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सूडान में तख्तापलट का अर्थ क्या है और शेष दुनिया को क्यों कदम उठाने की आवश्यकता है: व्याख्या

By भाषा | Updated: October 29, 2021 13:00 IST

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सिडनी, 29 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) सूडान में लोकतांत्रिक व्यवस्था के आने और जाने का एक लंबा इतिहास रहा है और हालिया सैन्य तख्तापलट भी उसी का एक हिस्सा है जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक छोटे से काल का अचानक और निरंकुश अंत हो गया।

अतीत के बरखिलाफ इस बार सूडान में काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। देश में न केवल शांति और सुरक्षा खतरे में है, बल्कि वृहद क्षेत्र की सुरक्षा भी आंच आने का डर है क्योंकि इसमें ऐसे खतरनाक और परस्पर असंगत स्वार्थ उभर कर आए हैं, जो देश को अपने हिसाब से अपनी दिशाओं में ले जाना चाहते हैं।

उमर अल बशीर की नेशनल कांग्रेस पार्टी सरकार के 2019 में गिरने से 30 साल के निरंकुश शासन का अंत हो गया था, लेकिन इसका यह भी अर्थ था कि इस अवधि के बाद की गतिविधियों का ध्यान से प्रबंधन करने की आवश्यकता थी। केवल शांति और न्याय ही दांव पर नहीं था, बल्कि देश की पहचान भी दांव पर थी।

सूडान कट्टर इस्लामी तत्वों, अनौपचारिक और औपचारिक सशस्त्र बलों, राजनीतिक दलों, ढेर सारे समूहों और सशस्त्र मिलिशिया में विभाजित हो गया था। ये सभी सूडान के लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।

बशीर को पदस्थ करने के पश्चात संक्रमणकालीन सरकार के पास न केवल एक वित्तीय संकट से जूझ रहे देश का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी थी, बल्कि उसे यह काम सत्ता के बंटवारे की बेहद मुश्किल व्यवस्था के साथ करना था। सेना को 21 महीने की अवधि के लिए शासन करना था, जिसके बाद असैन्य समूह को शेष 18 महीने शासन करना था और 2023 में चुनाव होने थे।

इस व्यवस्था के भंग होने से अब प्रतिद्वंद्वी समूहों एवं प्रतिष्ठानों के बीच संघर्ष शुरू होगा, जिन्हें अपने-अपने हितों की रक्षा करनी हैं और उनके ये हित सूडान की सीमाओं से परे के क्षेत्रों को भी प्रभावित करते हैं तथा दुनिया भर के अन्य प्रमुख संघर्षों से जुड़ते हैं।

सूडान के साथ सहानुभूति रखने वालों में इस्लामवादियों में उमर अल-बशीर की नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के पूर्व सदस्य और देश में इस्लामी चरमपंथ विचारक हसन अल-तुराबी की पॉपुलर कांग्रेस पार्टी (पीसीपी) शामिल हैं।

सूडान के इस्लामवादियों को कतर-तुर्की गठबंधन का समर्थन हासिल है। उनके ईरान और सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी सदस्य देशों के साथ (कम से कम क्रांति तक) कभी अच्छे और कभी खराब संबंध रहे हैं।

कई इस्लामवादियों को क्रांति के बाद जेल में बंद कर दिया गया या इनमें से कई छिप गए। वे अब खुद को संप्रभुता परिषद के सैन्य गुट से हारा हुआ पाते हैं, जिसने इस सप्ताह के तख्तापलट की शुरुआत की थी।

इस गुट में दो मुख्य हस्तियां हैं : सूडान सशस्त्र बलों (एसएएफ) के जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान और मोहम्मद हमदान ‘हेमेदती’ डागोलो के नेतृत्व में रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ)।

यह गुट राजनीतिक रूप से व्यावहारिक है, लेकिन यह उतना ही खतरनाक है और सूडान को नियंत्रित करने की अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण आंतरिक रूप से बंटा हुआ है। अल-बुरहान को दारफुर में हुए नरसंहार के लिए जिम्मेदार बताया जाता है।

हेमेदती खार्तूम में तीन जून 2019 को हुए नरसंहार के साथ-साथ दारफुर के जेबेल आमेर में सोने के अवैध खनन संबंधी कार्यों के लिए जिम्मेदार है। हालिया वर्षों में आरएसएफ को मिस्र, सऊदी अरब और यूएई का समर्थन मिला है। हेमेदती ने अपने आरएसएफ लड़ाकों को सऊदी अरब की ओर से यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने के लिए भेजा था।

सैन्य गुट के पास ‘मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन’ और अल-जुनैद जैसी कई कंपनियों की हिस्सेदारी है, जिससे उसे कई माध्यमों से अवैध आय मिलती है। उसे यह आय सोने के अनियमित खनन, निर्माण, तेल, विमानन और हथियारों के सौदे से मिलती है।

इनमें से बड़ी रकम सरकारी खजाने में न जाकर विदेशों में निजी खातों में जाती है। यह राजस्व सरकार के सैन्य पक्ष को आर्थिक रूप से अजेय बनाता है और यही असैन्य सरकार को कमजोर करता है।

ऐसी स्थिति में सरकार के संकटग्रस्त असैन्य पक्ष के समक्ष एक असंभव कार्य है। यह पक्ष वित्तीय आधार पर सैन्य गुट या उसके विदेशी सहयोगियों को हरा नहीं सकता।

सूडान के नागरिक सैन्य जुंटा के खिलाफ असैन्य प्रतिरोध का एक साहसी अभियान चला रहे हैं। यह संभव है कि वे सेना को हुए लाभ को पीछे धकेल सकते हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए अल-बुरहान और हेमेदती का समर्थन करने वाले देशों पर महत्वपूर्ण राजनयिक दबाव बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा अवैध राजस्व के माध्यमों की फोरेंसिक जांच पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने की कोशिश कमजोर पड़ती है।

हमने हाल के संकटों से सीखा है कि राष्ट्र निर्माण कठिन कार्य है, लेकिन इसका विकल्प और भी भयावह है। सूडान के लिए यह दुःस्वप्न निकट आ रहा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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