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दुनियाभर के शहर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तेजी से नहीं अपना रहे

By भाषा | Updated: October 24, 2021 14:04 IST

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(जॉन रेनी शॉर्ट, प्रोफेसर, मैरीलैंड विश्वविद्यालय)

बाल्टीमोर, 24 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) जलवायु परिवर्तन बाढ़, जंगलों में आग, उष्णकटिबंधीय तूफान और सूखे जैसे खतरों को बढ़ा रहा है।

अमेरिका में 2020 में रिकॉर्ड तोड़ मौसम और जलवायु आपदाओं की 22 घटनाएं हुई और प्रत्येक आपदा से कम से कम एक अरब डॉलर का नुकसान हुआ। अभी तक 2021 में इन आपदाओं में 18 लोगों की मौत हो चुकी है।

मैंने शहरी मुद्दों का अध्ययन किया और कई वर्षों तक प्रकृति के साथ शहरों के संबंध का विश्लेषण किया। जैसा कि मैंने देखा कि शहर तेजी से विषम मौसम परिस्थितियों की चपेट में आ रहे हैं और उनके जलवायु क्षेत्रों में स्थायी परिवर्तन हो रहा है। मुझे चिंता है कि जिस गति से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उतनी अधिक तेजी से शहरी इलाके इसे अपनाने के लिए कदम नहीं उठा रहे हैं।

1950 में दुनिया की केवल 30 प्रतिशत आबादी शहरी इलाकों में रहती थी, आज यह आंकड़ा 56 प्रतिशत है और इसके 2050 तक 68 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। शहरी इलाकों के जलवायु परिवर्तन को अपनाने में नाकामी से लाखों लोगों की जान खतरे में पड़ जाएगी।

विषम मौसम और जलवायु परिवर्तन के कारण खराब मौसम की बढ़ती घटनाएं :

जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन व्यापक और तेज है। शीतोष्ण कटिबंध वाले शहरों में इसका मतलब है कि अधिक गर्म हवाएं चलेंगी और सर्दी का मौसम कम अवधि के लिए होगा।

उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय शहरों में इसका मतलब है कि बारिश के मौसम में बारिश अधिक होगी और गर्मी में गर्मी अधिक पड़ेगी। ज्यादातर तटीय शहरों में समुद्र का जल स्तर बढ़ने का खतरा होगा। दुनियाभर में शहरों को अपने स्थान के आधार पर विषम मौसम का अधिक सामना करना पड़ेगा जिसमें भारी हिमपात, अधिक भयंकर सूखा, पानी की कमी, प्रचंड गर्म हवाएं, अधिक बाढ़, जंगल में आग की अधिक घटनाएं, भयंकर तूफान और तूफान के मौसम की अवधि बढ़ना शामिल है।

इन विषम मौसम परिस्थितियों का सबसे अधिक खमियाजा संवदेनशील नागरिकों यानी कि बुजुर्गों, गरीबों और अन्य को उठाना पड़ेगा जिनके पास अपने आप को बचाने के लिए पैसा और राजनीतिक संबंध नहीं हैं। विषम मौसम ही एकमात्र चिंता नहीं है।

दुनियाभर में 520 शहरों के 2019 में किए एक अध्ययन के मुताबिक, अगर देश जलवायु परिवर्तन की सीमा दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर दें तब भी जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली विषय मौसमी परिस्थितियां 2050 तक दुनियाभर में उत्तर की ओर सैकड़ों मील तक बढ़ेगी।

इससे अध्ययन में शामिल 77 प्रतिशत शहरों में साल भर में मौसमी परिस्थिति में बड़ा बदलाव होगा। 30 वर्षों से भी कम समय में दुनिया में चार प्रमुख शहरों में से तीन की बिल्कुल अलग जलवायु होगी।

जलवायु परिवर्तन को कम करना:

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए शहरों की प्रतिक्रिया दो व्यापक श्रेणियों में आती है : जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन कम करना और उन प्रभावों को अपनाना जिनसे बचा नहीं जा सकता। वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 70 प्रतिशत से अधिक उत्सर्जन शहरों में होता है जो मुख्यत: इमारतों के गर्म और ठंडा होने तथा कारों, ट्रकों और अन्य वाहनों से होता है।

शहरीकरण ने लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति और अधिक कमजोर बना दिया है। उदाहरण के लिए जैसे ही शहरीकरण का विस्तार होता है तो लोग पेड़-पौधे हटाते हैं जिससे बाढ़ आने और समुद्र स्तर बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। वे ऐसी सतहों का निर्माण भी करते हैं जो पानी को नहीं सोखती जैसे कि सड़कें और इमारतें।

दुनिया के महज 25 शहर 52 प्रतिशत शहरी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। इसका मतलब है कि इन शहरों पर ध्यान केंद्रित करने से दीर्घकालीन ताप वृद्धि में बड़ा फर्क पड़ सकता है।

चीजों को बहुत धीरे अपनाना :

जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर को अपनाने की प्रक्रिया बहुत धीमी है। इसका मतलब यह नहीं है कि कुछ नहीं हो रहा है। उदाहरण के लिए शिकागो ऐसी नीतियां बना रहा है जिनसे गर्म और आर्द्र जलवायु का अनुमान लगता है।

जितनी तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसे देखते हुए समय पर गौर करना भी महत्वपूर्ण है। यूरोपीय संघ में 75 प्रतिशत इमारतें ऊर्जा के मामले में दक्ष नहीं हैं।

दुनियाभर के शहरों को विषम मौसम परिस्थितियों से निपटने के योग्य बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। मैं इस चुनौती को पारिस्थितिकी संकट के तौर पर देखता हूं लेकिन साथ ही यह एक आर्थिक अवसर है और शहरों को 21वीं सदी और उसके बाद भी अधिक न्यायसंगत बनाने का मौका है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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