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आमजन की तरह अत्यधिक दक्ष चिकित्सक भी कठिन फैसले लेते समय मानसिक शार्टकट का इस्तेमाल करते हैं

By भाषा | Updated: October 15, 2021 12:57 IST

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(मानस्विनी सिंह, मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय)

मैसाचुसेट्स (अमेरिका), 15 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) चिकित्सकों का काम बहुत कठिन होता है, उन्हें अत्यंत दबाव के बीच ऐसे समय में जटिल और मुश्किल फैसले करने होते हैं, जब उन्हें मरीज, बीमारी और उपचार के बारे में सीमित जानकारी होती है और वह मुकदमों के हमेशा मंडराने वाले खतरे के बीच निजी और अस्पताल की प्राथमिकताओं के बीच संघर्ष करते रहते हैं।

तो इस प्रकार की अत्यंत अनिश्चित स्थितियों में चिकित्सक क्या करते हैं?

अन्य मनुष्यों की तरह चिकित्सक भी जटिल निर्णयों को सरल बनाने वाले त्वरित नियमों पर अनजाने में निर्भर रहते हैं। मनोवैज्ञानिक और अर्थशास्त्री इन मानसिक शार्टकट को ‘ह्यूरिस्टिक’ कहते हैं।

ह्यूरिस्टिक समस्या को सुलझाने का ऐसा दृष्टिकोण होता है, जिसके तहत मस्तिष्क ऐसी व्यावहारिक पद्धति का इस्तेमाल करता है जिसके इष्टतम, सही या तर्कसंगत होने की गारंटी नहीं होती, लेकिन यह तत्काल या अल्पकालिक निर्णय लेने के लिए मददगार होती है। उदाहरण के तौर पर, यदि आपसे जमीन पर सैंडविच गिर जाता है, तो आप यह फैसला करने के लिए पांच-सेकंड के नियम का इस्तेमाल कर सकते हैं कि उसे उठाकर खाना है या उसे फेंक देना है। यह ‘ह्यूरिस्टिक’ है। यह आपके काम के संभावित परिणाम के लाभ और हानि पर लंबी मानसिक बहस में फंसे बिना तेज और आसानी से सही फैसला करने में आपकी मदद करता है।

आम आदमी का ‘ह्यूरिस्टिक’ पर निर्भर रहना समाज के लिए आमतौर पर अधिक चिंता का विषय नहीं है, लेकिन चिकित्सकों द्वारा इसका इस्तेमाल करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

प्रसव कक्ष में ‘ह्यूरिस्टिक’

मैं एक ऐसा स्वास्थ्य अर्थशास्त्री हूं जो निर्णय लेने के सिद्धांत और स्वास्थ्य देखभाल के बीच संबंध में रुचि रखता है। किसी बच्चे के जन्म में मदद करते समय एक चिकित्सक को सभी प्रकार के फैसले करने होते है: यदि बच्चे में संकट के लक्षण दिखते हैं, तो क्या महिला की प्रसव वेदना जारी रहनी चाहिए? क्या कदम उठाने की आवश्यकता है? क्या यह तत्काल ऑपरेशन करने की स्थिति है? चिकित्सक एक भयावह, भावनात्मक वातावरण में जीवन और मृत्यु के विकल्पों के बीच चयन के लिए जिम्मेदार होता है।

पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित मेरे हालिया अनुसंधान में मैंने पाया कि चिकित्सक प्रसव कक्ष में कई तरीकों से ह्यूरिस्टिक का इस्तेमाल करते हैं, जो मां और शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।

पिछले 21 से अधिक साल में 86,000 से अधिक प्रसव के दो शैक्षणिक अस्पतालों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद मैंने पाया कि किसी मरीज के प्रसव के दौरान जटिलताओं से निपटने वाले चिकित्सक के फैसलों का प्रभाव अगले मरीज के प्रसव के दौरान भी पड़ने की संभावना होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी चिकित्सक की मरीज को योनि से प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव हुआ हो, तो इस बात की अधिक संभावना है कि चिकित्सक अपने अगले मरीज का भी ऑपरेशन करने का फैसला कर सकता है, भले ही उस मरीज के लिए इसकी आवश्यकता नहीं हो।

चिकित्सकों के फैसला करने के इस तरीके के कारण प्रसव जटिलाओं से अधिक जूझने वाले कम संसाधनों वाले अस्पतालों के मरीजों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि इन अस्पतालों के चिकित्सकों को निर्णय लेते समय अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ह्यूरिस्टिक का सहारा लेने के कारण इन चिकित्सकों के गलत फैसले करने की संभावना अधिक होती है।

अनुसंधानकर्ताओं की इस बात में विशेष रुचि रही है कि विशेषज्ञ ह्यूरिस्टिक का उपयोग कैसे करते हैं, क्योंकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ भी निर्णय लेने की उन्हीं खामियों का शिकार होते हैं, जिनसे आम व्यक्ति पीड़ित होते हैं। इस बात के कई प्रमाण हैं कि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ - मसलन फॉरेंसिक वैज्ञानिक, रियल एस्टेट एजेंट, एथलीट, न्यायाधीश, शिक्षाविद और चिकित्सक - वास्तव में ह्यूरिस्टिक पर निर्भर रहते हैं। क्या इस तरह के ह्यूरिस्टिक के उपयोग से खराब परिणाम मिलते हैं - क्या इसे ‘‘पूर्वग्रह’’ कहा जा सकता है - यह अब भी बहस का विषय है।

समय की बचत करने में उपयोगी या पूर्वग्रह के कारण खतरनाक?

ह्यूरिस्टिक के कारण पैदा हुए पूर्वग्रह के कारण ‘‘इष्टतम’’ निर्णय लेने की दिशा में भटकाव उत्पन्न होता है। हालांकि, वास्तविक जीवन में इष्टतम निर्णय की पहचान करना मुश्किल है, क्योंकि आमतौर पर आप नहीं जानते कि भविष्य में क्या हो सकता था। यह चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष रूप से प्रासंगिक है।

उदाहरण के तौर पर ‘जीतने पर निर्णय पर ठहरना और हारने पर निर्णय बदलने’ की रणनीति लीजिए। कुछ अध्ययन यह दिखाते हैं कि ‘‘खराब’’ घटनाक्रम के बाद चिकित्सक रणनीतियां बदलते हैं। यदि किसी दवा के कारण जटिलताएं पैदा हुई हों, तो चिकित्सकों के इसे लेने की सलाह फिर से देने की संभावना कम होती हैं। इसके अलावा यदि कोई चिकित्सक किसी मरीज के रोग का पता नहीं कर पाता है, तो वह अपने अन्य मरीजों की अधिक जांच कर सकता है, लेकिन यह कहना मुश्किल होगा कि अधिक जांच कराना त्रुटिपूर्ण ह्यूरिस्टिक है। जांच कराने से बीमारी का सटीकता से पता लगाने की संभावना अधिक होती है।

क्या ह्यूरिस्टिक पर चिकित्सकों की निर्भरता को कम किया जा सकता है? संभवत: ऐसा किया जा सकता है, लेकिन यह समझना अहम है कि चिकित्सक अत्यंत दबाव के बीच ऐसे निर्णय लेते हैं, जिनके अच्छे या बुरा परिणाम निकल सकते हैं। चिकित्सकों की निर्णय लेने की क्षमता में सुधार के उद्देश्य से रणनीतियों को बनाना और कार्यान्वित करना एक चुनौती होगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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