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रामायण: भगवान राम ने अपने ही भाई लक्ष्मण को दिया था मृत्युदंड! जानिए राम-लक्ष्मण की कैसे हुई मृत्यु

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 3, 2019 13:27 IST

रामायण की कथा के अनुसार एक दिन भगवान राम से मिलने एक संत आये और उनसे अकेले में कुछ जरूरी बात करने के लिए कहने लगे। भगवान राम इसके लिए तैयार हो गये लेकिन संत ने यह शर्त रखी कि उन दोनों की वार्तालाप के दौरान अगर कोई भी आ जाता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाए।

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ठळक मुद्देरामायण की कथा के अनुसार भगवान राम ने लक्ष्मण को दिया था मृत्युदंडभगवान विष्णु के अवतार थे श्रीराम जबकि लक्ष्मण शेषनाग केअवतार थे

पृथ्वी लोक की एक सच्चाई है कि यहां जो भी आता है, उसे जाना ही होता है। फिर वह चाहे इंसान हो या देवता, पृथ्वी पर आने वाले हर शख्स की मृत्यु निश्चित है। रामायण की कहानी भी इस ओर इशारा करती है भगवान विष्णु के अवतार राम और शेषनाग के अवतार लक्ष्मण को भी मृत्यु का सामना करना पड़ा। रावण के वध के बाद भगवान राम ने कई वर्षों तक अयोध्या पर राज किया लेकिन विधि का विधान आखिरकार उन पर भी लागू हुआ और ऐसे नाटकीय मोड़ आये जिसकी वजह से लक्ष्मण ने पहले पृथ्वी लोक छोड़ी और फिर भगवान राम भी बैकुंठ लौट गये।

रामायण: भगवान राम ने दिया लक्ष्मण को प्राण दंड

रामायण की कथा के अनुसार एक दिन भगवान राम से मिलने एक संत आये और उनसे अकेले में कुछ जरूरी बात करने के लिए कहने लगे। भगवान राम इसके लिए तैयार हो गये लेकिन संत ने यह शर्त रखी कि उन दोनों की वार्तालाप के दौरान अगर कोई भी आ जाता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाए। राम ने फिर ऐसी ही प्रतिज्ञा ली और लक्ष्मण को जिम्मेदारी सौंपी कि उनकी बातचीत के बीच कोई भी विघ्न नहीं डाले। दरअसल, राम के साथ जो संत बात कर रहे थे वे कालदेव थे और वे यह बताने आये थे कि धरती पर उनका समय अब पूरा हो चुका है।

बहरहाल, लक्ष्मण को यह बात पता नहीं थी और वे द्वारपाल बनकर स्वंय पहरेदारी करने लगे ताकि कोई भी अंदर कक्ष में नहीं जा सके। इसी बीच दुर्वासा ऋषि वहां अचानक आ गये और राम से मिलने की बात कहने लगे। लक्ष्मण ने जब विनती पूर्वक मना किया तो दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गये और राम सहित पूरी अयोध्या को शाम देने की बात कहने लगे। ऐसे में लक्ष्मण ने उन्हें रोका। लक्ष्मण ने सोचा कि अगर पूरी अयोध्या को शाप लगा तो अनिष्ट हो जाएगा। इससे बेहतर है कि वे ही मृत्युदंड स्वीकार कर ले। यह विचार कर लक्ष्मण उस कक्ष में चले गये जहां संत और राम के बीच बात हो रही थी।

लक्ष्मण ने राम को पूरी बात बताई। ऐसे में ऋषि दुर्वासा और राम की मुलाकात तो हो गई लेकिन प्रतिज्ञा के अनुसार लक्ष्मण को प्राण दंड दिया जाना था। इसलिए राम ने लक्ष्मण को देश से बाहर चले जाने का आदेश दिया। उस युग में देश से बाहर निकाला जाना भी मृत्यु के बराबर माना जाता था। ऐसे में लक्ष्मण सरयू नदी के अंदर चले गये और शरीर त्याग दिया। इस प्रकार लक्ष्मण का अंत हुआ।

राम भी अपने भाई के बिना एक पल नहीं रह सकते थे। उन्हें जब इस बात की जानकारी मिली तो वे भी अपना राजपाट अपने पुत्रों को सौंपकर सरयू नदी में समा गये। इस प्रकार भगवान राम भी बैकुंठ लौट गये। 

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