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हेकिंग मोना लिसा की जगप्रसिद्ध छवि: असली और नकली की कीमत का राज क्या है

By भाषा | Updated: June 7, 2021 19:16 IST

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गैब्रिएल नेहर, नॉटिंघम विश्वविद्यालय

नॉटिंघम,(ब्रिटेन), जून ७ (द कन्वरसेशन) पेरिस के लौवर संग्रहालय में दुनिया की सबसे महंगी और प्रसिद्ध मोना लिसा की मूल पेंटिंग रखी है, जिसकी कई बार नकल की गई है। इनमें सबसे प्रसिद्ध है हेकिंग मोना लिसा, जिसका नाम इसके पूर्व मालिक, पुरातात्त्विक रेमंड हेकिंग (1886-1977) के नाम पर रखा गया है। यह पेरिस में क्रिस्टी के नीलामी घर में बिक्री पर जाने के लिए तैयार है और एक मोटे अनुमान के अनुसार इसके लगभग €200,000 से €300,000 यूरो (£170,00 से £260,000 पाउंड) के बीच बिकने की उम्मीद है।

ऐसा माना जा रहा है कि इसका बिक्री मूल्य शायद इस अनुमान के भी पार हो जाएगा। मोना लिसा की इस तरह की 17 वीं शताब्दी की प्रतियों की पिछली बिक्री 1,695,000 अमेरिकी डॉलर (£ 1,195,000 यूरो) तक पहुंच चुकी है। मार्च 2019 में न्यूयॉर्क में एक संस्करण इस कीमत में बिका था। नवंबर 2019 में पेरिस में एक और संस्करण € 552,500 यूरो में बेचा गया और एक तीसरा संस्करण, उसी वर्ष क्रिस्टी की पेरिस नीलामी में €162,500 यूरो में बिका।

मोना लिसा के रचनाकार लियोनार्डो की मृत्यु की 500 वीं वर्षगांठ 2019 में कई प्रतिष्ठित प्रदर्शनियों के साथ मनाई गई थी, इसलिए यकीनन लियोनार्डो की कृतियों को लेकर बाजार तेज था। हालांकि, मोना लिसा, अपने मूल रूप में हो या इसकी प्रतिलिपियां, हमेशा अनमोल रही हैं।

पेंटिंग के कई संस्करणों में से, कुछ प्रतिकृतियों का हेकिंग मोना लिसा की तुलना में अधिक आकर्षक इतिहास है। यह मौलिकता बनाम नकल के कथित मूल्य के प्रति सदियों से बदलते दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है।

लियोनार्डो का कोई भी काम मोना लिसा से अधिक लोकप्रिय नहीं है, जो यकीनन 20 वीं सदी में कलाकृतियों के लुटेरों में सबसे अधिक चर्चित रही। अगस्त 1911 में, लौवर संग्रहालय के कर्मचारी विन्सेन्ज़ो पेरुगिया ने मोना लिसा को चुरा लिया। यह पेंटिंग दो वर्ष तक गायब रही। फिर आखिरकार यह फ्लोरेंस में मिली और लौवर में लौट आई।

मोना लिसा की चोरी की इस घटना की दुनियाभर में खूब चर्चा रही, जिसने मासूम से चेहरे पर बिखरी हलकी सी मुस्कुराहट वाली इस कृति की प्रसिद्धि को दुनियाभर में आसमान तक पहुंचा दिया।

जनवरी 1963 में, दुनियाभर की नजरों के बीच, मोना लिसा ने अमेरिका की यात्रा की और वाशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क शहर में इसे बड़ी शान के साथ प्रदर्शित किया गया। प्रथम महिला जैकी कैनेडी ने 1961 में इस यात्रा की व्यवस्था की थी और मोना लिसा के अमेरिका पहुंचने से पहले ही उसे लेकर मीडिया बेहद उत्साहित था।

इसी के बीच में रेमंड हेकिंग ने सनसनीखेज दावा किया कि लौवर संग्रहालय मोनालिसा की जिस कलाकृति को अमेरिका भेजने की तैयारी कर रहा था, वह असली नहीं थी - बल्कि उसकी थी।

हेकिंग के पास मोना लिसा की जो पेंटिंग है वह उसने 1950 के दशक के अंत में फ्रांस के नीस में एक कला डीलर से लगभग £3 यूरो में ली थी। उनका तर्क है कि 1913 में लौवर को लौटाई गई पेंटिंग मोना लिसा की एक और समकालीन प्रतिकृति थी। हेकिंग ने इस काम में मीडिया की भी मदद ली और मोना लिसा के अपने संस्करण का खूब प्रचार किया।

इस सब से यह बहस छिड़ गई कि एक कलाकृति का मूल्य किस बात पर निर्भर करता है। आधुनिक युग (1500-1800) के शुरूआत में एक कलाकृति की कीमत इस बात पर निर्भर नहीं करती थी कि कलाकार ने उसे अपने हाथ से बनाया है बल्कि वह एक ऐतिहासिक कलाकृति की प्रतिकृति होने को अधिक महत्व देते थे।

मशीनों और प्रौद्योगिकी के इस युग में हम किसी भी कलाकृति की कितनी भी प्रतियां बना और देख सकते हैं लेकिन क्या इससे प्रतिलिपि का मूल्य कम हो जाता है? जर्मन दार्शनिक वाल्टर बेंजामिन ने सबसे पहले इस मुद्दे को बहस के लिए चुना। अपने लेख द वर्क ऑफ आर्ट इन द एज ऑफ मैकेनिकल रिप्रोडक्शन में, बेंजामिन ने कहा कि एक मूल कलाकृति में अद्वितीयता की एक अद्भुत और अनुपम ‘‘आभा’’ होती है, जो मशीन के जरिए तैयार की जाने वाली प्रतिकृति में मौजूद नहीं होती और इसीलिए यह इसके मूल्य को कम करती है।

हेकिंग मोना लिसा लियोनार्डो की मूल कलाकृति की एक नकल भर नहीं है। इसे मशीनी तौर पर नहीं बनाया गया है बल्कि यह एक प्रतिष्ठित रचना की 17 वीं शताब्दी की एक प्रामाणिक प्रति है। इसके अपने सांस्कृतिक पहलू और अपनी कहानियां हैं। अगर कभी ऐसी कोई छवि रही है जो प्रतियों के मूल्य के बारे में बहस को बुलावा देती है, और प्रामाणिकता की बात करती है, तो वह हेकिंग मोना लिसा है। और यह निस्संदेह उस मूल्य में परिलक्षित होगा जो यह छवि नीलामी में प्राप्त करेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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