रामायण के कई प्रसंग सुनने को मिलते हैं। भगवान श्रीराम और माता सीता की कहानी से ना सिर्फ लोगों को सीख मिलती है बल्कि रामायण के अलग-अलग किरदारों से लोगों को उनके धर्म और कर्तव्य को निभाने की भी सीख मिलती है। रामायण की छोटी से छोटी बात बड़ी सीख दे जाती है।
रामायण का मूल सार व्यक्ति को आदर्श जीवन जीने की ओर प्रेरित करता है। इन्हीं प्रेरित बातों में एक बात वो भी है जो भगवान राम से उनके भाई लक्ष्मण ने कहा था, जब माता सीता का हरण हो गया था। आइए बताते हैं ये कथा-
दरअसल, जिस समय माता सीता ने मारिच की माया के जाल में फंस जाती हैं और प्रभु राम से स्वर्ण मृग लाने की हठ करने लगती हैं। तब प्रभु राम मृग का शिकार करने चले जाते हैं। अंत में बाण से मृग को घायल भी कर देते हैं मगर इन सब में उन्हें देर हो जाती है।
उधर माता सीता, लक्ष्मण से कहती हैं कि वो प्रभु श्रीराम की खोज में आएं। जब भाभी सीता की आज्ञा का पालन करने लिए लक्ष्मण वन जाते हैं तो सीता मां के लिए एक सीमा रेखा बनाकर जाते हैं। सीता मां से आग्रह करते हैं कि वो किसी भी हाल में लक्ष्मण रेखा पार ना करें।
लक्ष्मण के जाने के बाद रावण साधु का रूप धर माता सीता से भिक्षा मांगने आता है। माता सीता सीमा रेखा लांघ जाती हैं। तब रावण असली रूप में आकर माता सीता का हरण कर लेता है। वहीं जब प्रभु राम कुटिया में वापिस लौटते हैं तो सीता को वहां ना पाकर आशंकित होते हैं।
दोनों भाई, सीता माता की तलाश में निकल जाते हैं। माता सीता को खोजते-खोजते उन्हें माता सीता के कुछ आभूषण मिलते हैं। राम उन आभूषणों में से कर्णफूल को दिखाकर लक्ष्मण से कहते हैं कि वो सीता के कर्ण फूल हैं। इस पर भाई लक्ष्मण कहते हैं कि वो कर्णफूल भाभी के हैं ये बाद वह कैसे बताएं क्योंकि भाभी के मुख की ओर उन्होंने देखा ही नहीं।
लक्ष्मण भाई से कहते हैं कि उन्होंने हमेशा सेवक और पुत्र भाव से सदा भाभी सीता के चरणों में देखा है। इसलिए सिर्फ उनकी पायल पहचान पाएंगे। लक्ष्मण की ये बातें सुनकर भगवान राम, सीता के प्रति लक्ष्मण सेवा और आदर भाव को देखकर आनंदित हो गए।