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शिव कथाः भूतनाथ महादेव मृत्युलोक में माता पार्वती के साथ पधारे..

By गुणातीत ओझा | Updated: June 15, 2020 11:50 IST

शास्त्रों में कहा गया है कि 16 सोमवार का व्रत रखने से भगवान शिव खुश होकर अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण होने का वरदान देते हैं। आइये आपको बताते हैं 16 सोमवार के व्रत की कथा..

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ठळक मुद्देसोमवार का दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है, इस दिन 16 व्रत शुरू करने से भक्त की सारी मनोकामना पूर्ण होती है।मान्यता है कि भगवान शिव मृत्युलोक माता पार्वती के साथ आए थे, तभी से 16 सोमवार के व्रत की शुरुआत हुई।

Shiva Katha: एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी मृत्युलोक में विहार की इच्छा करके माता पार्वती के साथ पधारे। विदर्भ देश की अमरावती नगरी जो कि सभी सुखों से परिपूर्ण थी वहां पधारे। वहां के राजा द्वारा निर्मित एक अत्यंत सुन्दर शिव मंदिर था, जहां वे रहने लगे। एक बार पार्वती जी ने चौसर खेलने की इच्छा की। तभी मंदिर में पुजारी के प्रवेश करने पर माताजी ने पूछा कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? तो ब्राह्मण ने कहा कि महादेव जी की। लेकिन पार्वती जी जीत गयीं। तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया। कई दिनों के पश्चात देवलोक की अप्सराएं, उस मंदिर में पधारीं और उसे देखकर कारण पूछा। पुजारी ने निःसंकोच सब बताया। तब अप्सराओं ने ढाढस बंधाया और सोलह सोमवार के व्रत्र रखने का उपाय सुझाया।

विधि पूछने पर उन्होंने विधि भी बताई। इससे शिवजी की कृपा से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। फ़िर अप्सराएं स्वर्ग चली गयीं। ब्राह्मण सोमवार का व्रत कर रोगमुक्त होकर जीवन व्यतीत किया। कुछ दिन उपरांत शिव पार्वती जी के पधारने पर, पार्वती जी ने उसके रोगमुक्त होने के बारे में पूछा। तब ब्राह्मण ने सारी कथा बताई। तब पार्वती जी ने भी यही व्रत किया और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। उनके रूठे पुत्र कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए। परन्तु कार्तिकेय जी ने अपने विचार परिवर्तन का कारण पूछा। तब पार्वती जी ने वही कथा उन्हें भी बताई। तब स्वामी कार्तिकेय जी ने भी यही व्रत किया। उनकी भी इच्छा पूर्ण हुई। उनसे उनके मित्र ब्राह्मण ने पूछ कर यही व्रत किया। फ़िर वह ब्राह्मण विदेश गया और एक राजा के यहां स्वयंवर में गया। वहां राजा ने प्रण किया था कि एक हथिनी एक माला, जिस के गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री की उसी से विवाह करेगा। वहां शिव कृपा से हथिनी ने माला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी। राजा ने उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। उस कन्या के पूछने पर ब्राह्मण ने उसे कथा बताई। तब उस कन्या ने भी वही व्रत कर एक सुंदर पुत्र पाया। बाद में उस पुत्र ने भी यही व्रत किया और एक वृद्ध राजा का राज्य पाया। 

जब वह नया राजा सोमवार की पूजा करने गया, तो उसकी पत्नी अश्रद्धा होने से नहीं गई। पूजा पूर्ण होने पर आकाशवाणी हुई, कि राजन इस कन्या को छोड़ दे, अन्यथा तेरा सर्वनाश हो जाएगा। अंत में उसने रानी को राज्य से निकाल दिया। वह रानी भूखी प्यासी रोती हुई दूसरे नगर में पहुंची। वहां एक बुढ़िया उसे मिली जो धागे बनाती थी। उसी के साथ काम करने लगी पर दूसरे दिन जब वो धागा बेचने निकली तो अचानक तेज हवा चली और सारे धागे उड़ गए तो मालकिन ने गुस्से में आकर उसे काम से निकाल दिया। फिर रोते फिरते वह एक तेली के घर पहुँची तेली ने उसे रख लिया पर भन्डार घर में जाते ही तेल के बर्तन गिर गए और तेल बह गया तो उस तेली ने उसे घर से निकाल दिया। इस प्रकार सभी जगह से निकाले जाने के बाद वह एक सुन्दर वन मे पहुँची वहाँ के तालाब से पानी पीने के लिए जब बढ़ी तो तालाब सूख गया थोड़ा पानी बचा जो कि कीटो से युक्त था। उसी पानी को पीकर वो एक वृक्ष के नीचे बैठ गई पर तुरंत उस वृक्ष के पत्ते झड़ गए। इस तरह वो जिस वृक्ष के नीचे से गुज़रती वह वृक्ष पत्तों से विहीन हो जाता, ऐसे ही सारा वन ही सूखने को आया। यह देखकर कुछ चरवाहा उस रानी को लेकर एक शिव मंदिर के पुजारी के पास गए। वहाँ रानी ने पुजारी के आग्रह से सारी बात बताई और सुन कर पुजारी ने कहा की तुम्हें शिव का श्राप लगा है।

रानी ने विनती कर पूछा तो पुजारी ने इसके निदान का उपाय बताया और सोमवार व्रत की विधि बताई। रानी ने तन मन से व्रत पूरा किया और शिव की कृपा से सत्रहवें सोमवार को राजा का मन परिवर्तन हुआ। राजा ने रानी को खोजने के लिए दूत भेजे। पता लगने के बाद राजा ने बुलावा भेजा पर पुजारी ने कहा राजा को स्वयं भेजो। इसपर राजा ने विचार किया और स्वयं पहुंचे। रानी को लेकर दरबार पहुंचे और उनका स्थान दिया। सम्पूर्ण शहर मे खुशियां मनाई गई। राजा ने गरीबों को दान-दक्षिणा दी और शिव के परमभक्त होकर नियमपूर्वक 16 सोमवार का व्रत करने लगे और संसार के सारे सुख को भोगकर अंत में शिवधाम गए। इस प्रकार जो भी मन लगाकर श्रद्धा पूर्वक नियम से 16 सोमवार का व्रत करेगा वह इस लोक में परम सुख को प्राप्त कर अंत मे परलोक मे मुक्ति को प्राप्त होगा।

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