Rama Ekadashi 2019: आज है रमा एकादशी, पढ़िए पूरी व्रत कथा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 24, 2019 08:32 IST2019-10-24T08:32:30+5:302019-10-24T08:32:30+5:30

शुभ मुहूर्त की बात करें तो एकादशी प्रारंभ हो रही है 24 अक्टूबर 2019 को 1 बजकर नौ मिनट से वहीं समाप्त हो रही है 24 अक्टूबर को रात 10 बजकर 19 मिनट पर।

Rama Ekadashi 2019: Rama Ekadashi Vrat Katha in hindi, date, significance and shubh muhurut | Rama Ekadashi 2019: आज है रमा एकादशी, पढ़िए पूरी व्रत कथा

Rama Ekadashi 2019: आज है रमा एकादशी, पढ़िए पूरी व्रत कथा

Highlightsरमा एकादशी में भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है। रमा एकादशी का नाम भी मां लक्ष्मी के नाम पर रखा गया है।

भगवान विष्णु को यश और धन के लिए पूजा जाता है। महीने में आने वाली हर एकदाशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली रमा एकादशी का महत्व सबसे अधिक बताया जाता है। मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी दोषों का नाश होता है। 

आज यानी 24 अक्टूबर को देश भर में भक्त रमा एकादशी का व्रत रख रहे हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। रमा एकादशी का नाम भी मां लक्ष्मी के नाम पर रखा गया है। इस एकादशी में महालक्ष्मी के स्वरूप की अराधना की जाती है। इसी के साथ ही इस दिन विष्णु के पूर्णावतार केशव स्वरूप की भी लोग अराधना करते हैं।

ये है रमा एकादशी का शुभ मुहूर्त

शुभ मुहूर्त की बात करें तो एकादशी प्रारंभ हो रही है 24 अक्टूबर 2019 को 1 बजकर नौ मिनट से वहीं समाप्त हो रही है 24 अक्टूबर को रात 10 बजकर 19 मिनट पर। वहीं इस बार व्रत के पारण का समय  सुबह 6 बजकर 32 मिनट से 8 बजकर 45 मिनट तक बताया जा रहा है।

रमा एकदशी की व्रत कथा

प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम का एक राजा था। उसकी इंद्र के साथ मित्रता थी। साथ ही यम, कुबेर, वरुण और विभीषण भी उसके बड़े अच्छे दोस्त थे। राजा बड़ा धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय के साथ राज करता था। उस राजा की एक बेटी थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। उसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था। एक समय वह शोभन ससुराल आया। उन्हीं दिनों रमा एकादशी भी आने वाली थी। 
 
दशमी के दिन राजा ने ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दिया कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए। ढोल की घोषणा सुनते ही शोभन को अत्यंत चिंता हुई। क्योंकि वह बहुत कमजोर और दुर्बल था। उसने अपनी पत्नी से कहा, "हे प्रिये! अब क्या करना चाहिए, मैं किसी प्रकार भी भूख सहन नहीं कर सकूंगा। ऐसा उपाय बतलाओ कि जिससे मेरे प्राण बच सकें, अन्यथा मेरे प्राण अवश्य चले जाएंगे।"
 
चंद्रभागा कहने लगी, "हे स्वामी! मेरे पिता के राज में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता। हाथी, घोड़ा, ऊंट, बिल्ली, गौ आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं कर सकते, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या है। यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहीं रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य व्रत करना पड़ेगा।" ऐसा सुनकर शोभन कहने लगा, "हे प्रिये! मैं अवश्य व्रत करूंगा, जो भाग्य में होगा, वह देखा जाएगा।" 

इसके बाद शोभन ने व्रत रख लिया और वह भूख व प्यास से अत्यंत पीडि़त होने लगा। जब सूर्य नारायण अस्त हो गए और रात्रि को जागरण का समय आया जो वैष्णवों को अत्यंत हर्ष देने वाला था, परंतु शोभन के लिए अत्यंत दु:खदायी हुआ। प्रात:काल होते शोभन के प्राण निकल गए। तब राजा ने सुगंधित काष्ठ से उसका दाह संस्कार करवाया। शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपनेचंद्रभागा पिता के घर में ही रहने लगी।
 
रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ। वह अत्यंत सुंदर रत्न और वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण के खंभों पर निर्मित अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित भवन में बहुमूल्य वस्त्राभूषणों तथा छत्र व चंवर से विभूषित, गंधर्व और अप्सराओं से युक्त सिंहासन पर आरूढ़ ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इंद्र विराजमान हो।
 
एक समय मुचुकुंद नगर में रहने वाले एक सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करता हुआ घूमता-घूमता उधर जा निकला और उसने शोभन को पहचान कर कहा कि यह तो राजा का जमाई शोभन है, उसके निकट गया। शोभन भी उसे पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आया और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया। ब्राह्मण ने कहा, "राजा मुचुकुंद और आपकी पत्नी कुशल से हैं। नगर में भी सब प्रकार से कुशल हैं, परंतु हे राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है। आप अपना वृत्तांत कहिए कि ऐसा सुंदर नगर जो न कभी देखा, न सुना, आपको कैसे प्राप्त हुआ।"


 
तब शोभन बोला कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ, परंतु यह अस्थिर है। यह स्थिर हो जाए ऐसा उपाय कीजिए। ब्राह्मण कहने लगा, "हे राजन! यह स्थिर क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है आप बताइए, फिर मैं अवश्यमेव वह उपाय करूंगा। मेरी इस बात को आप मिथ्या न समझिए।" शोभन ने कहा, "मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है। अत: यह सब कुछ अस्थिर है। यदि आप मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है।"
 
इसके बाद ब्राह्मण ने अपने देश लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कहा। ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहने लगी, "हे ब्राह्मण! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं।" ब्राह्मण ने कहा , "हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है। साथ ही किसी से विजय न हो ऐसा देवताओं के नगर के समान उनका नगर भी देखा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिर नहीं है।"
 
चंद्रभागा कहने लगी, "तुम मुझे वहां ले चलो, मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है। मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूंगी। आप ऐसा कार्य कीजिए जिससे उनका हमारा संयोग हो क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है।" यह बात सुनकर ब्राह्मण चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया। तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई।
 
इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी, "हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूं। इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा।" 

इस प्रकार चंद्रभागा ने दिव्य आभू‍षणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी। 

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