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जलवायु वार्ता फिर शुरू, विश्वसनीय समझौते पर मुहर लगने की उम्मीद

By भाषा | Updated: November 13, 2021 18:56 IST

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ग्लासगो, 13 नवंबर (एपी) संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में शामिल वार्ताकार शनिवार को नए प्रस्ताव लेकर आयोजन स्थल पर फिर एकत्र हुए। इन प्रस्तावों से ऐसे समझौते पर मुहर लगाने में मदद मिल सकती है जिसे ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से निपटने के वास्ते दुनिया के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए विश्वसनीय कहा जा सकता है।

स्कॉटलैंड के ग्लासगो में वार्ता की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश अधिकारियों ने आधिकारिक सीमा निकलने के एक दिन बाद नया मसौदा समझौता जारी किया। इससे पहले, शुक्रवार देर रात इन अधिकारियों ने लगभग 200 देशों के वार्ताकारों को कुछ आराम करने को कहा था।

अमेरिका के जलवायु दूत जॉन केरी और उनके चीनी समकक्ष ज़ी ज़ेनहुआ ने शुक्रवार देर रात इस बारे में सतर्कता के साथ आशा जताई थी कि बातचीत आगे बढ रही है।

व्यापक निर्णय संबंधी प्रस्ताव में विवादास्पद भाषा बरकरार रही जिसमें देशों से ‘‘बिना रुके कोयले से बिजली और अपर्याप्त जीवाश्म ईंधन सब्सिडी से चरणबद्ध तरीके से निकलने की दिशा में प्रयास’’ में तेजी लाने के लिए कहा गया है।

लेकिन एक नए अतिरिक्त पाठ में कहा गया है कि राष्ट्र ‘‘एक उचित परिवर्तन के लिए समर्थन की आवश्यकता’’ को पहचानेंगे।

वार्ता की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश अधिकारी आलोक शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि देश ग्लासगो में एक महत्वाकांक्षी समझौते को अंजाम देंगे।

बैठक के लिए प्रवेश कर रहे शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि सहकर्मी इस मौके का लाभ उठाएंगे।’’

कुछ अभियान समूहों ने कहा है कि मौजूदा प्रस्ताव पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं।

ऑक्सफैम समूह से संबंधित ट्रेसी कार्टी ने कहा, ‘‘यहां ग्लासगो में, दुनिया के सबसे गरीब देशों के परिदृश्य से ओझल हो जाने का खतरा है, लेकिन अगले कुछ घंटों में हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं उसे बदल सकते हैं और बदलना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि जो चर्चा हो रही है, वह अब भी पर्याप्त नहीं है।

संबंधित एक अन्य प्रस्ताव में, देशों को 2025 तक 2035 के लिए उत्सर्जन में कमी के वास्ते और 2030 तक 2040 के लिए नए लक्ष्य प्रस्तुत करने के वास्ते ‘‘प्रोत्साहित’’ किया गया है, जिससे पांच साल का चक्र स्थापित होता है। पहले, विकासशील देशों से केवल हर 10 साल में ऐसा करने की उम्मीद की जाती थी।

प्रस्तावित समझौते में कहा गया है कि 2015 के पेरिस समझौते के अनुरूप, पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फ़ारेनहाइट) पर सीमित करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, देशों को अपने प्रयासों को और तेज करने की आवश्यकता होगी। इसमें कहा गया है कि इसके लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में निरंतर कमी करनी होगी, जिसमें 2010 के स्तर के सापेक्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी और सदी के मध्य तक इसका उत्सर्जन शून्य करने के साथ ही अन्य ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में भी गहरी कमी लानी होगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया 2015 के पेरिस समझौते के अनुरूप पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फ़ारेनहाइट) तक सीमित करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग पर नहीं है।

नवीनतम मसौदा समझौते में इस बारे में ‘‘खतरनाक और अत्यधिक चिंता व्यक्त की गई है कि मानवीय गतिविधियां अब तक लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस (2 फारेनहाइट) ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का कारण बनी हैं और यह प्रभाव पहले से ही हर क्षेत्र में महसूस किया जा रहा है।’’

जलवायु परिवर्तन के भविष्य के विनाशकारी प्रभावों को लेकर गरीब देशों द्वारा मांगी गई वित्तीय सहायता के मुद्दे पर देश आपस में विभाजित हैं और अमेरिका इस पर लगातार गहरी आपत्ति व्यक्त करता रहा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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