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ओमीक्रोन पर टीकों के प्रभाव जानने में अनुसंधानकर्ता को लग सकता है समय

By भाषा | Updated: December 4, 2021 14:58 IST

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(एडम टेलर, ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी)

ब्रिस्बेन, चार दिसंबर (द कन्वरसेशन) दुनियाभर के अनुसंधानकर्ता इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि क्या मौजूदा कोविड टीके हमें वायरस के नए स्वरूप ओमीक्रोन से बचा सकते हैं।

इसमें सबसे बड़ी दुश्वारी यह है कि वायरस अपने जीनोम के महत्वपूर्ण हिस्सों में इतना अधिक उत्परिवर्तित हो गया है कि यह हमें वायरस के पुराने स्वरूपों से बचाने के लिए तैयार किये गए कोविड टीकों को भी मात दे सकता है, जिससे पूरी दुनिया को विनाशकारी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।

वैसे, अभी से बहुत चिंता करना ठीक नहीं है और टीके ओमीक्रोन से भी हमारी रक्षा कर सकते हैं, जैसा उन्होंने पहले के स्वरूपों में किया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि हमें स्थिति का आकलन करने में दो से चार सप्ताह और लग सकते हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक क्या खोज रहे हैं और उन्हें निष्कर्ष पर पहुंचने में कितना समय लगेगा, इसे निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है।

किस बात की है चिंता?

ओमीक्रोन से दुनियाभर में जो हलचल मची है, उसका एक कारण कोविड को जन्म देने वाले वायरस सार्स-कोव-2 के जीनोम में नए बदलावों को माना जा रहा है।

दक्षिण अफ्रीका और दुनियाभर में तेजी से सामने आए ओमीक्रोन के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 26 नवंबर को ओमीक्रोन को ''चिंताजनक स्वरूप'' करार दिया। ओमीक्रोन अब कई अन्य देशों में भी फैल चुका है। हम पहले ही अन्य वेरिएंट में कुछ ओमाइक्रोन म्यूटेशन देख चुके हैं।

इनमें से कुछ उत्परिवर्तन एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने के प्रतिरोध से जुड़े हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ये उत्परिवर्तन कोविड-19 टीके से हासिल प्रतिरक्षा प्रणाली के जरिये पहचाने जाने से बचने में वायरस की मदद करते हैं। जबकि कुछ उत्परिवर्तन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में वायरस के संक्रमण को बढ़ाने से भी जुड़े हैं।

बहरहाल, ओमीक्रोन में कई विचित्र उत्परिवर्तन हैं। यह वुहान से निकले वायरस की तुलना में लगभग 30 उत्परिवर्तन हैं। वायरस के डेल्टा स्वरूप में केवल 10 उत्परिवर्तन देखने को मिले हैं। लिहाजा, आप बदलावों के पैमाने का अंदाजा लगा सकते हैं।

कई उत्परिवर्तन अलग-अलग होने के बजाय एक-दूसरे के साथ कैसे जुड़े हैं, इसका पता लगाना यह समझने के लिए महत्वपूर्ण होगा कि अन्य स्वरूपों की तुलना में ओमीक्रोन कैसे व्यवहार करता है।

एक ओर हम परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर इस सप्ताह कुछ टीका निर्माताओं ने भी अपनी बात रखी। मॉडर्ना ने कहा कि उसका टीका डेल्टा स्वरूप पर जितना प्रभावी है उसकी तुलना में यह ओमीक्रोन पर कम कारगर है। इस बीच फाइजर/बायोएनटेक ने कहा कि उनका टीका अब भी गंभीर बीमारी से बचाने में सक्षम है। दोनों कंपनियों ने कहा कि यदि आवश्यकता हुई तो, वे संशोधित बूस्टर टीकों का निर्माण कर सकती हैं।

दुनियाभर के अनुसंधानकर्ता फिलहाल ओमीक्रोन को लेकर क्या कर रहे हैं और इसके बारे में पुख्ता जानकारी हासिल होने में हफ्तों का समय लगेगा। इसके निम्नलिखित कारण माने जा रहे हैं।

ओमीक्रोन का प्रारंभिक चरण

अनुसंधानकर्ता ओमीक्रोन संक्रमण का पता लगाने के लिये लोगों के नमूने ले रहे हैं, जिसकी अभी प्रयोगशालाओं में जांच चल रही है। अभी अनुसंधानकर्ताओं के पास अनुसंधान के लिये पर्याप्त विषयवस्तु नहीं है। इस पूरी प्रक्रिया को संपन्न होने में समय लग सकता है क्योंकि शुरुआत में आपके पास थोड़ी मात्रा में वायरस के नमूने मौजूद होते हैं।

खुद 'वायरस' तैयार करना

किसी भी वायरस के बारे में पता लगाने का एक और तरीका होता है उसके जैसा वायरस तैयार करना। इसके लिये अनुसंधानकर्ताओं को केवल सार्स-कोव-2 के जीनोम अनुक्रमण की जरूरत होगी। इसमें रोगी के नमूनों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती। वे प्रयोगशाला में आनुवंशिक रूप से भी वायरस भी पैदा कर सकते हैं, जिन्हें 'स्यूडोटाइप्ड वायरस' कहा जाता है। इनमें केवल सार्स-कोवि-2 क स्पाइक प्रोटीन की जरूरत होती है। इन सभी विकल्पों पर अमल करने और समझने में समय लगता है।

प्रारंभिक अध्ययनों में यह देखा जाएगा कि ओमीक्रोन के उत्परिवर्तन किस प्रकार इसकी विशेषताओं को प्रभावित करते हैं। इसमें इसकी संप्रेषणीयता और टीके से मिली प्रतिरक्षा से बच निकलने की क्षमता को देखा जाएगा।

उदाहरण के लिए, प्रारंभिक प्रयोगों में कोशिकाओं को संक्रमित करने की ओमाइक्रोन की क्षमता को देखा जाएगा। ये अध्ययन हमें बताएंगे कि ओमीक्रोन का स्पाइक प्रोटीन एसीई2 रिसेप्टर के साथ कितनी अच्छी तरह जुड़ता है, जो हमारी कोशिकाओं को संक्रमित करने का प्रवेश द्वार है। आगे के अध्ययन इस बात की जांच करेंगे कि वायरस शरीर में घुसने के बाद ओमीक्रोन कोशिकाओं में किस तरह सक्रिय होता है।

अध्ययनों से यह भी पता चल सकता है कि वैक्सीन बूस्टर व्यवस्था और पहले के सार्स-कोव-2 संक्रमण के प्रभाव पता लगाने वाली एंटीबॉडी कितनी अच्छी तरह से ओमीक्रोन को बेअसर करती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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