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कहानी की तरह सुनाइए हाले दिल : बेहतर इलाज मिलेगा

By भाषा | Updated: July 7, 2021 15:54 IST

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रॉबर्ट मौंदर, मनोचिकित्सा के प्रोफेसर, टोरंटो विश्वविद्यालय और जॉन हंटर; मनोचिकित्सा के प्रोफेसर, टोरंटो विश्वविद्यालय

टोरंटो, सात जुलाई (द कन्वरसेशन) क्लिनिक या अस्पताल में इलाज के लिए जाने वाले लोग जब अपने लक्षणों, चिकित्सा इतिहास और स्वास्थ्य परिवर्तनों का वर्णन एक कहानी की तरह करते हैं तो चिकित्सक को अपनी बात बेहतर तरीके से समझा पाते हैं और उन्हें अच्छी चिकित्सा सुविधा मिलती है, लेकिन बचपन में किसी तरह के बुरे अनुभव से गुजरने वाले लोग अपने स्वास्थ्य की कहानी सुनाने में उतने अच्छे नहीं होते।

एक (काल्पनिक) उदाहरण के रूप में फ्लोरेंस पर विचार करें: यह जुलाई की एक गर्म रात है और फ्लोरेंस को फिर से चक्कर आ रहे हैं। उसे बहुत खराब लग रहा है और वह अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित भी है। उसे लग रहा है कि अगर वह गाड़ी चला रही है और उसे चक्कर आने लगे तो क्या होगा? अगर यह ठीक नहीं हुआ तो क्या होगा? वह ऐसे कैसे काम कर पाएगी। क्या होगा अगर यह हृदयाघात या ट्यूमर हुआ? यही सब सोचते सोचते वह आपात विभाग में पहुंचती है, हालांकि उसका पिछला अनुभव यही था कि इससे कोई बहुत ज्यादा लाभ नहीं होगा।

नर्स फ्लोरेंस से पूछती है कि उसे क्या परेशानी है? फ्लोरेंस उसे अपनी परेशानी के बारे में बताती है और उसके परीक्षण किए जाते हैं तो सब कुछ सामान्य था।

नर्स हैरान है वह एक बार फिर उससे पूछती है, ‘‘आपके साथ ऐसा कब हुआ था?’’ परेशान फ्लोरेंस अपनी बात शुरू करती है, ‘‘अक्तूबर में। मैं....’’ नर्स बिफर पड़ती है वह यह सुनने को तैयार नहीं कि नौ महीने पहले क्या हुआ था। वह फ्लोरेंस की बात शुरू होने से पहले ही काट देती है और उसे प्रतीक्षालय में भेज देती हैं।

थोड़ी देर बाद फ्लोरेंस एक डॉक्टर से मिलती है। इस दौरान वह इस बात का अभ्यास करती रहती है कि उसे डाक्टर के सामने अपनी बात को बेहतर तरीके से कैसे रखना है। वह डाक्टर से कुछ कहने की कोशिश करती है, लेकिन कुछ सेकंड के बाद डाक्टर का सवाल था, ‘‘चक्कर आना’’ से आपका क्या मतलब है।

फ्लोरेंस जवाब देती है, ‘‘आप जानते हैं, यह उस चक्करदार एहसास की तरह है, ओह मुझे इससे नफरत है, आप जानते हैं...’’

हालांकि फ्लोरेंस या डॉक्टर के साथ भले ऐसा न हुआ हो, लेकिन बहुत से लोगों के साथ ऐसा होता है कि वह अपनी बात को बेहतर तरीके से नहीं बता पाते हैं और उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाता। यह जीवन भर की कठिनाई - हिंसा से शुरू होती है जिसे उन्होंने बचपन में देखा और अनुभव किया।

बचपन के प्रतिकूल अनुभवों और खराब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर शोध ने हमारी कई सबसे आम और बोझिल पुरानी बीमारियों के छिपे हुए जोखिम को सार्वजनिक चर्चा का विषय बना दिया है।

संख्याएं परेशान करने वाली हैं। लगभग 60 प्रतिशत वयस्कों ने बचपन में कम से कम एक प्रकार के प्रतिकूल अनुभवों को झेला है। प्रत्येक तीन में से लगभग एक बच्चे ने गंभीर शारीरिक या यौन शोषण का अनुभव किया है या पारस्परिक हिंसा का शिकार हुआ। यह एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।

