Karva Chauth 2019: करवाचौथ पर छलनी से क्यों देखते हैं चांद? जानिए वजह
By मेघना वर्मा | Published: October 15, 2019 02:29 PM2019-10-15T14:29:40+5:302019-10-15T14:29:40+5:30
हिन्दू धर्म में चांद को ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चांद के वरदान से इन्सान को लंबी आयु मिलती है।
करवा चौथ का व्रत इस साल 17 अक्टूबर को पड़ रहा है। करवाचौथ का व्रत पति और पत्नी के अटूट प्यार को दर्शाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं ना सिर्फ व्रत करती है बल्कि पूरे साज और 16 श्रृंगार के साथ चांद की पूजा भी करती हैं। चांद को अर्घ्य देने के बाद वो छलनी से चांद को देखती हैं और फिर उसी छलनी से अपने पति की सूरत निहारती हैं।
करवा चौथ पर चांद को छलनी से देखने की ये प्रथा सिर्फ आज ही नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही हैं लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों। आइए हम आपको बताते हैं...
चांद को मानते हैं ब्रह्मा का प्रतीक
हिन्दू धर्म में चांद को ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चांद के वरदान से इन्सान को लंबी आयु मिलती है। चांद में सुंदरता, शीतलता, प्यार, सिद्धी और प्रसिद्धी के लिए पूजा जाता है। यही कारण है कि करवा चौथ का व्रत महिलाएं चांद को देखकर तोड़ती हैं। छलनी से पूजा करने के बाद वो अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
भाइयों ने बहन के साथ किया था धोखा
छलनी से चांद को देखने की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक साहुकार के तीन सात बेटे और एक बेटी थे। बेटी ने अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। जब सभी भाई खाना खाने बैठे तो बहन को भी बुलाया लेकिन बहन ने चांद पूजन के बाद ही कुछ खाने के लिए कहा।
ऐसे में भाईयों को अपनी बहन की चिंता हुई और उन्होंने दूर एक दिया रखकर छलनी के माध्यम से अपनी बहन को दिखाया और कहा कि चांद निकल आया है। बहन ने उसे चांद समझकर पूजा कर लिया। इसके बाद जब बहन ने व्रत तोड़ा तो उसके पति की तबियत बहुत खराब हो गई।
तब से आज तक छलनी में दीया रखकर चांद को देखने और फिर पति की पूजा का चलन चला आ रहा है। ऐसा छल किसी और शादीशुदा महिला के साथ ना हो इसीलिए छलनी से चांद को देखा जाता है।
बन रहा है दुर्लभ संयोग
इस बार के करवाचौथ पर सालों बाद दुर्लभ संयोग पड़ रहा है। शारदीय नवरात्रि के बाद मनाए जाने वाले इस त्योहार पर महिलाएं सुबह से व्रत रखती हैं। बिना पानी पिएं शाम को चांद देखकर ही व्रत खोलती हैं। करवाचौथ की कथा पढ़ने के बाद ही यह व्रत शुरू हो जाता है।