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UNGA:भारत ने 'राइट टू रिप्लाई' का प्रयोग कर पाकिस्तान को दिया ये करारा जवाब

By स्वाति सिंह | Updated: September 30, 2018 11:41 IST

Eenam Gambhir, India's First Secy in Permanent Mission of India to UN at UNGA: इनम गंभीर ने कहा 'हम यहां नए पाकिस्तान को सुनने आए थे लेकिन जो भी हमने सुना वह पुराने पाकिस्तान जैसा लगा।'

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संयुक्त राष्ट्र, 30 सितंबर:संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के भाषण के बाद भारत ने जवाब दिया है। रविवार को  संयुक्त राष्ट्र में भारत के मिशन की पहली सचिव इनम गंभीर ने 'राइट टू रिप्लाई' के का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के बयान का पलटवार किया है।

उन्होंने कहा 'हम यहां नए पाकिस्तान को सुनने आए थे लेकिन जो भी हमने सुना वह पुराने पाकिस्तान जैसा लगा।'

इनम ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आधारहीन आरोप लगाए हैं कि नई दिल्ली इस्लामाबाद से आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है। 

उन्होंने कहा '4 साल पहले पेशावर के स्कूल पर आतंकवादी हमले का बेमतलब का आरोप है। मैं पाकिस्‍तान की नई सरकार को याद दिला दूँ कि भारत में भी इस हमले की निंदा हुई थी। भारतीय संसद के दोनों सदनों ने भी मारे गए बच्‍चों को याद किया था। इसके साथ ही भारत के स्‍कूलों में इस घटना में मारे गए बच्‍चों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि भी दी गई थी।'

पाकिस्तान ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दा उठाते हुए कहा कि 'अनसुलझा विवाद' भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी शांति हासिल करने पर असर डाल रहा है और यह 'मानवता के अंतकरण पर धब्बा' बना हुआ है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र में आम चर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामाबाद 'संप्रभु समानता और आपसी सम्मान' के आधार पर नई दिल्ली के साथ संबंध चाहता है।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा, 'हम गंभीर और व्यापक वार्ता के जरिये विवादों का समाधान चाहते हैं जिसमें चिंता के सभी मुद्दे शामिल हों।'

महासभा बैठक से इतर विदेश मंत्रिस्तरीय वार्ता रद्द किये जाने पर कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ सभी मुद्दों पर बातचीत करना चाहता था लेकिन नई दिल्ली ने 'शांति पर राजनीति को' तरजीह देते हुए वार्ता रद्द कर दी।

उन्होंने कहा, 'उन्होंने कुछ महीने पहले जारी डाक टिकटों को बहाना बनाया।'

कुरैशी ने कहा, 'दक्षिण एशिया में लंबे समय से लंबित मुद्दों का समाधान करने के लिए बातचीत एकमात्र रास्ता है और इसने क्षेत्र को अपनी असली क्षमता को साकार करने से रोक रखा है।'

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