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पुराने उपायों पर टिके रहकर स्कॉट मॉरिसन भविष्य की प्रौद्योगिकियों के पीछे छिप रहे हैं

By भाषा | Updated: November 8, 2021 10:39 IST

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साइमन होम्स कोर्ट, वरिष्ठ सलाहकार, जलवायु और ऊर्जा कॉलेज, मेलबर्न विश्वविद्यालय

मेलबर्न, आठ नवंबर (द कन्वरसेशन) ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में पिछले हफ्ते, 40 से अधिक देशों ने कोयले से बनने वाली बिजली का इस्तेमाल समाप्त करने का संकल्प लिया। इनमें बड़े पैमाने पर कोयले का उपयोग करने वाले देश थे जैसे पोलैंड, कनाडा और वियतनाम - हालाँकि ऑस्ट्रेलिया उनमें नहीं था। ऑस्ट्रेलिया उस समय भी नहीं था जब मीथेन में कमी करने का प्रण लिया गया था।

पेरिस समझौते में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और कोयला, तेल और जीवाश्म गैस को तेजी से समाप्त करने की बात कही गई है। ऐसा नहीं करने पर ग्रेट बैरियर रीफ का अंत हो जाएगा और ऑस्ट्रेलिया का एक बड़ा हिस्सा लगभग रहने लायक नहीं रह जाएगा।

फिर भी मॉरिसन सरकार की प्रौद्योगिकी-संचालित नेट जीरो "योजना" में इस जीवाश्म ईंधन की लत को समाप्त करने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं हैं। यह एक रणनीति न होकर पुराने ढर्रे पर टिके रहने का प्रयास है। सरकार भविष्य को बेहतर बनाने की बजाय जो है उसे बने रहने देने पर आमादा है।

मैंने प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण के काम में 25 साल बिताए हैं और पिछले 15 वर्षों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया है। मुझे पता है कि ऑस्ट्रेलिया को उत्सर्जन में गहरी कटौती करने के लिए नई तकनीक की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। अधिकांश प्रौद्योगिकियां जो हमें चाहिए पहले से मौजूद हैं - उन्हें बस तेजी से और बड़े पैमाने पर लागू करना होगा और इसके लिए एक वास्तविक योजना की जरूरत है।

हमारे पास तकनीक है

मॉरिसन सरकार का 2050 तक शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने का मार्ग मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है, लेकिन दूर-दूर तक यह नहीं बता पाता है कि व्यवहार में इसका क्या अर्थ होगा।

उत्सर्जन में कटौती का कुल 70% कथित तौर पर प्रौद्योगिकी "निवेश", "रुझान" और "सफलता" द्वारा प्राप्त किया जाएगा। लेकिन सिर्फ तकनीक के होने भर से उत्सर्जन कम नहीं होगा, उसे लागू भी करना होगा।

सरकार ने डीकार्बोनाइजेशन को सबसे सरल तरीके से समझाने का अवसर गंवा दिया: हम जो कुछ भी कर सकते हैं उसे विद्युतीकृत करें, और इसे नवीकरणीय ऊर्जा के साथ शक्ति दें।

ऑस्ट्रेलिया का लगभग 84% उत्सर्जन ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित गतिविधियों से आता है। दूसरे देशों में किए गए हाल के विश्लेषण से पता चलता है कि विद्युतीकरण स्थापित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके 78% ऊर्जा उत्सर्जन को प्रतिस्थापित कर सकता है। विकसित की जा रही तकनीकों को जोड़ें तो यह आंकड़ा 99% तक बढ़ जाता है।

हाइड्रोजन, सरकार की दो प्राथमिकताओं में से एक है और इसके घरेलू डीकार्बोनाइजेशन में मामूली लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है। और अगर हम पीछे नहीं छूटे, तो यह एक महत्वपूर्ण निर्यात अर्जक बन सकता है।

लेकिन निकट भविष्य में जो आवश्यक है वह बहुत अधिक उबाऊ है: बहुत सारे पवन, सौर और भंडारण का निर्माण करें, जितनी जल्दी हो सके कोयले और गैस को हटा दें, और परिवहन और हीटिंग को विद्युतीकृत करें।

दशकों से ऑस्ट्रेलियाई सरकारों की पसंदीदा कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) योजना उसे बाकी उपायों से दूर रखने का कारण बनी हुई है। पहली बात तो यह है कि सीसीएस पर भारी लागत आती है, लेकिन प्रक्रिया के लिए इसका कोई लाभ नहीं होता है, इसे व्यवहार्य होने के लिए हमेशा कार्बन मूल्य या नियमन की आवश्यकता होती है। दूसरा, सीसीएस उन क्षेत्रों में हाशिये पर एक भूमिका निभा सकता है जहां उत्सर्जन को कम करना मुश्किल है, जैसे कि सीमेंट उत्पादन। कोयले और गैस के लिए इसकी कुछ खास उपयोगिता नहीं है।

लौह अयस्क की प्रचुरता और कम लागत वाली स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच को देखते हुए, ग्रीन स्टील ऑस्ट्रेलिया के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। लेकिन जब ऑस्ट्रेलिया इस क्षेत्र में हाथ आजमाने में पीछे है, एसएसएबी और वोल्वो जैसी विदेशी कंपनियां यह साबित कर रही हैं कि धातु शोधन कोयले के अब गिने चुने दिन ही बचे हैं, जबकि यह ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े निर्यात में से एक है।

यह स्पष्ट है कि प्रौद्योगिकियां तो हैं। हमें जो चाहिए वह है उन्हें लागू करना।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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