लाइव न्यूज़ :

'वन चाइना' सिद्धांत: कूटनीति का यह दिलचस्प पहलू चीन और ताइवान के लिए क्या मायने रखता है

By भाषा | Updated: December 3, 2021 17:40 IST

Open in App

कॉलिन अलेक्जेंडर, नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी

नॉटिंघम (यूके), तीन दिसंबर (द कनवरसेशन) ताइवान जलडमरूमध्य में बढ़ते सैन्य तनाव के मध्य अमेरिका, चीन और ताइवान के बीच तनावपूर्ण त्रिकोणीय संबंध एक बार फिर सामने आए हैं।

चीनी मुख्य भूमि के दक्षिण-पूर्वी तट से दूर छोटे, घनी आबादी वाले द्वीप की स्थिति पर गर्मागर्म विवाद है और दैनिक अखबारों की खबरों में लगभग हर दिन यह भविष्यवाणी की जा रही हैं कि एक नया मुखर चीन ताइवान को जबरन फिर से हासिल करने के लिए जल्द ही सैन्य कार्रवाई या अन्य कदम उठा सकता है। हालाँकि, हम पहले भी इस तरह की स्थिति से गुजरे हैं और और इस तरह की कार्रवाई को अपरिहार्य देखना गुमराह करना होगा।

यह एक जटिल स्थिति है जिसकी जड़ें उस अराजकता में हैं जो एशिया में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति और चीन में माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा एक अक्टूबर 1949 को पीपुल्स रिपब्लिक की स्थापना के साथ समाप्त हुए गृह युद्ध के बाद पैदा हुई थी।

द्वीप, जिसे पहले फॉर्मोसा के नाम से जाना जाता था, 1895-1945 के बीच एक जापानी उपनिवेश था, लेकिन जापान की हार के बाद इसे राष्ट्रवादी नेता चियांग काई-शेक के रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) के नियंत्रण में सौंप दिया गया था।

1949 में, च्यांग लगभग 20 लाख सैनिकों, सहयोगियों और नागरिक शरणार्थियों के साथ ताइवान से पीछे हट गया, मुख्य भूमि को फिर से लेने और कम्युनिस्टों को उखाड़ फेंकने की योजना के साथ। जाहिर है, ऐसा कभी नहीं हुआ और तब से चीन की दो प्रतिस्पर्धी अवधारणाओं के बीच एक वैश्विक प्रतिस्पर्धा चल रही है।

शीत युद्ध के दौरान, इसे अक्सर आरओसी और पश्चिमी स्रोतों द्वारा ‘‘रैड चाइना’’ बनाम ‘‘फ्री चाइना’’ के रूप में प्रचारित किया गया था। लेकिन दोनों ने अधिकांश संघर्ष के दौरान क्रूर और अत्याचारी तानाशाही का सामना किया इसलिए ताइवान के लोगों के स्वतंत्र होने की धारणा बहस का विषय थी, कम से कम कहने के लिए।

न तो पीआरसी और न ही आरओसी एक दूसरे के दावे को स्वीकार करते हैं। औपचारिक संपर्क सीमित है और आम तौर पर परदे के पीछे के माध्यम से बातचीत की जाती है ताकि दूसरे के कानूनी अस्तित्व की कमी के ढोंग को बनाए रखा जा सके।

ताइवान में आरओसी के पीछे हटने के तुरंत बाद एक चीन सिद्धांत उभरा। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में किसी भी पक्ष को पूरे चीन के लिए अपने दावे की प्रतिस्पर्धात्मकता को स्वीकार करने तक की स्थिति में नहीं देखा जा सकता था।

‘‘वन चाइना’’ का जुमला तब पीआरसी और अमेरिकी प्रतिनिधियों के बीच 1972 के शंघाई कम्युनिक में इसके उपयोग के बाद लोकप्रिय हुआ और 1992 की आम सहमति के बाद इसने और अधिक कुख्याति प्राप्त की जब बीजिंग और ताइपे के अनौपचारिक प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश हांगकांग में मुलाकात की और अपने समझौते में ‘‘वन चाइना’’ की घोषणा की हालांकि इस क्षेत्र पर शासन करने वाले लोगों की व्याख्या स्पष्ट रूप से भिन्न थी।

एक चीन सिद्धांत आधुनिक कूटनीति की विषमताओं में से एक है: यह अनिवार्य रूप से अनुरोध करता है कि सरकारें और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठन स्वीकार करें कि या तो पीआरसी या आरओसी ताइवान और उसके बाहरी द्वीपों सहित - पूरे चीन की वाजिब एकमात्र सरकार है।

प्रतियोगिता के क्षेत्र

तीन अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र हैं जहां वन चाइना आज सबसे अधिक मुखर रूप से दिखाई देता है। एक, और शायद सबसे अधिक दिखाई देने वाला, अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में है जहां ताइवान आमतौर पर ‘‘चीनी ताइपे’’ के रूप में प्रतिस्पर्धा करता है। ताइवान को आरओसी ध्वज का उपयोग करने की अनुमति नहीं है और उसका राष्ट्रगान नहीं बजाया जाता है।

