कोलंबो, छह जनवरी विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत हमेशा श्रीलंका का ‘‘भरोसेमंद साझेदार और विश्वसनीय मित्र’’ बना रहेगा तथा नयी दिल्ली ‘‘पारस्परिक हित, पारस्परिक विश्वास, पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक संवेदनशीलता’’ के साथ कोलंबो के साथ आपसी संबंधों को मजबूत बनाने के पक्ष में है।
श्रीलंका के विदेश मंत्री दिनेश गुणवर्धन के साथ मीडिया को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी भारत-श्रीलंका के संबंधों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाल पाई है और दोनों देश कोविड-19 के बाद सहयोग को लेकर आशान्वित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कोविड हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर कोई असर नहीं डाल पाया है। वास्तविकता यह है कि उच्चस्तरीय संपर्क कायम रहे और असल में पिछले साल इनमें मजबूती आई तथा हमारे प्रधानमंत्रियों के बीच हुई ऑनलाइन बैठक इन संबंधों पर एक मुहर थी।’’
जयशंकर ने इससे पहले राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे से मुलाकात की।
उन्होंने राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से शुभकामनाएं दीं और कोविड काल के बाद स्वास्थ्य सेवाओं तथा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सहयोग पर चर्चा की।
उन्होंने कहा, ‘‘श्रीलंका के विकास में भारत भरोसेमंद साझेदार रहेगा।’’
राजपक्षे ने कहा कि उनके और जयशंकर के बीच संबंधों को मजबूत बनाने को लेकर चर्चा हुई।
श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने ट्वीट किया, ‘‘कोविड-19 के बाद आर्थिक विकास, स्वास्थ्य सुविधा, ऊर्जा उत्पादन आदि के माध्यम से श्रीलंका और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा हुई।’’
जयशंकर ने कहा कि ‘पड़ोसी पहले’ की अपनी नीति पर कायम रहते हुए भारत ने समय पर सहायता के रूप में दवाइयां उपलब्ध कराकर कोविड से निपटने में श्रीलंका की मदद की।
उन्होंने कहा, ‘‘अब हम कोविड काल के बाद की साझेदारी को लेकर आशान्वित हैं।’’
श्रीलंका के विदेश मंत्री के आमंत्रण पर जयशंकर पांच से सात दिसंबर तक द्वीप देश की तीन दिन की यात्रा पर हैं। यह 2021 में उनकी पहली विदेश यात्रा है। साथ ही वह नए साल में श्रीलंका पहुंचने वाली पहली विदेशी हस्ती हैं।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भारत अपना कर्तव्य मानता है।
जयशंकर के साथ कोलंबो में बैठक के दौरान श्रीलंका के नेतृत्व ने कोविड रोधी टीका हासिल करने के लिए औपचारिक रूप से भारत की सहायता मांगी।
यह आश्वासन देते हुए कि श्रीलंका के लिए भारत ‘‘भरोसेमंद और विश्वसनीय साझेदार है’’, जयशंकर ने कहा कि नयी दिल्ली ‘‘पारस्परिक हित, पारस्परिक विश्वास, पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक संवेदनशीलता’’ के साथ कोलंबो के साथ आपसी संबंधों को मजबूत बनाने के पक्ष में है।
जयशंकर ने रेखांकित किया कि दोनों पड़ोसी फिलहाल कोविड-19 के बाद की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह सिर्फ जनस्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि आर्थिक संकट की स्थिति भी है।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘ऐसे सहयोग के साथ निकट पड़ोसी होने के नाते संबंधों को और मजबूत बनाने की क्षमता है। इनमें से कुछ से तत्काल राहत मिल सकती है, अन्य का श्रीलंका के विकास पर सकारात्मक मध्यावधिक प्रभाव हो सकता है। कई प्रस्तावों पर चर्चा हो रही है जिनमें अवसंरचना, ऊर्जा और परिवहन शामिल हैं।’’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हमने कल से आज तक कुछ महत्वपूर्ण अवसरों के संबंध में चर्चा की है जिसमें दवाओं के उत्पादन के लिए विशेष जोन और पर्यटन शामिल हैं। मैं सुनिश्चित करूंगा कि भारत इसपर तेजी से काम करे।’’
