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अमेरिका के यात्रा प्रतिबंध हटाने के बाद अपनों से मिलकर लोगों की भावनाओं का उमड़ा सैलाब

By भाषा | Updated: November 9, 2021 16:34 IST

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(योषिता सिंह)

नेवार्क (अमेरिका), नौ नवंबर अमेरिका ने कोविड-19 प्रतिबंध हटा दिया और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए सीमायें खोल दीं जिसके बाद यहां नेवार्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपने प्रियजन से मिलने पर लोगों की भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। उन माता-पिता की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े जिन्होंने अपने बच्चों को दो साल से ज्यादा समय से नहीं देखा था।

अपने नाती पोतों का हाथ पकड़े दादा-दादी की भी खुशी का ठिकाना नहीं था। सोमवार को यात्रा प्रतिबंध हटाए जाने के बाद पहली उड़ान से भारत से अमेरिका पहुंचे और हवाई अड्डे के गेट से बाहर निकलते लोगों ने अपने परिजन का भाव विह्वल होकर स्वागत किया। गत वर्ष कोरोना वायरस महामारी कारण अमेरिका को भारत समेत कई देशों से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के देश में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में विशेष श्रेणी के वीजा वाले यात्रियों को यात्रा की अनुमति दी गई थी।

अमेरिका ने कोविड रोधी टीके की दोनों खुराक ले चुके यात्रियों को आठ नवंबर से प्रवेश की अनुमति दी। अपनी पत्नी के साथ पहुंचे विपुल शाह ने कहा, “मैंने पहले दिन पहली उड़ान बुक की।” शाह की दोनों बेटियां अपने माता-पिता की प्रतीक्षा कर रही थीं और जैसे ही वे विमानतल से बाहर निकले वे दौड़ कर उनसे मिलने गई। अपनी बेटियों को देखकर शाह की आंखों में आंसू आ गए।

उन्होंने कहा, “अमेरिका में यात्रियों के लिए प्रतिबंध हटने की खबर सुनने के बाद मैंने एक नवंबर की उड़ान बुक की थी। लेकिन मैंने फिर आठ नवंबर की उड़ान बुक की।”

एक दूसरे के गले मिलते परिवार के सदस्यों ने तस्वीरें ली और कहा, “हमने इस दिन के लिए बहुत इंतजार किया।” दिल्ली से जैसे ही एयर इंडिया की उड़ान पहुंची, रूपल पटेल अपने पिता के हवाई अड्डे से निकलने और उनसे मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रही थीं।

उन्होंने कहा, “मैं अपने पिता की प्रतीक्षा कर रही हूं। वह 86 साल के हैं और मैंने उन्हें दो साल से भी ज्यादा समय से नहीं देखा है। वह गुजरात के नाडियाड में अकेले रहते हैं और महामारी के दौरान उन्होंने अकेले हर चीज की व्यवस्था की।” पटेल ने कहा कि वह और उनके भाई बहन भारत के बाहर रहते हैं और यात्रा प्रतिबंधों के कारण वे भी भारत नहीं पहुंच सके। निर्मित शेलाज पानी पीते हुए अपनी दोस्त का इंतजार कर रहे थे जिसने उन्होंने नौ महीने से ज्यादा समय में नहीं देखा था।

शेलाज ने कहा कि उनकी दोस्त जॉली दवे एक फिजिकल थेरेपिस्ट है और वह हमेशा कहती थी कि तकनीक, वास्तविक मानव संपर्क का स्थान कभी नहीं ले सकती। शेलाज ने कहा कि महामारी ने उन्हें सिखाया कि महामारी और दूरी किसी की आत्मा को किसी से अलग नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा कि एक दूसरे के प्रति प्रेम और भावनाएं खत्म नहीं हो सकतीं। इसी तरह ब्रजेंद्र बरार अपनी गर्भवती रिश्तेदार और पोती को लेने आए थे। उन्होंने कहा कि उनसे मिलकर उन्हें बहुत खुशी हुई।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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