कोरोना संकट के बीच भारतीय-अमेरिकी दंपति ने तैयार किया किफायती वेंटिलेटर, जल्द शुरू होगा उत्पादन
By भाषा | Updated: May 26, 2020 11:25 IST2020-05-26T11:25:35+5:302020-05-26T11:25:35+5:30
कोरोना वायरस (Coronavirus) वैश्विक महामारी के दौरान पर्याप्त वेंटिलेटरों के अभाव के चलते भारतीय मूल के अमेरिकी दंपति ने किफायती और वहनीय आपात वेंटिलेटर विकसित किया है।

किफायती और वहनीय आपात वेंटिलेटर का जल्द शुरू होगा उत्पादन (फोटो सोर्स- फेसबुक)
वॉशिंगटन: भारतीय मूल के अमेरिकी दंपति ने किफायती और वहनीय आपात वेंटिलेटर विकसित किया है, जो जल्द ही उत्पादन स्तर तक पहुंच जाएगा और भारत तथा विकासशील देशों में कम कीमत पर उपलब्ध होगा ताकि चिकित्सिकों को कोविड-19 मरीजों के इलाज में मदद मिल सके।
कोरोना वायरस (Coronavirus) वैश्विक महामारी के दौरान पर्याप्त वेंटिलेटरों के अभाव की जानकारी होने पर, देवेश रंजन और उनकी पत्नी कुमुद रंजन ने महज तीन हफ्ते के भीतर आपात वेंटिलेटर विकसित किया है।
मालूम हो, देवेश रंजन प्रतिष्ठित ज़ॉर्जिया टेक जॉर्ज डब्ल्यू वुडरफ स्कूल ऑफ मेकैनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं, जबकि उनकी पत्नी कुमुद रंजन अटलांटा में फिजिशियन के तौर पर काम करती हैं। वहीं, प्रोफेसर रंजन ने पीटीआई-भाषा को बताया, “अगर आप बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करते हैं, तो यह 100 डॉलर से कम कीमत पर तैयार किया जा सकता है। अगर निर्माता इसकी कीमत 500 डॉलर भी रखते हैं तो उनके पास बाजार से पर्याप्त लाभ कमाने का अवसर होगा।’’
उन्होंने बताया कि इस प्रकार के वेंटिलेटर की अमेरिका में औसत कीमत 10,000 डॉलर है। हालांकि, रंजन ने स्पष्ट किया कि उनके द्वारा विकसित वेंटिलेटर आईसीयू वेंटिलेटर नहीं है जो अधिक परिष्कृत होता है और जिसकी कीमत अधिक होती है। उन्होंने बताया कि यह ‘ओपन-एयरवेंटजीटी’ वेंटिलेटर सांस संबंधी बीमारी से निपटने के लिए विकसित किया गया है जो कोविड-19 मरीजों में एक आम लक्षण है जिससे उनके फेफड़े अकड़ जाते हैं और उनको सांस लेने के लिए वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत होती है।
जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विकसित इस वेंटिलेटर में इलेक्ट्रॉनिक सेंसर और कंप्यूटर कंट्रोल का इस्तेमाल किया गया है जो महत्वपूर्ण क्लिनिकिल मानकों जैसे सांस चलने की गति, प्रत्येक चक्र में फेफड़ों में आने-जाने वाली वायु, सांस लेना-छोड़ना और फेफड़ों पर दबाव को देखते हैं। डॉ कुमुद ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “इस परियोजना का मकसद कम कीमत वाला अस्थायी वेंटिलेटर बनाना था जो फिजिशियनों की मदद कर सके।”
साथ ही उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के बड़े पैमाने पर प्रसार को देखते हुए विश्व भर में वेंटिलेटर की कमी होने जा रही है। बिहार के पटना में पले-बढ़े रंजन ने त्रिची के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोनसिन-मेडिसन से पीएचडी की और पिछले छह साल से जॉर्जिया टेक में पढ़ा रहे हैं।
वहीं कुमुद छह साल की उम्र में रांची से अपने माता-पिता के साथ अमेरिका आ गईं थी। उन्होंने अपनी मेडिकल ट्रेनिंग और रेसिडेंसी न्यू जर्सी में पूरी की। दंपति का मानना है कि भारत के पास कम कीमत वाले वेंटिलेटर बनाने तथा विश्व भर में किफायती दरों पर उसका निर्यात करने की क्षमता है।