देशभर में आज यानी 4 मार्च को भगवान शिवजी का महापर्व महाशिवरात्रि मनाया जा रहा है। महाकाल के भक्त आज व्रत रखते हैं और शिवालयों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। देशभर में शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों के अलावा लाखों मंदिर हैं।
केदारनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, और मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर यह तीन ऐसे मंदिर हैं, जो दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। लेकिन इनके अलावा भी नीलकंठ महादेव के कुछ ऐसे चमत्कारिक मंदिर हैं, जिनके बारे में भक्तों को ज्यादा जानकारी नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसमें हिंदू-मुस्लिम एक साथ पूजा और नमाज अदा करते हैं।
गुवाहाटी के रंगमहल गांव में एक ऐसा भी मंदिर है जहां पिछले 500 सालों से हिंदू पूजा करते हैं और मुस्लिम नमाज अदा करते हैं। इस मंदिर की देखरेख एक मुस्लिम परिवार कर रहा है। मंदिर की देखरेख कर रहे मतिबर रहमान का कहना है 'भगवान शिव' उनके नाना की तरह हैं।
रहमान ने कहा। 'मैं उन्हें (भगवान शिवजी) को नाना कहता हूं। यह 500 साल पुराना मंदिर है, हमारा परिवार मंदिर की देखभाल करता है। दोनों धर्मों के लोग - हिंदू- मुस्लिम यहां पूजा अर्चना और नमाज अदा करने आते हैं और सबकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।'
रहमान ने कहा कि वह खुद 'शिवालय' या शिव मंदिर में 'दुआ' करते हैं। हमारा परिवार पीढ़ियों से शिव मंदिर की देखभाल कर रहा है। मंदिर को हिंदू-मुस्लिम का प्रतीक माना जाता है।
ओडिशा के टिटलागढ़ के कुम्हड़ा पहाड़ी पर एक रहस्यमयी शिव मंदिर है, जहां भले ही बाहर का तापमान 50 डिग्री से ऊपर हो, अंदर का तापमान 10 डिग्री से नीचे रहता है। यहां तक कि जब देशभर में चिलचिलाती गर्मी पड़ रही होती है उन दिनों भी यह मंदिर इतना ठंडा रहता है। यानी यह मंदिर इतना ठंडा रहता है कि आपको खुद को कंबल से ढंकना ही होगा। ऐसा माना जाता है कि यह भारत का सबसे शांत मंदिर है।
टिटलागढ़ का मंदिर भी चमत्कारिक
टिटलागढ़ ओडिशा के सबसे सबसे गर्म स्थान में से एक है। यह एक ऐसा जगह है, जहां गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला जाता है। लेकिन यहां आने के बाद आप मंदिर के अंदर एयर कंडीशनर रूम की तरह ठंड महसूस कर सकते हैं। बेशक बाहर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस ही क्यों न हो लेकिन अंदर ठंड ही रहती है।
कंबल ओढ़कर बैठते हैं पुजारीऐसा कहा जाता है कि माना जाता है कि 3000 साल पुराने इस मंदिर में कई बार इतनी ठंड बढ़ जाती है कि पुजारियों को कंबल ओढ़ना पड़ता है। वहीं, मंदिर के बाहर इतनी गर्मी होती है कि आप पांच मिनट से ज्यादा खड़े नहीं हो सकते हैं।
कैसे बना यह मंदिरबताया जाता है कि इस सालों पुराने मंदिर के बनने से पहले यहां चट्टान के ऊपर पहले एक छोटी-सी जगह में शिव-पार्वती की प्रतिमाएं थीं। तब लोगों को लेटकर भीतर जाना पड़ता था। बाद में चट्टान के नीचे के हिस्से को काटकर गुफानुमा मंदिर बनाया गया।