन्होंने बनाई हैं वो सिर्फ सरकार के इस्तेमाल के लिये। इस मामले में ह्युंडई की कोना पहले नंबर पर है जहां 2040 तक नई कारों की बिक्री के मामले में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 28 प्रतिशत हो सकती है। ये आंकड़े BNEF के मुताबिक हैं।
एशिया की तीसरी सबसे बड़ी ईकोनॉमी भारत में सिर्फ ह्युंडई ही नहीं बल्कि ब्रिटिश कार निर्माता MG मोटर और जापान की निसान मोटर विस्तार करने के बारे में सोच रहे हैं। एमजी मोटर के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव चाबा ने कहा किसी को तो नेतृत्व लेना पड़ेगा। एमजी मोटर दिसंबर तक एक इलेक्ट्रिक एसयूवी लॉन्च करने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा शुरुआत धीमी होगी, एमजी मोटर्स शुरुआती दौर में महीने में 100 कार बेचने पर भी संतुष्ट होगी। चाबा ने कहा हमें कहीं से शुरुआत करनी होगी।
फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएसन के वॉइस प्रेसिडेंट विंकेश गुलाटी 80 प्रतिशत ऑटोमोबाइल डीलर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में पिछले साल बेची गई कुल पैसेंजर व्हीकल में आधे से अधिक गाड़ियों की कीमत 5-6 लाख और इससे कम है। ये बातें BNEF के मुताबिक हैं। इलेक्ट्रिक गा़ड़ियों के साथ एक परेशानी ये भी है कि इनकी कीमत में वर्तमान पेट्रोल-डीजल गाड़ियों से बहुत अंतर है। और यह 2030 तक आसपास पहुंच सकता है।
विंकेश का कहना है कि लोगों में इलेक्ट्रिक वाहन को लेकर उत्सुकता है लेकिन जब उन्हें उसकी कीमत बताई जाती है तो वो वहीं रुक जाते हैं। यहां तक कि जो ह्युंडई की कार कोना को खरीदने में सक्षम हैं उनके साथ चार्जिंग जैसी प्रमुख जरूरत को लेकर समस्या है।
फाइनेंस क्षेत्र में काम करने वाले 40 साल की निधि महेश्वरी अपने बच्चों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी बनाने और उनमें पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी विकसित करने के लिये इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदना चाहती हैं। जब ह्युंडई ने कोना लॉन्च किया तो उन्होंने ऑर्डर भी कर दिया लेकिन उनके मुताबिक चीजें हो नहीं पाई। क्योंकि इलेक्ट्रिक कार को चार्ज करने के लिये जब उन्होंने अपने अपार्टमेंट के बेसमेंट में चार्जिंग प्वाइंट लगवाना चाहा तो वहां रहने वाले लोगों ने आग लगने का खतरा जताते हुये इसे नहीं लगाने दिया। क्योंकि वहां बाकी लोगों की कार भी खड़ी होती हैं और उसी बिल्डिंग में लोग ऊपर रहते भी हैं। ह्युंडई इंजीनियर और फायर डिपार्टमेंट के समझाने के बाद कि यह सुरक्षित है लोगों ने नहीं माना।
ये अलग बात है कि कंपनियां कई तरह का चार्जिंग विकल्प देती हैं। लेकिन जो साधारण पोर्टेबल चार्जर होता है वह कार को चार्ज करने में 19 घंटे का समय लेता है। भारत में जहां सरकार के वादों के मुताबिक कुछ सौ ही चार्जिंग स्टेशन डेवलप करने की बात की जाती रही है वहीं चीन में लाखों की संख्या में चार्जिंग स्टेशन हैं।