Mohini Ekadashi 2022: मोहिनी एकादशी पर पढ़ें यह व्रत कथा, समस्त प्रकार के पापों से मिलेगा छुटकारा
By रुस्तम राणा | Published: May 10, 2022 03:15 PM2022-05-10T15:15:55+5:302022-05-10T15:20:45+5:30
इस बार यह एकादशी व्रत 12 मई, गुरुवार को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से विधि-विधान रखता है तो उसे समस्त प्रकार के पाप, दुखों और कष्टों से छुटकारा मिलता है।
मोहिनी एकादशी व्रत वैशाख मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार यह एकादशी व्रत 12 मई, गुरुवार को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से विधि-विधान रखता है तो उसे समस्त प्रकार के पाप, दुखों और कष्टों से छुटकारा मिलता है। हालांकि व्रत का वास्तविक फल व्रती को तभी प्राप्त होता है जब वह मोहिनी एकादशी व्रत की कथा का पठन या फिर श्रवण करता है। एक बार युधिष्ठिर ने जब भगवान श्रीकृष्ण से मोहिनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताने को कहा तब भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि मोहिनी एकादशी व्रत वैशाख शुक्ल एकादशी व्रत को कहते हैं इसकी कथा इस प्रकार है।
मोहिनी एकादशी की व्रत कथा (Mohini Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का एक नगर था। वहां धनपाल नाम का वैश्य रहता था। वो सदा पुण्य कार्य करता था। उसके पांच बेटे थे। सबसे छोटा बेटा हमेशा पाप कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था। एक दिन वह नगर वधू के गले में बांह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। नाराज होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया।
वैश्य का बेटा अब दिन-रात शोक में रहने लगा। एक दिन महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पर जा पहुंचा। वैशाख का महीना था। कौण्डिल्य गंगा में स्नान करके आए थे। वह मुनिवर कौण्डिल्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, ब्राह्मण ! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया कीजिए और कोई ऐसा व्रत बताइए जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।'
तब ऋषि कौण्डिल्य ने बताया कि वैशाख मास के शुक्लपक्ष में मोहिनी नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। धृष्टबुद्धि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया। जिससे उसके सारे पार कट गए और वह विष्णु धाम चला गया।
भगवान विष्णु जी का अवतार हैं मोहिनी
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवासुर संग्राम में हुए समुद्र मंथन से अमृत निकला तब असुर चाहते थे कि वो पहले अमृत पीयें, किंतु अगर ऐसा होता तो असुर अमर हो जाते। तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लिया और प्रकट हुए। मोहिनी का रूप देखकर सभी असुर ने प्रस्ताव रखा कि अमृत का पान मोहिनी के हाथों ही करें। तब भगवान विष्णु ने छल से असुरों को जल का पान और देवताओं को अमृत का पान करवाया। जिसके बाद सभी देव अमर हो गए।