महाभारत: जरासंध दो टुकड़े होने के बाद भी जुड़कर हो जाता था जिंदा, फिर भीम ने ऐसे किया था वध
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 1, 2019 02:58 PM2019-08-01T14:58:16+5:302019-08-01T14:58:16+5:30
महाभारत काल में अगर कौरव और पांडवों के बीच युद्ध के दौरान जरासंध मौजूद रहता तो युद्ध का रूख कुछ और भी हो सकता था। इसलिए श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध की आशंका को देखते हुए पहले ही जरासंध को मारने की युक्ति खोज ली और इसमें कामयाब रहे।
महाभारत काल के महारथी योद्धाओं की जब भी बात होती है तो उसमें जरासंध का जिक्र भी जरूर होता है। मगध का शक्तिशाली सम्राट जरासंध दरअसल कंस का ससुर था इस नाते भगवान श्रीकृष्ण से उसकी दुश्मनी काफी पुरानी थी। कंस वध के बाद जरासंध ने कई बार श्रीकृष्ण से बदला लेने की कोशिश की लेकिन हर बार वह नाकाम रहा। कहा तो यह भी जाता है कि महाभारत काल में अगर कौरव और पांडवों के बीच युद्ध के दौरान जरासंध मौजूद रहता तो युद्ध का रूख कुछ और भी हो सकता था। इसलिए श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध की आशंका को देखते हुए पहले ही जरासंध को मारने की युक्ति खोज ली और इसमें कामयाब रहे।
महाभारत: कठिन था मगध के सम्राट जरासंध को मारना
जरासंध के वध से पहले उसके जन्म से जुड़ी कहानी जान लेना भी आवश्यक है जो बेहद रोचक है। मगध के राजा बृहद्रथ थे। उनकी दो पत्नियां थी लेकिन कोई भी संतान नहीं थी। ऐसे में राजा बृहद्रथ ने महात्मा चण्डकौशिक से मिलकर उन्हें अपनी परेशानी बताई। महात्मा ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि वे इसे अपनी पत्नी को खिला दे। बृहद्रथ महल पहुंचे और उन्होंने फल के दो टुकड़े कर उसे दोनों पत्नियों को खिला दिया।
इसके कुछ दिनों बाद राजा की दोनों पत्नियां गर्भवती हो गई और समय आने पर उनके गर्भ से शिशु के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा हुआ। यह देख रानियां घबरा गईं और शिशु के दोनों जीवित टुकड़े फेंक दिये। जरा नाम की राक्षसी ने इसे देखा और अपनी माया से शिशु के शरीर के दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया। ऐसा होते ही शिशु में जान आ गई और वह रोने लगा। यह बात रानियों और राजा बृहद्रथ तक पहुंची। उन्होंने राक्षसी से पूरी बात पूछी और खुश होकर बालक का नाम जरासंध (जरा नाम की राक्षसी के संधि करने की वजह से) रख दिया।
भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा समझ किया जरासंध का वध, 14 दिन तक चला युद्ध
जरासंध की मौत लगभग नामुमकिन थी क्योंकि उसके शरीर के टुकड़े होने के बावजूद उसके बार-बार जुड़ जाने की अजीबगरीब शक्ति थी। श्रीकृष्ण ने ऐसे में एक योजना बनाई और ब्रह्मण वेष में अर्जुन और भीम के साथ जरासंध के राज्य पहुंचे और उसे कुश्ती के लिए ललकारा। जरासंध को कुश्ती का शौक था और इसलिए वह भी तैयार हो गया। जरासंध को हालांकि साथ ही पता चल गया कि कुश्ती की चुनौती देने वाले साधारण ब्राह्मण नहीं हैं। उसके कहने पर फिर कृष्ण सहित भीम और अर्जुन ने अपना सही परिचय दिया।
महाभारत की कथा के अनुसार भीम और जरासंध के बीच 13 दिनों तक युद्ध चलता रहा। भीम जब भी जरासंध के शरीर के दो टुकड़े करते वह आपस में फिर जुड़ जाते। हार-जीत का निर्णय नहीं हो पा रहा था। ऐसे में श्रीकृष्ण ने 14वें दिन युद्ध के बीच एक तिनके को दो टुड़के कर दोनों भाग को विपरीत दिशा में फेंकने का इशारा किया। भीम यह देखते ही पूरा माजरा समझ गये। उन्होंने वही किया और जरासंध के शरीर को दोफाड़ कर उसके बाएं ओर के टुकड़े को दाहिने ओर दाएं ओर के टुकड़े को बाएं ओर फेंक दिया। इस तरह जरासंध के शरीर फिर कभी नहीं वापस में जुड़ सके और उसका वध हुआ।