पैंडोरा पेपर्स: विदेशों में कर चोरी की पनाहगाहों के इस्तेमाल को लेकर सवाल-जवाब

By भाषा | Updated: October 5, 2021 16:21 IST2021-10-05T16:21:08+5:302021-10-05T16:21:08+5:30

Pandora Papers: Questions and Answers on Using Tax Evasion Hideaways Abroad | पैंडोरा पेपर्स: विदेशों में कर चोरी की पनाहगाहों के इस्तेमाल को लेकर सवाल-जवाब

पैंडोरा पेपर्स: विदेशों में कर चोरी की पनाहगाहों के इस्तेमाल को लेकर सवाल-जवाब

(रोनेन पालन, प्रोफेसर, इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन)

लंदन, पांच अक्टूबर (द कन्वरसेशन) दुनिया के अनेक सबसे अमीर और सबसे प्रभावशाली लोग संपत्ति छिपाने और कर अदा करने से बचने के लिए कर चोरी की गुप्त पनाहगाहों और कॉरपोरेट ढांचों का इस्तेमाल करने की वजह से एक बार फिर सुर्खियों में हैं।

पैंडोरा पेपर्स मीडिया में इस तरह की कर चोरी का खुलासा करने वाले सैकड़ों दस्तावेज हैं। इससे पहले 2016 में पनामा पेपर्स और 2017 में पैराडाइज पेपर्स में इस तरह के खुलासे किये गये थे।

नये दस्तावेजों में चेक गणराज्य, साइप्रस, जॉर्डन और यूक्रेन के नेताओं, आजरबैजान के सत्तारूढ़ परिवार के सदस्यों तथा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी लोगों के नाम हैं।

इनमें 100 से ज्यादा अरबपतियों के नाम हैं और उनकी लाखों पाउंड की संपत्तियों के लेनदेन की जानकारी है।

यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में विदेशों में काला धन छिपाने संबंधी मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर रोनेन पालन से हमने इस बारे में पूछा।

आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आता है?

मुझे चिंता है कि मैं इन दस्तावेजों को लेकर हैरान नहीं हूं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि दूसरे देशों में इस तरह के केंद्रों के माध्यम से होने वाले लेन-देन की मात्रा घट रही है, इसलिए पनामा और पैराडाइज पेपर्स में हमने जिन वित्तीय ढांचों के बारे में सुना है, उनका साफतौर पर अब भी उपयोग किया जा रहा है।

रोचक बात यह है कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले इनमें से अधिकतर लोग जानते होंगे कि अंततः उनकी गतिविधियाँ सबकी जानकारी में आ जाएंगी, फिर भी उन्होंने विदेशों में गोपनीयता का विकल्प चुना। मुझे लगता है कि किसी भी चिंता पर शायद लालच भारी पड़ता है।

कुछ मामलों में हम (अवैध) कर चोरी के बारे में बात कर रहे हैं और कुछ मामलों में (वैध तरीके से) कर देने से बचने के बारे में बात कर रहे हैं। अंतर यह है कि क्या उक्त लोगों ने अपने देशों में अधिकारियों को उनके द्वारा उपयोग किये जा रहे ढांचों के बारे में पूरी तरह से सूचित किया था। उदाहरण के लिए जब मैंने पढ़ा कि मीडिया ने उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब देने से मना कर दिया। इससे लगता है कि बात कर चोरी की है। हालांकि यह अभी साबित नहीं हुआ है।

हालात में सुधार होता क्यों नहीं दिख रहा?

पिछले 20 से 30 सालों में अंतरराष्ट्रीय नियमन में ऐसे नियम बनाये गये हैं जो कर अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की अनुमति देते हैं कि करदाता कर चोरी नहीं करें। इसमें ‘अपने ग्राहक को जानिए’ (केवाईसी) की व्यवस्था जोड़ी गई जिसमें किसी विशेष क्षेत्र में लेनदेन करने वालों को अपनी पूरी पहचान बतानी होती है ताकि दूसरे कार्यक्षेत्रों के साथ उस सूचना को साझा किया जा सके।

इससे पारदर्शिता आती है ताकि आपको पता चले कि किसका पैसा कहां है, ताकि कर अधिकारी इस सूचना का इस्तेमाल करके सुनिश्चित कर सकें कि उनके नागरिक कर चोरी नहीं करें।

लेकिन यह उन देशों में प्रभावी हो सकता है जहां कर प्राधिकार सरकार और राजनीति से स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन यह रूस या चीन या कई अन्य विकासशील देशों में काम नहीं करेगा। इसलिए यह मेरे लिए आश्चर्य की बात नहीं है कि कई खुलासे विकसित देशों के बाहर की गतिविधियों के बारे में हैं।

लेकिन पारदर्शिता के बाद भी कर चोरी की पनाहगाहों में बदलाव क्यों नहीं?

कुछ परिवर्तन तो आया है। कुछ क्षेत्र दूसरों की तुलना में अधिक अनुपालन करते हैं। जर्सी या केमैन द्वीप जैसे कुछ ब्रिटिश क्षेत्र हैं जो पहले की तुलना में कहीं अधिक पारदर्शी हैं। या कहें तो वे डेनमार्क या स्वीडन की तुलना में अधिक विनियमित होने का दावा कर सकते हैं।

लेकिन जिन पेशेवरों के पास कर चोरी कराने वाले ढांचे बनाने की विशेषज्ञता है, वे अब भी अक्सर इन जगहों से गतिविधियां चलाते हैं, और वे विभिन्न स्तर वाली संरचनाएं बनाते हैं जो आंशिक रूप से इन न्याय क्षेत्रों में पंजीकृत होंगे लेकिन आंशिक रूप से ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड या पनामा जैसे कम पारदर्शी नियमों वाले क्षेत्रों में पंजीकृत होंगे।

मौजूदा हालात को कैसे सुधारा जा सकता है?

पैंडोरा पेपर्स दिखाते हैं कि आंकड़ों की पारदर्शिता से जो किया जा सकता है, हम उसकी सीमाओं तक पहुंच रहे हैं। जब तक हम इसे और सख्त नहीं करते तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि यह इस तरह के दस्तावेजों का आखिरी लीक होगा।

वक्त आ गया है कि ऐसा कुछ बनाना होगा जैसा दवाओं के ऊपर लागू होता है ताकि मानकों को तोड़ने वालों पर मुकदमा चलाया जा सके। ऐसा उन देशों में भी हो सकता है जो इन गतिविधियों से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हों। अगर वे ऐसे किसी देश में जाते हैं तो उन्हें वहां पहुंचने पर गिरफ्तार किया जा सकता है।

क्या हमें एक नया अंतरराष्ट्रीय संस्थान बनाना चाहिए?

व्यावहारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय निमय बनाने की बात आती है तो तीन जगह हैं जहां यह काम हो सकता है: अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ। दुर्भाग्य की बात है कि ये तीनों अभी एक दूसरे से सहमत नहीं हो रहे। अत: इस तरह की संस्था के बारे में किसी सहमति पर पहुंचना मुश्किल होगा। अगर वे मान भी जाएं तो उन पर छोटे देशों द्वारा साम्राज्यवाद या तानाशाही करने का आरोप लगाया जाएगा।

इन तीनों को इस संबंध में एक पहल के लिए सहमत होना ही पड़ेगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Pandora Papers: Questions and Answers on Using Tax Evasion Hideaways Abroad

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