ब्लॉग: नीतियों की कई नावों पर पैर रखने से नुकसान

By राजेश बादल | Published: April 24, 2024 11:33 AM2024-04-24T11:33:02+5:302024-04-24T11:33:06+5:30

चीन की अनेक परियोजनाएं पाकिस्तान में अटकी हुई हैं और वह पाकिस्तान के अमेरिका प्रेम से चिढ़ा हुआ है। घबराए पाकिस्तान ने अब ईरानी राष्ट्रपति के पाकिस्तान में रहते हुए इजराइल को भी प्रसन्न करने की कोशिश की है और शिया संगठन जैनेबियोन ब्रिगेड को आतंकवादी समूह घोषित कर दिया है।

Disadvantages of stepping on many boats of policies | ब्लॉग: नीतियों की कई नावों पर पैर रखने से नुकसान

ब्लॉग: नीतियों की कई नावों पर पैर रखने से नुकसान

अपनी विदेश नीति से भटकाव का खामियाजा इन दिनों दुनिया के अधिकतर देश भुगत रहे हैं। आपसी संबंधों का आधार इंसानी रिश्तों के बुनियादी मूल्य और सिद्धांत नहीं रह गए हैं। वे अब आर्थिक धुरी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। इसलिए विकसित विश्व के सभी राष्ट्रों को अपनी परंपरागत विदेश नीति छोड़नी पड़ रही है। वे तात्कालिक हितों के मद्देनजर रिश्तों की प्राथमिकताएं तय कर रहे हैं।

परिणाम यह हुआ कि वे अपने बनाए जाल में ही उलझ गए हैं। कुछ मामलों के माध्यम से इसे समझना हो तो हिंदुस्तान के पास-पड़ोस से ही बेहतरीन नमूने पर्याप्त होंगे। ताजा उदाहरण पाकिस्तान का है। भारत से शत्रुतापूर्ण नजरिया उसकी सारी नीतियों का स्थाई भाव है। इसे केंद्र में रखते हुए वह जब शेष विश्व से संबंध स्थापित करने की कोशिश करता है तो अपने ही जाल में और फंसता जाता है। ईरान, अमेरिका, चीन और रूस के साथ उसके संबंध इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

ईरान और पाकिस्तान बीते अनेक वर्षों से तनावपूर्ण रिश्तों के साथ जी रहे हैं। यहां तक कि वे एक-दूसरे की सीमा में जाकर मिसाइल जंग भी कर चुके हैं। ईरान कहता है कि बलूचिस्तान से सटे उसके इलाकों में पाकिस्तान हिंसा और आतंक को पनाह देता है। इसके उलट पाकिस्तान का भी कुछ ऐसा ही आरोप है। यह दोनों देशों के बीच स्थायी समस्या है और इसका व्यावहारिक हल फिलहाल तो नहीं दिखता।

जब तक पाकिस्तान बलूचिस्तान नाम के देश को अपने से अलग नहीं हो जाने देता, तब तक समाधान का रास्ता नहीं मिलेगा, पर सवाल है कि पाकिस्तान ऐसा क्यों होने देगा? दोनों देशों के बीच स्थायी बैर भाव बनाए रखने वाला मुख्य कारण मजहबी है। पाकिस्तान अपने यहां शिया मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करता है और ईरान शिया बाहुल्य मुल्क है।

सऊदी अरब से ईरान के रिश्ते अच्छे नहीं होने का यह बड़ा कारण है और सऊदी को पाकिस्तान से जोड़ने वाली वजह सुन्नी मुसलमान हैं। भारत और ईरान के बीच स्वाभाविक मैत्री की वजह यह भी है कि ईरान के बाद गैरमुस्लिम देशों में शियाओं की सर्वाधिक आबादी भारत में है। यह करीब सवा करोड़ है।

अब दिलचस्प है कि ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी तीन दिन के लिए पाकिस्तान में हैं। पाकिस्तान ने उनका शानदार खैरमकदम किया। चंद रोज पहले इजराइल ने अपने हमले में ईरान का वायुसेना केंद्र और उसका एस-300 मिसाइल मारक तंत्र ध्वस्त करने का दावा किया था। ईरान ने इसका खंडन नहीं किया है।

