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अमेरिका ने बताया, सिंगापुर के नागरिक ने चीन के लिए जासूसी करने का जुर्म कबूला

By भाषा | Updated: July 25, 2020 14:32 IST

अमेरिका ने बताया है कि सिंगापुर के एक नागरिक ने चीन का जासूस होने का जूर्म कबूल किया है। याचिका के अनुसार येओ ने 2015 में चीनी खुफिया अधिकारी के साथ काम करना शुरू किया और पहले इनका निशाना एशिया के देश थे बाद में इन्होंने अमेरिका पर ध्यान केन्द्रित किया। 

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ठळक मुद्देअमेरिका के न्याय मंत्रालय ने कहा कि सिंगापुर के एक नागरिक ने चीन का जासूस होने का जुर्म स्वीकार कर लिया है। चीनी सरकार ऐसे अमेरिकियों से संवेदनशील जानकारी जुटाने के लिए छल कपट का जाल बुनती है।

वाशिंगटन: अमेरिका के न्याय मंत्रालय ने कहा कि सिंगापुर के एक नागरिक ने चीन का जासूस होने का जुर्म स्वीकार कर लिया है। सिंगापुर के नागरिक जुन वेई येओ उर्फ डिक्सन येओ ने अमेरिका के भीतर विदेशी ताकत का अवैध एजेंट होने के जुर्म को स्वीकार करने वाली याचिका दाखिल की। न्याय मंत्रालय की राष्ट्रीय सुरक्षा इकाई के लिए अमेरिका के सहायक अटॉर्नी जनरल जॉन सी डेमर्स ने कहा कि चीनी सरकार ऐसे अमेरिकियों से संवेदनशील जानकारी जुटाने के लिए छल कपट का जाल बुनती है जिन पर किसी तरह का संदेह नहीं होता।

डेमर्स ने कहा,‘‘ येओ भी एसी ही एक योजना के केन्द्र में था और करियर नेटवर्किंग साइट और फर्जी कंसल्टिंग साइट के जरिए ऐसे अमेरिकी नागरिकों को फंसाता था जो चीन की सरकार के काम आ सकते हों। यह अमेरिकी समाज के खुलेपन का फायदा उठाने के चीन की सरकार के उत्पीड़न का एक और उदाहरण है।

’’ कोलंबिया के कार्यवाहक अमेरिकी अटॉर्नी माइकल आर शेरविन ने कहा कि जुर्म कबूलने की याचिका उन तारीकों को रेखांकित करती है जिनका इस्तेमाल चीनी सरकार संवेदनशील सरकारी सूचनाओं तक पहुंच रखने वाले अमेरिकियों को अपना शिकार बनाने के लिए लगातार कर रही है।

इनमें इंटरनेट और चीन के बाहर के नागरिकों का इस्तेमाल करना शामिल है और ये ऐसे अमेरिकों का इस्तेमाल करते हैं जो कभी अमेरिका से बाहर नहीं जाते। एफबीआई वाशिंगटन फील्ड ऑफिस के सहायक निदेशक प्रभारी टिमोथी आर स्लेटर ने कहा कि येओ ने स्वीकार किया कि उन्होंने न केवल चीनी खुफिया विभाग को अहम जानकारियां दी, बल्कि उसने अमेरिका में भी इस काम के लिए लोगों को जानबूझकर भर्ती किया।

याचिका के अनुसार येओ ने 2015 में चीनी खुफिया अधिकारी के साथ काम करना शुरू किया और पहले इनका निशाना एशिया के देश थे बाद में इन्होंने अमेरिका पर ध्यान केन्द्रित किया। 

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