एक अन्य संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और इसके सहयोगियों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता है, जहां चीन ताइवान की सदस्यता का विरोध करता है। आरओसी 1945 में संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों में से एक था, लेकिन पीआरसी को एकीकृत करने के संयुक्त राष्ट्र के कदमों के विरोध में इसने 1971 में अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। आरओसी को बाद में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में अपनी क्षमता में पीआरसी द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।

तीसरा क्षेत्र राजनयिक मान्यता है। 1949 के बाद से, दुनिया भर में उन राज्यों की संख्या में सामान्य गिरावट आई है जो औपचारिक रूप से आरओसी को मान्यता देते हैं क्योंकि इससे बहुत बड़े पीआरसी के साथ औपचारिक संबंधों में बाधा आएगी। यह ताइपे के साथ अधिकांश देशों के औपचारिक संपर्क को सीमित करता है, हालांकि अनौपचारिक व्यापार और सांस्कृतिक संबंध बने रहते हैं।

1949 में राज्य के दर्जे की घोषणा के लगभग तुरंत बाद ब्रिटेन सरकार ने पीआरसी को मान्यता दे दी - मुख्य रूप से हांगकांग की स्थिति पर चिंताओं के कारण। इस बीच, अमेरिकी सरकार ने औपचारिक रूप से नए साल 1978-79 तक पीआरसी को मान्यता नहीं दी थी- एक प्रक्रिया की परिणति जो 1969 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के समय में शुरू हुई और लगभग एक दशक बाद जिमी कार्टर के समय समाप्त हुई।

आधुनिक ताइवान

2016 में राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के सत्ता में आने के बाद से, ताइवान राजनयिक मान्यता समाप्त होने की अपनी पांचवीं लहर का अनुभव कर रहा है, अफ्रीका में बुर्किना फासो और मध्य अमेरिका में पनामा और अल सल्वाडोर सहित विभिन्न सहयोगियों को खो चुका है। ऐसा इसलिए है क्योंकि त्साई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) चीन से ताइवान के लिए अधिक स्वतंत्रता का समर्थन करती है, जिसे बीजिंग द्वारा शत्रुतापूर्ण कार्य माना जाता है।

हालाँकि, किसी को भी ताइवान के लिए स्थिति को केवल निराशा के रूप में नहीं देखना चाहिए। ताइवान इससे पहले भी इस तरह के हालात में रहा है और राजनीतिक टिप्पणीकारों ने कई मौकों पर आरओसी के भविष्य के लिए आशंका जताई है - और फिर भी यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य का एक जीवंत हिस्सा बना हुआ है।

हालांकि बढ़ते तनाव ने अमेरिका को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। ताइवान संबंध अधिनियम, 1979 को अमेरिकी कांग्रेस ने कार्टर प्रशासन द्वारा पीआरसी को मान्यता दिए जाने के जवाब में पारित किया था और इसमें चीनी आक्रमण की स्थिति में ताइवान की रक्षा की प्रतिज्ञा की गई थी। यह देखना बाकी है कि अमेरिका इस दिशा में कितना आगे जाता है - लेकिन दो महाशक्तियों के बीच सशस्त्र संघर्ष फिलहाल तो संभव नहीं दिखता।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in App

संबंधित खबरें

क्रिकेटIndia U19 vs United Arab Emirates U19: भारत ने यूएई को 234 रन से रौंदा, वैभव सूर्यवंशी ने 95 गेंद में खेली 171 की पारी

क्रिकेटVIDEO: संजू सैमसन ने गौतम गंभीर का गला घोंटा, उन्हें पीटा? CSK स्टार और टीम इंडिया के मुख्य कोच का डीप फेक वीडियो वायरल

बॉलीवुड चुस्कीDhurandhar: जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने फिल्म धुरंधर की प्रशंसा में कहा- ‘वेरी वेल मेड’

क्राइम अलर्टपटना के विकास पदाधिकारी भवेश कुमार सिंह के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, 6 ठिकानों पर छापेमारी, गोदाम से 40 लाख रुपये, गहने, जमीन कागजात, महंगी गाड़ियां और घड़ियां जब्त

क्राइम अलर्ट11 दिसंबर को शादी और 10 दिसंबर को एक ही दुपट्टे से फंदा लगाकर आत्महत्या, प्यार करते थे भारती और रवि कुशवाहा, रिश्ते में थे चचेरे भाई बहन

विश्व अधिक खबरें

विश्वनई टीम की घोषणा, सौरिन पारिख की जगह श्रीकांत अक्कापल्ली होंगे अध्यक्ष, देखिए पूरी कार्यकारिणी

विश्वEarthquake in Japan: 6.7 तीव्रता के भूकंप से हिली जापान की धरती, भूकंप के बाद सुनामी की चेतावनी, दहशत में लोग

विश्वपाकिस्तान के टुकड़े क्या भला करेंगे?, 12 छोटे टुकड़ों में बांटना चाहते हैं आसिम मुनीर?

विश्वअगर ट्रंप अपनी नीति में बदलाव नहीं करते, तो भारत को खो देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बनेंगे?, सांसद सिंडी कमलागर डोव ने कहा- सबसे बेहतर दोस्त...

विश्वडोनाल्ड ट्रंप ने लॉन्च किया 'गोल्ड कार्ड' वीजा प्रोग्राम, अमेरिकी नागरिकता पाने के लिए देने होंगे 10 लाख; जानें क्या है ये