बचपन के प्रतिकूल अनुभव अस्वस्थ व्यवहार और जीवन में बाद के अनुभवों से जुड़े होते हैं। वे इस जोखिम को बढ़ाते हैं कि ऐसे अनुभव से गुजरने वाला बच्चा सिगरेट पीएगा, अस्वास्थ्यकर ड्रग लेगा और शराब का उपयोग करेगा, मोटा हो जाएगा, या एक वयस्क के रूप में और अधिक आघात का अनुभव करेगा। इस वजह से, और स्वास्थ्य पर तनाव के अन्य प्रभावों के कारण, बचपन के प्रतिकूल अनुभव हृदय, फेफड़े और यकृत, दर्द सिंड्रोम और कुछ कैंसर के रोगों के जोखिम को बढ़ाते हैं।

आपातकालीन कक्ष में फ्लोरेंस जो अनुभव कर रही है, वह बचपन की प्रतिकूलताओं का एक और परिणाम है - एक ऐसा परिणाम जो अपनी बात को सही ढंग से न कह पाने की कमजोरी के कारण अच्छी स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करना बहुत कठिन बना देता है। अनसुलझे विकासात्मक आघात और कहानी कहने के बिगड़े हुए अंदाज के बीच एक मजबूत संबंध है। इसे तकनीकी रूप से ‘‘कथात्मक असंगति’’ कहा जाता है। एक अच्छे आख्यान के गुणों का वर्णन दार्शनिक पॉल ग्राइस ने चार सिद्धांतों में किया था: आप जो कहते हैं उसके प्रमाण हैं(गुणवत्ता),

संक्षिप्त रहें, फिर भी पूर्ण (मात्रा),

विषय के प्रति प्रासंगिक हों (संबंध) और

स्पष्ट और व्यवस्थित हों (तरीका)।

मनोवैज्ञानिक मैरी मेन और उनके सहयोगियों ने यह वर्णन करने के लिए ग्रिस के सिद्धांतों का उपयोग किया कि कैसे अनसुलझे बचपन के आघात और नुकसान किसी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण संबंधों के बारे में मन की स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने पाया कि अनसुलझे आघात वाले लोग जब इन रिश्तों के बारे में भावनात्मक रूप से कुछ लिखते हैं तो उनकी बताई गई कहानियों में गुणवत्ता, मात्रा, संबंध और तरीके की कमी को साफ पहचाना जा सकता है।

इस शोध के माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि आपातकालीन विभाग या डाक्टर तक पहुंचा फ्लोरेंस जैसा कोई व्यक्ति अपनी स्थिति को स्पष्ट करने और अपने लिए बेहतर चिकित्सा सहायता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता है।

अब सवाल यह है कि इस समस्या का व्यावहारिक हल क्या है। यदि फ्लोरेंस और उसके स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता यह पहचानने में सक्षम हैं कि फ्लोरेंस को अपनी कहानी बताने में परेशानी क्या हो रही है, तो दोनो को इस चुनौती का सामना करने के लिए कुछ कदम उठाने की जरूरत है। फ्लोरेंस जो कुछ कदम उठा सकती है उनमें शामिल हैं: अपने साथ एक दोस्त को लाना जो उसे शांत और व्यवस्थित रहने में मदद करे। यह समझाते हुए कि वह चिंतित है और परेशानी का वर्णन करने के लिए थोड़ा समय चाहिए।

इसके अलावा उसके सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं और प्रश्नों के बारे में पहले से नोट्स बना लेने चाहिएं।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को डर के चेहरे को पहचानने की जरूरत है। डॉक्टर फ्लोरेंस से पूछताछ करने में बाधा डालने के बजाय उसके विचारों को व्यवस्थित करने में मदद कर सकते हैं। वे कहानी खोजने में एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं जिससे उसे चक्कर आने की परेशानी को सही तरीके से समझा जा सके।

हर मरीज को कहानीकार बनने के लिए मजबूर किया जाता है; एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर ऐसा करके बेहतर तरीके से उनका इलाज कर सकते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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