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महाभारत: घटोत्कच के वध से क्यों हुए थे श्रीकृष्ण खुश और दिल्ली में आज भी कहां मौजूद है उसका गांव, जानिए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 8, 2019 13:09 IST

Mahabharat Story: घटोत्कच तेजी से कौरव सेना का संहार कर रहे थे। यह देख दुर्योधन घबरा गया और उसने कर्ण को घटोत्कच के वध की जिम्मेदारी सौंपी। दुर्योधन ने कर्ण को दिव्यास्त्र भी इस्तेमाल करने को कहा।

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महाभारत काल के बड़े योद्धाओं में घटोत्कच का भी नाम आता है। भीम के पुत्र घटोत्कच ने महाभारत में पांडवों की ओर युद्ध किया था और कौरवों की सेना को बहुत नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहे थे। घटोत्कच ने जब कौरवों की सेना को अत्यधिक नुकसान पहुंचाना शुरू किया तो दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने दिव्यास्त्र का इस्तेमाल करते हुए उनका वध किया। घटोत्कच के मारे जाने से कौरव सेना में खुशी छा गई लेकिन पांडव बहुत दुखी हुए। दिलचस्प ये था कि भगवान श्रीकृष्ण घटोत्कच के वध से बहुत खुश हुए, जिसे देख अर्जुन समेत पांडव हैरान थे। 

महाभारत: घटोत्कच के वध से श्रीकृष्ण क्यों खुश थे?

अर्जुन ने जब घटोत्कच के मारे जाने के बाद श्रीकृष्ण से पूछा कि वे इतने खुश क्यों हैं तो उन्होंने कहा कि पांडवों की जीत के लिए यह बहुत जरूरी था। दरअसल, कर्ण के पास एक दिव्यास्त्र था और इसकी योजना थी कि वह इसका इस्तेमाल अर्जुन वध के लिए करेगा। सेनापति बनने के बाद कर्ण को अगले ही दिन अर्जुन से युद्ध करना था और वह इसके लिए तैयार था। इससे पहले ही हालांकि घटोत्कच के आक्रामक रवैये ने कौरव सेना को परेशान कर दिया।

घटोत्कच तेजी से कौरव सेना का संहार कर रहे थे। यह देख दुर्योधन घबरा गया और उसने कर्ण को घटोत्कच के वध की जिम्मेदारी सौंपी। दुर्योधन ने कर्ण को दिव्यास्त्र भी इस्तेमाल करने को कहा। कर्ण ने जब कहा कि उसने अर्जुन वध के लिए यह दिव्यास्त्र बचाकर रखा है तो दुर्योधन ने कहा कि जब सबकुछ पहले ही खत्म हो जाएगा तो दिव्यास्त्र बचाकर रखने का फायदा क्या है? आखिरकार कर्ण मान गया और उसने दिव्यास्त्र की मदद से घटोत्कच का वध कर दिया। श्रीकृष्ण इसी वजह से खुश थे कि कर्ण को आखिरकार अपने दिव्यास्त्र का इस्तेमाल करना पड़ा और इससे अर्जुन की जान बच गई।

महाभारत: दिल्ली में यहां मौजूद हैं घटोत्कच का गांव

दिल्ली-हरियणा के बॉर्डर पर और नजफगढ़ से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित गांव ढांसा के बारे में कहा जाता है कि यह घटोत्कच का ही गांव है। कहते हैं कि उस से जुड़ी निशानियां भी यहां मौजूद हैं। दरअसल, भीम की मुलाकात पांडवों के वनवास के दौरान हिडिम्बा नाम की राक्षसी से हुई थी और इन्हीं से घटोत्कच का जन्म हुआ। युवा अवस्था में ही घटोत्कच को विरक्ति हो गई और वह घूमता-घूमता ढांसा के जंगलों के करीब आ गया।

मान्यता है कि ढांसा के करीब जंगलों में घटोत्कच ने तपस्या की। हालांकि, वह इन जंगलों में कब तक रहा, इसका प्रमाण नहीं मिलता। कहते हैं घटोत्कच ने यहां दृढ़ासन की मुद्रा में तपस्या की। इसी से इस जगह का नाम बिगड़कर ढढ़ांसा और फिर ढांसा हो गया। ढांस के पास जंगल काफी थे लेकिन पानी के लिए कोई सरोवर नहीं था। यहां की लोक कहानी के अनुसार घटोत्कच ने पानी के लिए घुटने से जमीन पर तेज प्रहार किया। इससे यहां घड़े के आकार का एक सरोवर बन गया। यह सरोवर अब भी मौजूद है।

इस सरोवर को अब पूरी तरह सीमेंट से घेर दिया गया है। यहां के बच्चों के लिए अब यह एक खेल का मैदान बन गया है। यह हर साल सितंबर में 'दादा बूढ़े' का मेला लगता है। इस दौरान इस सरोवर में पानी भरा जाता है। दादा बूढ़े के स्थित मंदिर को यहां के लोग ग्राम देवता मानते हैं।

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