अमीर, गरीब देशों के बीच की खाई से जूझ रहा जलवायु शिखर सम्मेलन

By भाषा | Updated: November 9, 2021 21:12 IST2021-11-09T21:12:01+5:302021-11-09T21:12:01+5:30

Climate summit battling gap between rich, poor countries | अमीर, गरीब देशों के बीच की खाई से जूझ रहा जलवायु शिखर सम्मेलन

अमीर, गरीब देशों के बीच की खाई से जूझ रहा जलवायु शिखर सम्मेलन

ग्लासगो, नौ नवंबर (एपी) संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन अपने अंतिम पड़ाव की ओर रफ्ता-रफ्ता बढ़ रहा है और शुक्रवार को इसका समापन होना है, लेकिन आज भी बड़े मतभेद बने हुए हैं। अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई मूल रूप से धन पर आकर अटकती है। इसलिए यह समय राजनयिक तौर पर आगे बढ़ने का है।

ग्लासगो में दो सप्ताह के जलवायु सम्मेलन में पहली बार सरकार के प्रमुखों को इस बारे में बात करते हुए देखा गया कि कैसे ग्लोबल वार्मिंग पर अंकुश लगाना अस्तित्व की लड़ाई है। नेताओं ने बड़ी तस्वीरों पर ध्यान केंद्रित किया, न कि बातचीत के लिए महत्वपूर्ण जटिल बिंदुओं पर। तब लगभग एक सप्ताह तक तकनीकी बातचीत में उन प्रमुख विवरणों पर ध्यान केंद्रित किया गया, कुछ चीजें हुईं भी, लेकिन वास्तव में कठिन परिस्थितियों का हल नहीं हो सका।

अब, उच्च स्तरीय वार्ताओं का समय आ गया है जब विभिन्न देशों के मंत्री या अन्य वरिष्ठ राजनयिक राजनीतिक निर्णय लेने के लिए आगे आएं, जो तकनीकी गतिरोध को समाप्त करने वाले हों।

ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के तीन लक्ष्य रहे हैं, जो अब तक पहुंच से बाहर हैं:- पहला, 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को आधा करना; दूसरा- अमीर देशों द्वारा गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सालाना 100 अरब डॉलर देना; और तीसरा- यह सुनिश्चित करना कि उस राशि का आधा हिस्सा जलवायु परिवर्तन के बढ़ते नुकसान से निपटने के लिए खर्च करने में जाए।

समझौता करने के लिए उन्हें इस गहरी खाई को पाटना होगा। यदि हम सटीक रूप से कहें तो कई खाई हैं यथा- विश्वास की गहरी खाई और दूसरा धन का अंतर, साथ ही उत्तर-दक्षिण की खाई भी। यह धन, इतिहास और भविष्य से संबंधित है।

एक तरफ ऐसे देश हैं जो ब्रिटेन में शुरू हुई एवं कोयले, तेल और गैस से प्रेरित औद्योगिक क्रांति से विकसित और समृद्ध बन गए, वहीं दूसरी तरफ वे राष्ट्र हैं जो अभी तक विकसित और अमीर नहीं हुए हैं तथा अब उन्हें कहा जा रहा है कि ये ईंधन पृथ्वी के लिए बहुत खतरनाक हैं।

प्रमुख वित्तीय मुद्दा 100 अरब डॉलर सालाना का संकल्प है, जो पहली बार 2009 में लिया गया था। विकसित राष्ट्र अब भी सालाना 100 अरब डॉलर की मदद तक नहीं पहुंचे हैं। इस साल अमीर देशों ने अपनी सहायता बढ़ाकर 80 अरब डॉलर प्रति वर्ष की है, जो अब भी वादे से कम है।

जैसा कि सम्मेलन के प्रमुख ने सोमवार को मौजूद देशों को प्रगति और कमियों के बारे में जानकारी दी, उसी में विकासशील देशों ने अमीर देशों के वित्तीय संकल्प अभी तक अधूरे रहने का मुद्दा भी उठाया।

बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन और विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र के निदेशक तथा जलवायु विज्ञान और नीति विशेषज्ञ सलीमुल हक ने कहा, ‘‘यहां हर कोई परेशान है। ऐसा नहीं है कि अकेले 100 अरब डॉलर से बड़ा फर्क पड़ेगा, क्योंकि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए अरबों डॉलर की जरूरत होगी, केवल 100 अरब डॉलर की नहीं।’’

उन्होंने तर्क दिया कि अमीर और गरीब देशों के बीच विश्वास की खाई को पाटने के लिए धन उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है।

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Web Title: Climate summit battling gap between rich, poor countries

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