न्यूयॉर्कः भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से मॉनसून के स्वरूप में बदलाव प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के उदय और पतन का कारण हो सकता है।
अध्ययन में उत्तर भारत के 5,700 वर्ष के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। अमेरिका स्थित रोचेस्टर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आरआईटी) के निशांत मलिक ने अपने विश्लेषण में उत्तर भारत में प्राचीन काल में जलवायु के स्वरूप का अध्ययन करने के लिए एक नई गणितीय पद्धति का उपयोग किया।
‘चाओस: एन इंटरडिसीप्लिनरी जर्नल ऑफ नॉनलिनियर साइंस’ में प्रकाशित अनुसंधान रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में गुफाओं में जमा खनिज निक्षेप में विशेष रासायनिक अवस्थाओं की मौजूदगी का पता लगाकर वैज्ञानिक क्षेत्र में पिछले 5,700 साल तक की मॉनसून की बारिश का रिकॉर्ड बना सके।
हालांकि मलिक ने कहा कि जलवायु को समझने के लिए विशिष्ट रूप से इस्तेमाल गणितीय पद्धतियों के साथ प्राचीन जलवायु का अध्ययन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। मलिक ने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन क्यों हुआ, इस बारे में अब तक अनेक मान्यताएं हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि अब तक किसी गणितीय प्रणाली से यह काम नहीं किया गया।
दक्षिण भारत, हिमालय की तलहटी में भविष्य में और अधिक बारिश की संभावना : आईआईटी केजीपी
भारत में ‘मानसून पैटर्न’ बदल रहा है और इससे दक्षिण भारत तथा हिमालय की तलहटी में भविष्य में अधिक बारिश होने की संभावना है। आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं के एक दल ने यह दावा किया है। संस्थान की ओर से शुक्रवार को जारी एक बयान के अनुसार, शोधकर्ताओं ने 1971 और 2017 के बीच 1930-70 की आधार अवधि के साथ लगभग पांच दशकों के भारतीय मानसून वर्षा के आंकड़ों का अध्ययन किया। उसने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, उत्तरी और मध्य भागों की तुलना में दक्षिण भारत में भारी बारिश देखी गई है।
सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर राजीब मैती ने कहा कि हमारा विश्लेषण दक्षिण एशिया में वर्षा की अधिकता अब दक्षिणवर्ती हिस्से में होने का इशारा करता है। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर वीरेंद्र तिवारी ने कहा कि यह अध्ययन औद्योगिक और कृषि दोनों क्षेत्रों के लिए फायदेमंद होगा। यह अध्ययन ‘नेचर पब्लिशिंग ग्रुप’ की पत्रिका ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में हाल ही में प्रकाशित हुआ था।