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Malmas 2020: शुरू हो चुका है मलमास, जानें क्या करें और क्या नहीं

By गुणातीत ओझा | Updated: September 18, 2020 19:27 IST

भगवान श्रीविष्णु की आराधना के लिए श्रेष्ठ कहे जाने वाले मलमास का आरंभ प्रथम अधिकमास आश्विन शुक्लपक्ष आज यानी 18 सितंबर से आरंभ हो रहा है जो द्वितीय अधिक मास आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या 16 अक्टूबर तक चलेगा।

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ठळक मुद्देमलमास का आरंभ प्रथम अधिकमास आश्विन शुक्लपक्ष 18 सितंबर यानी आज से आरंभ हो रहा हैजो द्वितीय अधिक मास आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या 16 अक्टूबर तक चलेगा।

भगवान श्रीविष्णु की आराधना के लिए श्रेष्ठ कहे जाने वाले मलमास का आरंभ प्रथम अधिकमास आश्विन शुक्लपक्ष आज यानी 18 सितंबर से आरंभ हो रहा है जो द्वितीय अधिक मास आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या 16 अक्टूबर तक चलेगा। मलमास को अधिक मास या पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इस मास में प्राणी श्रीहरि विष्णु की आराधना करके अपने जीवन में आने वाली सभी विषम परिस्थितियों, समस्याओं, कार्य बाधाओं, व्यापार में अत्यधिक नुकसान आदि से संकटों से मुक्ति पा सकता है। विद्यार्थियों अथवा प्रतियोगी छात्रों को भी इनकी आराधना से पढ़ाई अथवा परीक्षा में आ रही बाधाओं से छुटकारा मिल सकता है। 

श्रीहरि को प्रिय है अधिकमास आश्विन मास में 160 साल के बाद अधिकमास लगा है। इस मास की गिनती मुख्य महीनों में नहीं होती है। ऐसी कथा है कि जब महीनों के नाम का बंटवारा हो रहा था तब अधिकमास उदास और दुखी था। क्योंकि उसे दुख था कि लोग उसे अपवित्र मानेंगे। ऐसे समय में भगवान विष्णु ने कहा कि अधिकमास तुम मुझे अत्यंत प्रिय रहोगे और तुम्हारा एक नाम पुरुषोत्तम मास होगा जो मेरा ही एक नाम है। इस महीने का स्वामी मैं रहूंगा। उस समय भगवान ने यह कहा था कि इस महीने की गिनती अन्य 12 महीनों से अलग है इसलिए इस महीने में लौकिक कार्य भी मंगलप्रद नहीं होंगे। लेकिन कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें इस महीने में किए जाना बहुत ही शुभ फलदायी होगा और उन कार्यों का संबंध मुझसे होगा।

सत्यनारायण भगवान की पूजा अधिकमास में श्रीहरि यानी भगवान विष्णु की पूजा करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए अधिकमास में वैसे तो सभी प्रकार के शुभ कार्यों की मनाही होती हैए लेकिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करना सबसे शुभफलदायी माना जाता है। अधिकमास में विष्णुजी की पूजा करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में धन वैभव के साथ सुख और समृद्धि आती है।

महामृत्युंजय मंत्र का जप ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अधिकमास में ग्रह दोष की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बेहतर होगा कि आप किसी पुरोहित से संकल्प करवाकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करवाएं। यदि कोरोनाकाल में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है तो आप खुद से ही अपने घर में महामृत्युंजय मंत्र का जप करवाएं। ऐसा करने से आपके घर से सभी प्रकार के दोष समाप्त होंगे और आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा।

यज्ञ और अनुष्ठान अगर आप काफी समय से अपनी किसी मनोकामना को लेकर यज्ञ या अनुष्ठान करवाने के बारे में सोच रहे हैं तो अधिकमास का समय इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अधिकमास में करवाए जाने वाले यज्ञ और अनुष्ठान पूर्णत: फलित होते हैं और भगवान अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

ब्रजभूमि की यात्रा पुराणों में बताया गया है कि अधिकमास में भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अधिकमास के इन 30 दिनों में अक्सर लोग ब्रज क्षेत्र की यात्रा पर चले जाते हैं। हालांकि इस वक्त कोरोनाकाल में ब्रजभूमि की यात्रा करना थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने घर में भगवान राम और कृष्ण की पूजा करें। इससे उत्तम फल की प्राप्ति होगी।

दान पुण्य के कार्य अधिकमास में दान पुण्य के कार्य आपके लिए बैकुंठधाम का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अधिकमास के दिनों में आपको विशेष रूप से गुरुवार के दिन पीली वस्तुओं का दान करना चाहिए। ऐसा करने से प्रभु श्रीहरि की कृपा आपको प्राप्त होती है और आपका गुरु भी बलवान होता है। गुरु के बलवान होने का अर्थ है कि आपको करियर में सफलता प्राप्त होगी।

मलमास में इन कामों की होती है मनाहीमलमास में मांगलिक कार्य जैसे विवाह, प्राण-प्रतिष्ठा, स्थापना, मुंडन, नववधू गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण आदि कार्यों को नहीं करना चाहिए।

मलमास का महत्वपरमेश्वर श्रीविष्णु द्वारा वरदान प्राप्त मलमास अथवा पुरुषोत्तम मास की अवधि के मध्य श्रीमद्भागवत का पाठ, कथा का श्रवण, श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, श्री राम रक्षास्तोत्र, पुरुष सूक्त का पाठ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ नमो नारायणाय जैसे मंत्रों का जप करके मनुष्य श्री हरि की कृपा का पात्र बनता है। विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि इस मास में निष्काम भाव से किए गए जप-तप पूजा-पाठ ,दान-पुण्य, अनुष्ठान आदि का महत्व सर्वाधिक रहता है। परमार्थ सेवा, असहाय लोगों की मदद करना, बुजुर्गों की सेवा करना, वृद्ध आश्रम में अन्न वस्त्र का दान करना, विद्यार्थियों को पुस्तक का दान कथा संत महात्माओं को धार्मिक ग्रंथों का दान करना, सर्दियों के लिए ऊनी वस्त्र कंबल आदि का दान करना सर्वश्रेष्ठ फलदाई माना गया है। इस मास में किए गए जप-तप, दान पुण्य का लाभ जन्म जन्मांतर तक दान करने वाले के साथ रहता है। लगभग तीन वर्षों के अंतराल में पढ़ने वाले इस महापर्व का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। जिस चन्द्रवर्ष में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे मलमास कहा गया है जिसका सीधा संबंध सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर निर्धारित होता है।

 

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