जयशंकर का बयान श्रीलंका में अवसंरचना संबंधी विभिन्न परियोजनाओं में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच आया है। ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल के तहत चीन ने अभी तक श्रीलंका में ढांचागत परियोजनाओं पर आठ अरब डॉलर से ज्यादा राशि निवेश की है। कर्ज के चलते श्रीलंका ने 2017 में अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन को सौंप दिया था।
विदेश मंत्री ने श्रीलंका का यह भी आह्वान किया कि वह मेलमिलाप की प्रक्रिया के तहत ‘‘अपने खुद के हित में’’ एक संगठित देश के भीतर समानता, न्याय और सम्मान की अल्पसंख्यक तमिलों की उम्मीदों को पूरा करे।
उन्होंने श्रीलंका की मेलमिलाप प्रक्रिया में भारत के समर्थन और जातीय सौहार्द को प्रोत्साहन देने वाले ‘‘समावेशी राजनीतिक दृष्टिकोण’’ को रेखांकित किया।
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों में भारत हमेशा श्रीलंका की एकता, स्थिरता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति कटिबद्ध रहा है। श्रीलंका में मेलमिलाप की प्रक्रिया के प्रति हमारा समर्थन चिरकालिक है तथा हम जातीय सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए एक समावेशी राजनीतिक दृष्टिकोण रखते हैं।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘एक संगठित श्रीलंका के भीतर समानता, न्याय, शांति एवं सम्मान की तमिल लोगों की उम्मीदों को पूरा करना खुद श्रीलंका के अपने हित में है। 13वें संविधान संशोधन सहित सार्थक अधिकार पर श्रीलंका सरकार द्वारा की गईं प्रतिबद्धताओं पर यह समान रूप से लागू होता है।’’
उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप श्रीलंका की प्रगति और समृद्धि को भी निश्चित तौर पर मजबूती मिलेगी।
श्रीलंका के संविधान का 13वां संशोधन तमिल समुदाय को अधिकार देने की बात करता है जिसके तहत देश में प्रांतीय परिषद प्रणाली लाई गई थी। यह संशोधन भारत-श्रीलंका समझौता-1987 के बाद किया गया था और नयी दिल्ली कोलंबो से इस संशोधन को पूर्ण रूप से क्रियान्वित करने को लगातार कहती रही है।
जयशंकर का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपुल्स पार्टी और इसके सहयोगी दल प्रांतीय परिषद प्रणाली को खत्म करने के लिए अभियान चला रहे हैं।
पार्टी के सिंहल बहुल कट्टरपंथी 1987 में स्थापित प्रांतीय परिषद प्रणाली को पूरी तरह समाप्त करने की वकालत कर रहे हैं।
तमिल मेल-मिलाप प्रक्रिया का मुद्दा पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके श्रीलंकाई समकक्ष महिन्दा राजपक्षे के बीच हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भी प्रमुखता से उठा था।
मोदी ने कहा था कि श्रीलंका सरकार को तमिल समुदाय के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक प्रावधान को पूरी तरह क्रियान्वित करना चाहिए।
बढ़ती समुद्री चुनौतियों से निपटने में श्रीलंका की क्षमता को मजबूत करने में मदद की भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए जयशंकर ने कहा कि नयी दिल्ली द्वीपीय देश में जेलों में बंद भारतीय मछुआरों की जल्द रिहाई को लेकर आशान्वित है।
जयशंकर ने कहा कि भारत-श्रीलंका संयुक्त कार्यकारी समूह ने हाल में बैठक की थी और मछली पकड़ने से संबंधित सभी लंबित मुद्दों पर खुलकर चर्चा की थी।
उन्होंने कहा, ‘‘हम मछुआरों की जल्द वापसी को लेकर स्वाभाविक तौर पर आशान्वित हैं।’’
श्रीलंकाई जलक्षेत्र में मछली पकड़ने के आरोप में पकड़े गए भारतीय मछुआरों को पिछले सप्ताह जाफना में भारतीय महावाणिज्य दूतावास ने राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराई थी।
भारतीय उच्चायोग ने यहां कहा कि वह पकड़े गए मछुआरों की जल्द रिहाई के लिए श्रीलंका सरकार के संपर्क में है।
भारत और श्रीलंका के संयुक्त कार्यकारी समूह ने पिछले सप्ताह एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में मछुआरों से जुड़े मुद्दों तथा कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के तौर-तरीकों पर चर्चा की थी।
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