साल में एक या दो बार ही आती है सोमवती अमावस्या, जानें इसके बारे में सबकुछ

By गुणातीत ओझा | Updated: July 16, 2020 19:17 IST2020-07-16T19:17:01+5:302020-07-16T19:17:01+5:30

सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान और खड़ी हल्दी को मिलाकर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढ़ाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है।

know all about somwati amavasya | साल में एक या दो बार ही आती है सोमवती अमावस्या, जानें इसके बारे में सबकुछ

सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं।

Highlightsसोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं।विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है।

सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ये वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।

अमावस्या के दिन इन कामों से बचें

उज्जैन के पंडित मनीष शर्मा के अनुसार अमा का अर्थ है करीब, तथा वस्या का अर्थ है, रहना। इसका अर्थ है, करीब रहना। इस दिन चंद्र दिखाई नही देता, तथा तिथियों में इस तिथि के स्वामी पितर होते हैं। इसलिए इस तिथि को कोई भी शुभ कर्म करना निषेध है। यहां तक की मजदूरवर्ग भी इस दिन काम बंद रखता है। यात्रा को इस दिन नहीं किया जाता, क्योंकि चंद्रमा की शक्ति प्राप्त नहीं होने के कारण शरीर में एक महत्वपूर्ण तत्व जल का संतुलन ठीक नहीं रहता। जिससे निर्णय सही नहीं हो पाते ज्यादातर गलतीयां  होती हैं। जिससे दुर्घटनाओं के होने का भय रहता है। साथ यदि यात्रा व्यापारिक हो तो सही फैसले नहीं होते जिससे नुकसान होने का भय रहता है।

सोमवती अमावस्या 20 जुलाई को

इस बार सोमवती अमावस्या 20 जुलाई 2020 सोमवार को होगी। अमावस्या सोमवार को आने से सोमवती अमावस्या कहलाएगी। सोमवार चंद्र का दिन होता है। चंद्र औषधी, धन एवं मन का कारक ग्रह है, एवं अमावस्या पितरों के स्वामित्व की तिथि है। पितरों का निवास भी चंद्र के पृष्ठ भाग  पर ही माना जाता है। अत: इस दिन इसलिए पितरों के तर्पण एवं पवित्र नदीयों में स्नान कर पितरों को जलांजली देने का महत्व है।

यह अमावस्या मेष राशि  में होगी

सोमवार एवं अमावस्या का संयोग वर्षभर में 1 या 2 बार ही होता है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चंद्रमा एक ही राशि में भ्रमण करते हैं। इस बार यह अमावस्या मेष राशि  में होगी। मेष राशि का स्वामी मंगल है, एवं सूर्य एवं चंद्रमा उसके मित्र हैं। चंद्र का ही वार होने से इस अमावस्या का महत्व ज्यादा बढ़ जाएगा। अमावस्या तिथि के लिए ही वारों को महत्वपूर्ण माना जाता है। पूर्णीमा के लिए वारों का  महत्व ज्यादा नहीं है। अमावस्या सोमवार को या शनिवार को आने से उसका महत्व ज्यादा बढ़ जाता है। सोमवार को आने से सोमवती एवं शनिवार को शनैश्चरी अमावस्य कहलाती है।

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