Solar Eclipse: सूर्य ग्रहण क्यों लगता है और कितने तरह का होता है? क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण, जानें सबकुछ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 26, 2019 13:53 IST2019-12-26T13:53:27+5:302019-12-26T13:53:27+5:30
सूर्य ग्रहण देखने के लिए सबसे जरूरी ये है कि आप ग्रहण के समय धरती के उस हिस्से में रहे जहां सूरज की रोशनी पहुंच रही हो। सूर्य ग्रहण तीन तरह के होते हैं।

Solar Eclipse: क्यों लगता है सूर्य ग्रहण, क्या है इसके पीछे का कारण
Solar Eclipse 2019: इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण 26 दिसंबर को पूरे देश में देखा गया। इस अद्भुत खगोलीय घटना को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी उत्सुकता दिखाई और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर भी की। इस सूर्य ग्रहण को भारत समेत कई देशों में देखा गया। ये वलयाकार सूर्य ग्रहण था।
हालांकि, क्या आप जानते हैं कि सूर्य ग्रहण लगने के पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है? विज्ञान की भाषा में कोई भी ग्रहण तभी लगता है जब कोई ग्रह या चंद्रमा अपनी कक्षा में घूमते सूरज के सामने आ जाता है।
Solar Eclipse: सूर्य ग्रहण क्यों लगता है?
सूर्य ग्रहण तभी लगता है जब चंद्रमा घूमते हुए सूरज और पृथ्वी के बीच आ जाता है। इसका सीधा मतलब ये हुआ कि दिन के समय चंद्रमा जब भी घूमते हुए सूरज और पृथ्वी के बीच से होकर गुजरता है तो हमें सूर्य ग्रहण देखने को मिलता है।
पूर्ण सूर्य ग्रहण धरती पर कहीं न कहीं करीब हर डेढ़ साल में एक बार लगता है जबकि आंशिक सूर्य ग्रहण धरती पर साल में कम से कम दो बार लगता है। चंद्रमा जब पूरी तरह से सूरज को ढक लेता है तो उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है जब चंद्रमा पूरी तरह से सूरज को ढक नहीं पाता और उसे बीच से या उसके कुछ हिस्से को ढकते हुए गुजरता है। इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं।
Solar Eclipse: तीन तरह के लगते हैं सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण देखने के लिए सबसे जरूरी ये है कि आप ग्रहण के समय धरती के उस हिस्से में रहे जहां सूरज की रोशनी पहुंच रही हो। सूर्य ग्रहण तीन तरह के होते हैं- पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण। पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय लगता है जब चंद्रमा पूरी तरह से सूरज को ढक लेता है। वहीं, आंशिक सूर्य ग्रहण के दौरान सूरज का केवल कुछ भाग ही चंद्रमा की आगोश में आता है।
हालांकि, इन सभी में सबसे खूबसूरत आकृति वलयाकार सूर्य ग्रहण के दौरान बनती है। इस ग्रहण के दौरान सूर्य का केवल मध्य भाग ही चंद्रमा के छाया क्षेत्र में आता है। ऐसे में सूर्य के बाहर का गोलाकार क्षेत्र प्रकाशित होने की वजह से किसी चमकते अंगूठी या कंगन के जैसा नजर आता है। इसे वलयाकार सूर्यग्रहण कहा जाता है।