अब उसे मिसाइल तंत्र विकसित करने के लिए फौरन किसी सक्षम देश की मदद चाहिए। पड़ोसियों में केवल पाकिस्तान ही उसे यह सहायता दे सकता है. भारत और इजराइल के बेहतरीन रिश्तों के चलते भारत से उसे मदद नहीं मिल सकती थी और रूस-यूक्रेन युद्ध में उलझा है. वहां से भी कोई आशा ईरान नहीं कर सकता था. पाकिस्तान के इसमें दो स्वार्थ हैं। एक तो उसकी दिवालिया हो रही अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा और दूसरा ईरान से बलूचिस्तान के ग्वादर तक अरबों डॉलर की गैस पाइप लाइन का काम कम खर्च में पूरा हो जाएगा।

पाकिस्तान के इस कदम से अमेरिका भन्नाया हुआ है।उसने ईरान पर बंदिशें लगा रखी हैं। गैस पाइपलाइन परियोजना पर वह पाकिस्तान को पहले ही गंभीर चेतावनी दे चुका है। अमेरिकी खुफिया विभाग ने जब पाकिस्तान और ईरान के बीच मिसाइल मित्रता के प्रति आगाह किया तो अमेरिका और आगबबूला हुआ। उसने पाकिस्तान और चीन को तगड़ा झटका दिया. बेलारूस की एक और चीन की तीन कंपनियों पर पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम को सहायता देने के आरोप में बंदिश लगा दी है। पहले भी वह पाकिस्तान की तेरह और चीन की तीन कंपनियों पर बंदिश लगा चुका है।

उसे संदेह है कि पाकिस्तान ईरान को गुपचुप मिसाइल तकनीक और अन्य सहायता दे रहा है। अमेरिका ने अपनी ओर से एक तथ्य पत्र भी जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ये कंपनियां लंबी दूरी तक मार करने वाली पहली श्रेणी की बैलिस्टिक मिसाइल के निर्माण में पाकिस्तान को मदद दे रही थीं इसलिए अमेरिका अपने प्रभाव क्षेत्र में इन कंपनियों की संपत्ति राजसात कर लेगा। अमेरिका ने इशारा किया है कि यदि पाकिस्तान जिद पर अड़ा रहा तो वह पाकिस्तान को भी प्रतिबंध के दायरे में ले लेगा। इससे पाकिस्तान के हाथ-पैर फूले हुए हैं। अमेरिकी सहायता नहीं मिली तो उसकी प्राणवायु अवरुद्ध होने की आशंका है।

चीन वैसे भी अब पाकिस्तान के रवैये से तंग आ चुका है। कर्ज के रूप में उसका धन पाकिस्तान में फंसा हुआ है। पाकिस्तान उसे चुकाने की स्थिति में नहीं है। चीन की अनेक परियोजनाएं पाकिस्तान में अटकी हुई हैं और वह पाकिस्तान के अमेरिका प्रेम से चिढ़ा हुआ है। घबराए पाकिस्तान ने अब ईरानी राष्ट्रपति के पाकिस्तान में रहते हुए इजराइल को भी प्रसन्न करने की कोशिश की है और शिया संगठन जैनेबियोन ब्रिगेड को आतंकवादी समूह घोषित कर दिया है। यह संगठन इजराइल और अमेरिका का कांटा है। अमेरिका पांच साल पहले इस समूह पर पाबंदी लगा चुका है। माना जाता है कि यह उग्रवादी संगठन ईरान के इशारे पर काम करता है।

पाकिस्तान का उदाहरण यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि बिना किसी दूरगामी विदेश नीति के कोई देश अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में साख नहीं बना सकता। तात्कालिक हितों के लिए नीति में फेरबदल से न तो मुल्क का भला होता है और न ही वह अपनी समस्याओं से मुक्ति पा सकता है। यही बात अमेरिका पर लागू होती है और ईरान पर भी इजराइल पर भी और रूस पर भी इन देशों के हालिया नजरिये को देखें तो पाते हैं कि सभी अपने-अपने चक्रव्यूह में घिरे हैं और बाहर निकलने का रास्ता आसान नहीं है। 

Web Title: Disadvantages of stepping on many boats of policies

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