Yogini Ekadashi 2019: हर साल पड़ने वाला एकादशी के 24 व्रतों में से एक योगिनी एकादशी भी बेहद अहम है। योगिनी एकादशी का व्रत हर साल आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को पड़ता है। एकादशी का हर व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। वैसे, योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल की पूजा का भी विधान है।
योगिनी एकादशी के महत्व के बारे में कहा गया है कि इसे करने से 88 हजार ब्राह्मणों के दान के बराबर फल मिलता है। इस व्रत का इसलिए भी महत्व है कि इसके बाद देवशयनी एकादशी आता है जिसमें भगवान विष्णु चार महीने के लिए शयन में चले जाते हैं। आईए, जानते हैं कि योगिनी एकादशी का व्रत कब है, क्या है व्रत की कथा और पौराणिक महत्व...
Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी कब है, पूजा की विधि
इस बार योगिनी एकादशी का व्रत 29 जून (शनिवार) को है। वैसे, कई लोग इसे 28 जून को भी मना रहे हैं। इस एकादशी को करने से एक दिन पहले जातकों को अपनी तैयारी शुरू कर देनी होती है। शास्त्रों के अनुसार व्रत से एक दिन पहले से व्रती को तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
इस पूजा के लिए साधक को तड़के उठना चाहिए स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पद्मपुराण के अनुसार इस दिन इस दिन तिल के उबटन का शरीर पर लेप कर स्नान करने का भी महत्व है। यह काफी शुभ माना जाता है।
व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान कराना चाहिए और उस पंचामृत को फिर घर के सभी सदस्यों के ऊपर छिड़कना चाहिए। यही नहीं, पूजा के दौरान विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ का भी विशेष महत्व है।
Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी की व्रत कथा क्या है
पद्मपुराण में वर्णित योगिनी एकादशी की एक कथा के अनुसार स्वर्ग की अलकापुरी नगरी के राजा कुबेर भगवान शिव के भक्त थे। वह हर रोज पूरे मन से भगवान शिव की पूजा करते थे। उनके लिए पूजा के फूल हेम नाम का एक माली लेकर आया करता था। एक दिन हेम काम भाव में पड़ने के कारण अपनी सुंदर पत्नी विशालाक्षी के साथ आनंद की प्राप्ति में रम गया। इस वजह से वह राजा को समय पर फूल नहीं पहुंचा सका। इससे क्रोधित राजा कुबेर अपने सैनिकों को हेम माली के यहां भेजते हैं।
सैनिक हेम के घर से लौटकर राजा को पूरी बात बताते हैं। इससे राजा कुबेर बेहद क्रोधित हो गये और हेम को श्राप दिया वह कुष्ट रोग से पीड़ित होकर धरती पर चला जाएगा। कई सालों तक धरती पर विचरण के बाद एक दिन हेम की मुलाकात ऋषि मार्कण्डेय से हुई। ऋषि ने हेम से उसके दुख का कारण पूछा तो उसने पूरी बात बता दी।
यह सुनकर मार्कण्डेय ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। हेम ने ऐसा ही किया और पूरी निष्ठा से उसने योगिनी एकादशी का व्रत किया। बाद में इस व्रत के कारण हेम अपनी पुराने रूप में आ गया और पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन जीने लगा।