Bangladesh Hindu Violence: अतिवादी बांग्लादेश की नकेल कसे मोदी-ट्रम्प?, हिंसक भीड़ संस्कृतियों को निशाना बना रही...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 4, 2024 05:30 IST2024-12-04T05:26:16+5:302024-12-04T05:30:48+5:30

Bangladesh Hindu Violence:  अल्पसंख्यक हिंदुओं का ऐसा सफाया हो रहा है, जैसा विभाजन के बाद नहीं हुआ. पश्चिम के इस दुलारे आदमी की सांप्रदायिक सोच छिपी नहीं है.

Bangladesh Hindu Violence Muhammad Yunus must face Modi-Trump wrath Amsterdam to Paris and London New York vicious violent blog prabhu chawla | Bangladesh Hindu Violence: अतिवादी बांग्लादेश की नकेल कसे मोदी-ट्रम्प?, हिंसक भीड़ संस्कृतियों को निशाना बना रही...

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Highlightsचिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी बताती है कि यूनुस की सांप्रदायिक सोच नहीं बदली है.यूनुस और ग्रामीण बैंक ने यह दिखाया है कि गरीबों में सबसे गरीब आदमी भी अपने विकास के लिए काम कर सकता है.पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग करने के लिए अमेरिका में बांग्लादेश इनफॉर्मेशन सेंटर की स्थापना कर उसका नेतृत्व किया.

Bangladesh Hindu Violence: विश्व स्तर पर कट्टरता क्या बढ़ रही है? एम्सटर्डम से लेकर पेरिस और लंदन से न्यूयॉर्क तक हिंसक भीड़ विभिन्न संस्कृतियों को निशाना बना रही है. बांग्लादेश इसका नया केंद्र है, जहां एक नोबल पुरस्कार विजेता अब सांप्रदायिक हत्याओं के लिए भर्त्सना के पात्र हैं. जब से बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में मोहम्मद यूनुस पश्चिम से ढाका आए हैं, तब से वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं का ऐसा सफाया हो रहा है, जैसा विभाजन के बाद नहीं हुआ. पश्चिम के इस दुलारे आदमी की सांप्रदायिक सोच छिपी नहीं है.

इस्कॉन के पूर्व आध्यात्मिक गुरु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी बताती है कि यूनुस की सांप्रदायिक सोच नहीं बदली है. मोहम्मद यूनुस को प्रदान किए गए नोबल पुरस्कार में उनकी प्रशस्ति में लिखा है : ‘पृथ्वी के हर व्यक्ति के पास बेहतर जीवन जीने की क्षमता और अधिकार है. यूनुस और ग्रामीण बैंक ने यह दिखाया है कि गरीबों में सबसे गरीब आदमी भी अपने विकास के लिए काम कर सकता है.’

यूनुस का प्रसंग दिखाता है कि जिस व्यक्ति ने पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग करने के लिए अमेरिका में बांग्लादेश इनफॉर्मेशन सेंटर की स्थापना कर उसका नेतृत्व किया, वही आदमी पाकिस्तान से अपना समुद्री रूट खोलकर आज इस्लामाबाद का मोहरा और वाशिंगटन का पिछलग्गू बन गया है. यूनुस नेल्सन मंडेला द्वारा शुरू किए गए समूह ‘द एल्डर्स’ के संस्थापक सदस्यों में थे, जिसका गठन दुनिया की सबसे कठिन समस्याओं से निपटने के लिए हुआ था और जिसमें इनसे इनके ज्ञान, स्वतंत्र नेतृत्व और ईमानदारी की अपेक्षा थी.

जबकि यूनुस अपने ही देश में उस सांप्रदायिक भेदभाव वाली सोच के मुखिया हैं, जहां हर सौ नागरिकों में से आठ सुरक्षित जीवन जीने के अपने अधिकार से वंचित हैं. पिछले चार महीने में वहां अनेक प्रसिद्ध हिंदू और अल्पसंख्यक नेताओं को हास्यास्पद आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. फिर से एकजुट हुए सीआईए-आईएसआई गठजोड़ के मोहरे यूनुस ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को कभी विराम नहीं दिया.

आज बांग्लादेश का नेतृत्व 84 साल का यही व्यक्ति कर रहा है, जिसकी पहचान एक कट्टरवादी उन्मादी की है. उन्होंने बांग्लादेश के जनक और दशकों से उसके मित्र रहे भारत को सबसे घृणास्पद शत्रु में बदल दिया है. यूनुस ने इस तथ्य की अनदेखी कर दी कि बांग्लादेश के विकास के लिए भारत ने 10 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद की है.

