कोविड के दौरान आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोगों के साथ भारी भेदभाव : अध्ययन

By भाषा | Updated: August 4, 2021 14:44 IST2021-08-04T14:44:30+5:302021-08-04T14:44:30+5:30

Huge discrimination against Asians living in Australia during Kovid: Study | कोविड के दौरान आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोगों के साथ भारी भेदभाव : अध्ययन

कोविड के दौरान आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोगों के साथ भारी भेदभाव : अध्ययन

अलाना काम्प, केविन डन, निदा डेंसन, राचेल शार्पल्स, वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी और माटेओ वर्गानी, डीकिन यूनिवर्सिटी

पेनरिथ (ऑस्ट्रेलिया), चार अगस्त (द कन्वरसेशन) यह खबर अपने आप में ‘‘नयी’’ नहीं है कि आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोग महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर नस्लभेद का अनुभव कर रहे हैं। वह भी तब जबकि मौजूदा आंकड़े कोविड से संबंधित नस्लभेद की सही तस्वीर नहीं दिखाते। अधिकांश मामलों की औपचारिक तौर पर सूचना नहीं दी जा रही है और आधिकारिक सूचनाएं एशियाई आस्ट्रेलियाई लोगों पर नस्लवाद के प्रभाव को सही तरीके से पेश नहीं कर रही हैं।

आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोगों में से 2,003 लोगों को हमने अपने हालिया राष्ट्रीय सर्वेक्षण में शामिल करके उनके द्वारा अनुभव की जाने वाली नस्लवादी घटनाओं की प्रकृति, प्रकार और आवृत्ति की जांच की।

इसमें समय के साथ (महामारी से पहले और उसके दौरान) आए बदलाव, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य, खैरियत और अपनेपन की भावना पर इन घटनाओं का असर, नस्लवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग और ऐसा होता देखने वालों की कार्रवाई (या निष्क्रियता) की भी जांच की।

हमारे अध्ययन में पाया गया कि दस में से चार एशियाई ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने महामारी के दौरान नस्लवाद का अनुभव किया (और लगभग इतनी ही संख्या में लोगों ने नस्लवाद देखा)।

इनमें से, हालांकि, केवल 3% ने ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार आयोग को घटना की सूचना दी। पुलिस को अधिक रिपोर्ट (12%) की, जबकि प्रतिभागियों के एक बहुत बड़े अनुपात (29%) ने उस नस्लवाद के बारे में नहीं बताया, जिसे उन्होंने अनुभव किया या देखा (दोस्तों या परिवार को भी नहीं)।

महामारी की शुरुआत में एएचआरसी को इस तरह की घटनाओं की सूचना सामान्य से अधिक प्रतीत होती है। फरवरी 2020 में, एएचआरसी ने उस वित्तीय वर्ष में नस्लीय भेदभाव की शिकायतों की उच्चतम मासिक संख्या दर्ज की। और 2020 की शुरुआत में आयोग को नस्लीय भेदभाव की सूचना देने वाले चार लोगों में से एक ने उन घटनाओं को कोविड-19 से जोड़ा।

हमारे निष्कर्ष चिंताजनक रूप से इस ओर इशारा करते हैं कि यह उस नस्लवाद से बहुत कम है, जो महामारी के दौरान दरअसल हो रहा है।

एशियाई ऑस्ट्रेलियाई नस्लवाद की रिपोर्ट क्यों नहीं कर रहे हैं? हमारे उत्तरदाताओं के अनुसार, औपचारिक रिपोर्टिंग की बाधाओं में वैधानिक एजेंसियों में विश्वास की कमी और यह धारणा शामिल है कि नस्लवाद की रिपोर्ट का जवाब नहीं दिया जाएगा।

उदाहरण के लिए, 63% इस बात से सहमत थे कि रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, 60% का कहना था कि घटना से ठीक से निपटा नहीं जाएगा, और 40% को रिपोर्ट लिखने वालों पर भरोसा नहीं था। जैसा कि एक प्रतिभागी ने कहा:

मुझे नहीं लगता कि पुलिस बहुत कुछ करेगी, वे हमेशा कहते हैं कि उनके पास कम संसाधन हैं तो वे किसी ऐसे गुंडे का पता लगाने के लिए समय और संसाधन क्यों खर्च करेंगे, जिसने नस्ली भेदभाव किया हो।

औपचारिक रिपोर्ट दर्ज करने वालों के प्रति एक और अधिक तीखा अविश्वास भी व्यक्त किया गया था:

घटना का अपराधी उस कंपनी का ग्राहक था जिसके लिए मैं काम कर रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर मैंने घटना की सूचना दी होती, तो इसे नजरअंदाज कर दिया जाता। इससे भी बदतर, मुझे डर था कि मुझे घटना की रिपोर्ट करने पर उसके नतीजे भुगतने पड़ते।

नस्लवादी घटनाओं की रिपोर्ट करने में निराशा, शर्म या अक्षमता की भावना अन्य बाधाएं थीं: 63% ने कहा कि इससे कोई मदद नहीं मिलेगी, 54% ने असहज या शर्मिंदा महसूस किया, और 50% घटना के बारे में भूलना चाहते थे।

एक प्रतिभागी ने समझाया:

