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प्लास्टिक पुनर्चक्रण प्रणाली में सुधार की जरूरत

By भाषा | Updated: October 15, 2021 13:04 IST

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(एलेनी इकोविदू, ब्रूनेल यूनिवर्सिटी और नॉरमैन एब्नर, यूनविर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड)

ऑक्सफोर्ड/ अक्सब्रिज (इंग्लैंड), 15 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) निवेशक वारेन बफेट ने एक बार टिप्पणी की थी कि "जब ज्वार गुजर जाता है तब आपको पता चलता है कि कौन नंगे तैर रहा है"। प्लास्टिक पुनर्चक्रण उद्योग के लिए, महामारी कुछ हद तक इस ज्वार की तरह थी, जिसने इसकी गहरी जड़ वाली संरचनात्मक समस्याओं को उजागर कर दिया है।

विशेष रूप से, कोविड-19 ने तेल की कीमतों में बदलाव के प्रति प्लास्टिक पुनर्चक्रण क्षेत्र की संवेदनशीलता उजागर की। महामारी के चलते आर्थिक बंदी ने वैश्विक तेल मांग को कम कर दिया, जिसके कारण तेल की कीमतों में गिरावट आई। इसने निर्माताओं की प्राथमिकता नए प्लास्टिक बनाने की तरफ कर दी, जिससे प्लास्टिक के पुनर्चक्रण की लागत बढ़ गई।

इस तरह के बदलाव नये प्लास्टिक उत्पादन से प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, जिसका हमारी धरती की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। छोटी अवधि में, यह दुनिया भर में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन में काम करने वालों की आजीविका को भी खतरे में डाल सकता है और लंबी अवधि में इसका परिणाम, पुनर्चक्रण क्षेत्र में कम निवेश हो सकता है, क्योंकि कंपनियां वित्तीय नुकसान के जोखिम से सावधान हो सकती हैं।

वैश्विक महामारी से पहले, दुनिया भर की सरकारों ने निरंतरता पर एक निर्णायक रुख का संकेत देने के लिए प्लास्टिक प्रदूषण के त्वरित समाधान की तलाश करने की प्रवृत्ति दिखाई थी। उदाहरण के लिए, एकल प्रयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध। यह एक ऐसा कदम है जिसे आमतौर पर उच्च स्तर का राजनीतिक समर्थन प्राप्त होता है।

लेकिन भले ही इस प्रतिबंध के अपने फायदे हैं, यह हमारी आधुनिक संस्कृति वाली सुविधाओं से प्रभावित अत्यधिक खपत की बहुत बड़ी समस्या का केवल आंशिक समाधान प्रदान करता है।

इस तरह की कार्रवाइयां प्लास्टिक कचरे को पैदा करने की समस्या को आसान बनाती हैं, जबकि वास्तव में, अन्य एकल-उपयोग वाली वस्तुओं के फैलाव से पर्यावरणीय परिणाम और भी खराब हो सकते हैं। एक बेहतर योजना यह होगी कि पहले प्लास्टिक उत्पादन की समस्याओं को उनके स्रोत के स्तर पर ही निपटा जाए।

सुधार

शुरुआत करने के लिए, समय आ गया है कि प्लास्टिक उत्पादन प्रणाली में पारदर्शिता में सुधार किया जाए।

देशों के बीच किस प्रकार के और कितनी मात्रा में प्लास्टिक का आयात और निर्यात किया जाता है, साथ ही साथ उन प्लास्टिक का उपयोग कैसे किया जाता है, इस विषय पर पर्याप्त जानकारियां नहीं हैं। इसका मतलब है कि हम ठीक से नहीं जान सकते कि सबसे अधिक कचरा कहां उत्पन्न होता है। एक निगरानी प्रणाली जो विभिन्न देशों में प्लास्टिक के प्रवाह पर ठीक से नजर रख सके, वह हमें बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी कि नियमनों की आवश्यकता कहां हो सकती है।

इतना ही नहीं, हमें देशों के भीतर टिकाऊ प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि प्लास्टिक का पुनर्चक्रण आर्थिक रूप से संभव हो सके, यहां तक कि उन जगहों पर भी जहां पुनर्चक्रण अवसंरचना कम है।

ऐसा करने के लिए, नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता है जिससे कि सुनिश्चित हो कि कंपनियां जहां संभव हो, पुनर्चक्रण का प्रयास करें, साथ ही पुनर्चक्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने और संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन दें।

वहीं, विभिन्न स्थानीय संस्कृतियों में प्लास्टिक कचरे की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। प्लास्टिक कचरे का निपटान कैसे किया जाना चाहिए, साथ ही अनौपचारिक कचरा बीनने वालों के प्रति दृष्टिकोण प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के संचालन के तरीके को प्रभावित करते हैं।

यदि हम अपने प्राकृतिक स्थानों को प्लास्टिक से मुक्त करना चाहते हैं, तो हमें प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए एक समावेशी, पारदर्शी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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