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जटिल संघर्षों के कारण शांतिरक्षकों के समक्ष बड़े खतरे हैं: संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा प्रमुख

By भाषा | Updated: November 21, 2021 13:40 IST

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संयुकत राष्ट्र, 21 नवंबर (एपी) संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा प्रमुख ज्यां पियरे लैक्रोइ ने कहा कि संघर्षों के और अधिक जटिल होने के कारण शांति अभियानों में शामिल 87,000 से अधिक कर्मियों को आज अधिक खतरों का सामना करना पड़ रहा है और ये संघर्ष नस्ली तनाव एवं संगठित अपराध के प्रभाव से लेकर संसाधनों के अवैध दोहन और आतंकवाद तक कई कारकों से प्रेरित होते हैं।

लैक्रोइ ने शुक्रवार को एक साक्षात्कार में कहा कि अगर दो या तीन साल पहले के समय से भी तुलना की जाए तो, “हमारे अधिकांश शांति अभियानों का राजनीतिक और सुरक्षा वातावरण खराब हो गया है।”

उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह बात भी ‘‘उतनी ही महत्वपूर्ण’’ है कि ये संघर्ष ‘‘बहु चरणीय’’ हैं और ये अकसर स्थानीय और राष्ट्रीय होने के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक भी होते हैं। उन्होंने उदाहरण के तौर पर अफ्रीका के गरीब साहेल क्षेत्र का जिक्र किया, जहां आतंकवादी गतिविधियां बढ़ रही हैं।

फ्रांसीसी राजनयिक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षकों के संचालन के तरीके में बदलाव के पीछे संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों के बीच बढ़े हुए राजनीतिक विभाजन के साथ शुरू होने वाले कई कारक हैं।

लैक्रोइ ने कहा कि डिजिटल प्रौद्योगिकयों, फर्जी समाचारों के प्रभाव और संघर्षों पर गलत सूचना समेत कई ऐसे कारक हैं, जो संघर्ष बढ़ाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सशस्त्र समूह ‘‘हमारे कदमों को कमजोर करने के लिए अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं।’’

संयुक्त राष्ट्र वर्तमान में 12 दूर-दराज के क्षेत्रों में शांति अभियान चला रहा है। इनमें से छह अभियान अफ्रीका में, चार पश्चिम एशिया में, एक यूरोप में और एक एशिया में चल रहा है। इनमें 121 देशों के 66,000 से अधिक सैन्य कर्मियों के साथ 7,000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय पुलिस कर्मी और 14,000 नागरिक शामिल हैं।

शांति अभियानों के लिए अवर महासचिव ने कहा कि संघर्ष के कारक "उन संघर्षों को व्यापक रूप से प्रभावित कर रहे हैं जिनमें हम शामिल हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वे उन देशों के लिए तेजी से बड़े खतरे पैदा करते हैं जिनमें हमारे मिशन तैनात हैं।’’

लैक्रोइ ने कहा, "क्या हम इन खतरों को दूर करने के लिए एक बहुपक्षीय प्रणाली के रूप में पर्याप्त रूप से सुसज्जित हैं? मुझे यकीन नहीं है। मुझे लगता है कि उन क्षेत्रों में शायद और भी कुछ किया जाना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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