यदि ऑस्ट्रेलिया में कोई श्वेत व्यक्ति और एशियाई व्यक्ति है तो वे हमेशा श्वेत व्यक्ति का पक्ष लेते हैं, भले ही एशियाई पीड़ित हो।

आधे से अधिक प्रतिभागियों को यह भी नहीं पता था कि किसी घटना की रिपोर्ट कैसे करें, जबकि आधे से कम को यह नहीं पता था कि वे इस तरह की घटना को रिपोर्ट कर सकते हैं। एक प्रतिभागी ने कहा:

मुझे नहीं पता कि वे कौन थे और कैसे रिपोर्ट करना है। जहां भी यह हुआ वहां कोई सुरक्षा कैमरा नहीं था ताकि पुलिस उस व्यक्ति का पता लगा सके।

यह अन्य अध्ययनों के अनुरूप है जिसमें नस्लवाद के बारे में बताने में समान बाधाएं पाई गई हैं, जिसमें इस बारे में ज्ञान की कमी और इसके बारे में कुछ भी करने के लिए एजेंसियों के प्रति विश्वास की कमी शामिल है।

जातिवाद के दूरगामी परिणाम

लोगों के स्वास्थ्य और खैरियत पर नस्लवाद के प्रभावों पर शोध के अनुरूप, हमारे अध्ययन में एशियाई आस्ट्रेलियाई लोगों द्वारा अनुभव किया गया नस्लवाद उनमें तनाव, अवसाद, चिंता और ‘‘कोई अपना न होने ’’ की उच्च दर से जुड़ा हुआ है।

चिंताजनक रूप से, कोविड के दौरान व्यक्त की जा रही एशियाई विरोधी भावनाओं के और भी व्यापक परिणाम हैं। अधिकांश प्रतिभागी जिन्होंने महामारी के दौरान सीधे तौर पर नस्लवाद का अनुभव नहीं भी किया है, उन्हें हर समय यह लगता है कि उन्हें नस्लभेद के बारे में कुछ कहा या कुछ किया जा सकता है।

अध्ययन में शामिल बहुत से लोग जिन्होंने नस्लवाद का अनुभव नहीं किया है, उन्होंने कहा कि वे नस्लवाद की आशंका के चलते ऐसे स्थानों और स्थितियों से बचते हैं।

अन्य शोध में पाया गया है कि नस्लवाद के अनुभव या इसकी आशंका किसी व्यक्ति की गतिविधियों और सुरक्षा की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। यह, बदले में, स्वास्थ्य देखभाल, रोजगार और आवास जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुंच को सीमित कर सकता है।

इसलिए यह एक बड़ी चिंता का विषय है कि महामारी के दौरान संभावित नस्लभेद की आशंका, चिंता और इससे बचने की फिक्र उन लोगों में भी बहुत ज्यादा है, जिन्हें सीधे तौर पर इसका निशाना नहीं बनाया गया है।

नस्लभेद के बारे में आशंका और चिंता इतनी अधिक क्यों है? नस्लभेद के बारे में आशंका और चिंता की ये उच्च दर दो महत्वपूर्ण कारकों से जुड़ी हो सकती है।

पहली बात तो यह है कि ऑस्ट्रेलियाई और वैश्विक मीडिया दोनो तथा सार्वजनिक बोलचाल में महामारी का नस्लीकरण किया जा रहा है, साथ ही विश्व स्तर पर एशियाई विरोधी नस्लवाद और ज़ेनोफ़ोबिया में वृद्धि की रिपोर्ट है। यह ऑस्ट्रेलिया में लोगों की चिंताओं को हवा दे सकता है।

दूसरा, नस्लवाद और भेदभाव के पिछले अनुभव लोगों को बार-बार होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, खासकर महामारी जैसे संकट के दौरान। महामारी से पहले, एशियाई आस्ट्रेलियाई लोगों को अन्य आस्ट्रेलियाई लोगों की तुलना में नस्लवाद का अनुभव होने की आशंका दोगुनी थी।

लेकिन संस्थानों में विश्वास या रिपोर्ट की गई घटनाओं पर पर्याप्त डेटा के बिना, नस्लवाद का पूरा प्रभाव - और यह कैसे सामाजिक सामंजस्य और व्यक्तिगत स्वास्थ्य और सेहत को कमजोर करता है - सामने नहीं आ पाता है।

सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों को ऐसे तंत्र विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है जो ‘‘बिना किसी पूर्वाग्रह के’’ घटनाओं की सूचना देने का माहौल तैयार करें। जैसे कि थर्ड पार्टी रिपोर्टिंग सिस्टम। (हेट क्राइम नेटवर्क द्वारा भी इसकी वकालत की गई है।) इसके उदाहरणों में ब्रिटेन का ट्रू विजन रिपोर्टिंग टूल और इस्लामिक काउंसिल ऑफ विक्टोरिया की इस्लामोफोबिया सपोर्ट सर्विस शामिल हैं।

जैसा कि हमारे शोध से पता चलता है, सूचना देने की प्रक्रियाओं और प्रतिक्रियाओं को सुव्यवस्थित और सभी समुदायों के लिए सुलभ बनाने की आवश्यकता है। इससे सूचना देने के प्रति विश्वास बढ़ेगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Huge discrimination against Asians living in Australia during Kovid: Study

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