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भारत सहित 183 देशों ने क्यूबा पर अमेरिकी प्रतिबंधों का किया विरोध

By भाषा | Updated: June 24, 2021 11:23 IST

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(योशिता सिंह)

संयुक्त राष्ट्र, 24 जून भारत सहित 183 देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें क्यूबा पर लगी अमेरिकी आर्थिक पाबंदियों को समाप्त करने की मांग की गई है। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि लगातार प्रतिबंध लगे रहने से बहुपक्षवाद तथा स्वयं संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता कमजोर होती है।

अमेरिका और इज़राइल ही केवल इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं, जिसे 1992 से हर साल अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारी समर्थन के साथ अनुमोदित किया जाता है। महासभा ने 1992 से ही हर साल इस मुद्दे पर मतदान शुरू किया था। यह प्रस्ताव लगातार 29वें साल, बुधवार को पारित हुआ, जिसमें क्यूबा के खिलाफ अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक, वाणिज्यिक और वित्तीय प्रतिबंध को समाप्त करने की मांग की गई है। पिछले साल कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था।

मध्य अफ्रीकी गणराज्य, म्यामां, मोलदोवा और सोमालिया ने वोट नहीं किया। वहीं, कोलंबिया, यूक्रेन और ब्राजील ने उस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जो ‘‘ एक बार फिर इस तरह के कानूनों तथा उपायों को लागू करने वाले देशों से, उनके कानूनी शासन के अनुसार जल्द से जल्द इन्हें निरस्त या अमान्य करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह करता है।’’

संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान विश्व निकाय में भारत के स्थायी मिशन में काउंसलर मयंक सिंह ने कहा, ‘‘ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को, प्रतिबंधों से मुक्त वातावरण को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रयास तेज करने की जरूरत है। भारत को उम्मीद है कि प्रतिबंध जल्द से जल्द वापस ले लिए जाएंगे। भारत क्यूबा द्वारा पेश किए प्रस्ताव के मसौदे का समर्थन करता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि इस सभा द्वारा व्यक्त की गई विश्व की राय के विपरीत, इस प्रतिबंध का निरंतर अस्तित्व, बहुपक्षवाद तथा संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को कमजोर करता है। ’’

सिंह ने कहा कि बहुपक्षवाद में अटूट विश्वास के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत पूरी एकजुटता के साथ इसमें महासभा के साथ खड़ा है। इस तरह के प्रतिबंधों से प्रभावित देश की आबादी, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर असर पड़ता है। वे अन्य चीजों के अलावा विकास, भोजन, चिकित्सा देखभाल और सामाजिक सेवाओं के अधिकार सहित मानवाधिकारों का फायदा भी नहीं उठा पाते।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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