महामारी के दौरान भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य एक दूसरे का सहारा बने

By भाषा | Updated: December 19, 2021 13:20 IST2021-12-19T13:20:58+5:302021-12-19T13:20:58+5:30

Members of the transgender community in India support each other during the pandemic | महामारी के दौरान भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य एक दूसरे का सहारा बने

महामारी के दौरान भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य एक दूसरे का सहारा बने

(सोहिनी चटर्जी : लिंग, लैंगिक रुझान और महिला अध्ययन में पीएचडी शोधार्थी, वेस्टर्न यूनिवर्सिटी)

टोरंटो (कनाडा), 19 दिसंबर (द कन्वरसेशन) भारत में जाति और वर्ग विशेषाधिकारों से वंचित ट्रांसजेंडर लोगों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति को महामारी ने और कमजोर कर दिया है।

महामारी के पहले चरण के दौरान भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी कठोर और कड़े नियमों को लागू करने के परिणामस्वरूप ट्रांसजेंडर लोगों की रोजी-रोटी प्रभावित हुई। इससे हर दिन कमाकर खाने वाले ट्रांसजेंडर लोगों, यौनकर्मियों और भीख मांगने वाले तथा कई अन्य लोगों के लिए भोजन और आवास की असुरक्षा पैदा हुई।

नौकरी छूटने, लॉकडाउन और ट्रांसजेंडर लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए समान सरकारी वित्त पोषित चिकित्सा सहायता के अभाव में कई लोग ‘हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी’ नहीं करा सके।

ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकार के लिए काम करने वाली रंचना मुद्रबोयिना ने कहा, ‘‘जो लोग उपचार करवा रहे थे, उन्हें लॉकडाउन के कारण हार्मोन थेरेपी नहीं मिली। कुछ जो मासिक टेस्टोस्टेरोन हार्मोन थेरेपी उपचार करवा रही थीं, उन्हें नियमित इंजेक्शन की कमी के कारण फिर से मासिक धर्म होने लगा। महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने के कारण हमारे समुदाय में आत्महत्या के मामले भी सामने आए हैं।’’

महामारी के दौरान ट्रांसजेंडर लोगों ने सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच खो दी जिससे उनके लिए अपना जीवन यापन चलाना मुश्किल हो गया। महामारी ने अनिश्चितता बढ़ा दी। यहां तक कि ट्रांसजेंडर लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को उपलब्ध कराने के वादे किए जाने के बावजूद नौकरशाही ढांचे ने अवरोध खड़ा किया।

वित्तीय सहायता के लिए हिमायत जल्दी शुरू हुई। ट्रांसजेंडर लोगों और सरकारी अधिकारियों के बीच निरंतर बातचीत हुई। लेकिन कई लोगों को बिना स्पष्टीकरण के सहायता से वंचित कर दिया गया।

ऐसे ट्रांसजेंडर लोग जिनके पास सरकार द्वारा जारी पहचान दस्तावेज और बैंक खाते नहीं हैं या जो अंग्रेजी या हिंदी में पारंगत नहीं हैं अथवा जो डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं उन्हें भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

गारंटीकृत वित्तीय सहायता के अभाव में, कई ट्रांसजेंडर महिलाओं को निजी साहूकारों से उच्च ब्याज दरों पर धन उधार लेना पड़ा, जिससे ऋण-संबंधी हिंसा का जोखिम बढ़ गया। ट्रांसजेंडर लोगों में आत्महत्या की दर बढ़ी।

‘ट्रांस राइट्स नाउ कलेक्टिव’ की निदेशक और संस्थापक दलित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता ग्रेस बानो ने तमिलनाडु में ट्रांसजेंडर समुदाय के कलाकारों, एचआईवी पीड़ितों के साथ रहने वाले लोगों और यौनकर्मियों की मदद के लिए ऑनलाइन स्तर पर चंदा जुटाने का अभियान चलाया।

बानो अकेले नहीं थीं। कई सामुदायिक संगठनों ने सहायता प्रदान करने के लिए कदम बढ़ाया। उदाहरण के लिए, ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता सांता खुरई के नेतृत्व में ‘ऑल मणिपुर नुपी मानबी एसोसिएशन’ ने मणिपुर लौटने वाले प्रवासी श्रमिक ट्रांसजेंडर लोगों के लिए दो पृथक-वास केंद्र बनाने का काम किया।

सामुदायिक कार्य और हिमायत परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती है। ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों और नेताओं ने सरकार को बताया कि कई ट्रांसजेंडर कामगार वर्ग के लोगों के पास वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए नागरिकता के दस्तावेज या बैंक खाते नहीं थे, इसलिए सरकार को उनके लिए प्रावधान बनाना पड़ा।

सरकार के साथ अपनी बातचीत के माध्यम से ट्रांसजेंडर लोगों ने अपनी राजनीतिक समझ दिखाई। कल्याण की सार्वभौमिक धारणाओं को चुनौती दी, जटिल राहत उपायों का विरोध किया, समानता के लिए रैलियां निकाली और हाशिए के समुदायों में एकजुटता बनाई। समानता, अधिकार और न्याय के मामलों के रूप में सामाजिक सुरक्षा दायरे तक पहुंच सुरक्षित करने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय के संघर्ष पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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Web Title: Members of the transgender community in India support each other during the pandemic

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