इसकी भी अनदेखी की गई कि बांग्लादेश में बिजली की कुल खपत का 25 प्रतिशत भारत मुहैया कराता है. मोदी विरोधी, उदारवादी सहयोगी नेटवर्क ने बगैर जिम्मेदारी के यूनुस को अपना एजेंडा चलाने की छूट दे रखी है. शेख हसीना भी निरंकुश थीं. लेकिन यूनुस के नेतृत्व में शेख हसीना के ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों को मार दिया गया है या जेल में डाल दिया गया है.

न्यायपालिका को भी अपने हिसाब से ढाल लिया गया है. पाकिस्तानपरस्त तत्वों का गुस्सा शेख हसीना से ज्यादा भारत पर केंद्रित दिखा. यूनुस ने खालिदा जिया समेत अनेक भारत-विरोधियों को जेल से रिहा किया. हिंदू प्रतिरोध को बलपूर्वक कुचल दिया गया. संविधान के प्रति निष्ठावानों को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस्कॉन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, बावजूद इसके कि इसके पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, ‘मैं सभी सनातनियों से यह अनुरोध करता हूं कि बांग्लादेश हमारा प्यारा देश है, और हम इसे छोड़कर जाना नहीं चाहते. हम इसी धरती के पुत्र हैं. हम इस धरती की विरासत और संस्कृति को संरक्षित करना चाहते हैं.’

लेकिन उनकी देशभक्ति की अनदेखी कर दी गई. बांग्लादेश हिंदू बुद्धिस्ट क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल ने पांच अगस्त से 2000 से अधिक हिंदुओं पर हुए हमले का ब्योरा दिया. ऐसे में, अपने यहां मोदी सरकार पर दबाव बढ़ने लगा. संघ परिवार ने घुसपैठियों को बाहर करने का अपना अभियान तेज किया. चूंकि राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 हटाने, समान नागरिक संहिता पर आंशिक रूप से अमल तथा शिक्षा नीति में सांस्कृतिक सुधार के उसके तमाम लक्ष्य पूरे हो चुके, इसलिए उन्हें लगा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए घुसपैठियों को बाहर निकालने का यही समय है.

यह नरेंद्र मोदी ही थे, जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन चलाया था. वर्ष 2014 में अपने चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर घुसपैठियों को सुरक्षा देने का आरोप लगाते हुए कहा था, ‘प्रधानमंत्री जी, देश जानना चाहता है कि बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों के बारे में आपकी क्या राय है.

आपकी नीति क्या है? क्या भारत में बांग्लादेशियों का बोलबाला रहेगा?’ घुसपैठियों का मामला हाल के चुनावों में भी भाजपा के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है. झारखंड में खुद मोदी ने कहा था, ‘बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये संथाल परगना और कोल्हान में बड़ा खतरा बन गए हैं. इस क्षेत्र की जनसांख्यिकी तेजी से बदल रही है.

आदिवासियों की आबादी घट रही है. घुसपैठिये पंचायती व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं, जमीन पर कब्जा कर रहे हैं, हमारी बेटियों पर अत्याचार कर रहे हैं... झारखंड का हर नागरिक खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है.’ घुसपैठियों को वापस भेजना और बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन ही मोदी के हथियार नहीं हैं.

आर्थिक प्रतिबंध भी यूनुस को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. शेख हसीना के 15 साल के कार्यकाल में भारत उसका सबसे बड़ा विकास भागीदार था. बांग्लादेश को ढांचागत विकास के लिए भारत से आठ अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन मिली थी. कोलकाता असंख्य बांग्लादेशियों का घर था.

लेकिन हिंदुओं पर हमले के बाद से भारत ने ढाका में अपना वीजा केंद्र बंद कर दिया है, जिसका वहां के लोगों पर प्रतिकूल असर पड़ा है. नरेंद्र मोदी को अपने वैश्विक कद का इस्तेमाल कर सांप्रदायिक बांग्लादेश को अलग-थलग करना चाहिए. डोनाल्ड ट्रम्प के साथ अपने मजबूत रिश्ते के जरिये उन्हें अतिवादी बांग्लादेश को मिल रहा अमेरिकी समर्थन बंद करने की दिशा में सक्रिय होना चाहिए.

अपने चुनाव अभियान में ट्रम्प ने एक्स पर लिखा था : ‘बांग्लादेश में भीड़ ने हिंदुओं, ईसाइयों व दूसरे अल्पसंख्यकों पर जिस तरह हमले किए और उन्हें लूटा, मैं उसकी तीव्र निंदा करता हूं.’ अब यह मोदी पर है कि भारत के खिलाफ सांप्रदायिक षड्यंत्र रचने वालों के विरुद्ध अपनी भू-राजनीतिक शक्ति का प्रयोग कर दूसरे देशों में हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों की रक्षा करें तथा वैश्विक हिंदुत्व के मसीहा बनें.

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