ज्योतिष शास्त्र: 9 ग्रहों में कौन से ग्रह शुभ और कौन से अशुभ परिणाम देते हैं? जानें कुण्डली में राहु का असर
By गुणातीत ओझा | Published: September 6, 2020 01:33 PM2020-09-06T13:33:11+5:302020-09-06T18:00:08+5:30
ज्योतिष शास्त्र सभी 9 ग्रहों की चाल,12 राशियों के गुण और 27 नक्षत्रों की गणना के आधार पर ही किसी घटना के बारे में भविष्यवाणी करता है।
ज्योतिष शास्त्र सभी 9 ग्रहों की चाल,12 राशियों के गुण और 27 नक्षत्रों की गणना के आधार पर ही किसी घटना के बारे में भविष्यवाणी करता है। ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों की अपनी-अपनी भूमिका होती है। सभी का गहन रूप से विश्लेषण कर किसी नतीजे पर पहुंचा जाता है। ज्योतिष गणना में ग्रहों की विशेष भूमिका होती है। सभी 9 ग्रहों में कुछ ग्रह शुभ तो कुछ अशुभ परिणाम देते हैं।
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि आम धारणा के अनुसार कुछ ऐसे ग्रह हैं जिनका नाम आते ही लोग डर कर कांपने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अगर ये ग्रह कुंडली के अशुभ घर में आकर बैठ गए तो जीवन में भारी मुसीबते आनी आरंभ हो जाएंगी। इन ग्रहों में राहु, केतु, शनि और मंगल का नाम आता है। ज्योतिष शास्त्र में इन्हें पापी और अशुभ फल देने वाला ग्रह माना गया है। हालांकि ये ग्रह हमेशा अशुभ फल ही देते हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता। कभी-कभी ये पापी और अशुभ ग्रह कुंडली में ऐसे भाव में आकर बैठ जाते हैं जहां से जातक के जीवन में वैभव और तमाम तरह की खुशियां मिलने लगती हैं। जातक रंक से राजा बन जाता है।
आज हम आपको राहु ग्रह के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल राहु 18 महीनों के बाद 23 सितंबर 2020 को राशि परिवर्तन करने जा रहा है। राहु के राशि परिवर्तन से सभी जातकों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ने वाला है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु एक ऐसा ग्रह है जो अचानक फल देता है। यह फल शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी। इसी कारण से राहु का नाम सुनते ही लोग परेशान हो उठते हैं। राहु की चाल से कुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग बनते हैं। राहु की वजह से लोगों की बुद्धि भ्रमित हो जाती है। लेकिन कुछ ऐसी स्थितियां भी बनती है जब राहु न सिर्फ सताता है बल्कि राजपाठ भी दिलाता देता है। राहु की वजह से व्यक्ति सभी तरह का सुख और वैभव को प्राप्त करने लगता है। राहु की जब- जब भी किसी अन्य ग्रह के साथ मिलकर युति बनती है तब शुभ और अशुभ दोनों तरह का योग बनता है।
राहु ग्रह का महत्व
ज्योतिष में राहु ग्रह को एक पापी ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को कठोर वाणी, जुआ, यात्राएं, चोरी, दुष्ट कर्म, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएं आदि का कारक कहते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में राहु अशुभ स्थान पर बैठा होए अथवा पीड़ित हो तो यह जातक को इसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।
राहु: छाया ग्रह क्यों ?
27 नक्षत्रों में राहु आद्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु एक छाया ग्रह है जिसका कोई भी भौतिक स्वरूप नहीं है। दरअसल सूर्य और पृथ्वी के बीच जब चंद्रमा आता है और चंद्रमा का मुख सूर्य की तरफ होता है तो पृथ्वी पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया राहु ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है।
राशियों से संबंध
हिन्दू ज्योतिष में राहु को एक पापी ग्रह माना गया है। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।
ऐसे समझें राहु काल
हिन्दू पंचांग के अनुसार राहु ग्रह के प्रभाव से दिन में एक अशुभ समयावधि होती है जिसमें शुभ कार्यों को करना वर्जित माना गया है। इस अवधि को राहु काल कहते हैं। यह अवधि लगभग डेढ़ घण्टे की होती है और स्थान व तिथि के अनुसार इसमें अंतर देखने को मिलता है।
राहु ग्रह का असर
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु ग्रह मजबूत होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। राहु ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में राहु की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित है तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है। वहीं राहु अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है।
अष्टलक्ष्मी शुभ योग
राहु सभी ग्रहों में ऐसा ग्रह है जो हमेशा उल्टी चाल से ही चलता है। इसकी कोई भी अपनी राशि नहीं होती है। यह जिस राशि के साथ जाता है उस राशि के स्वामी ग्रह के हिसाब से फल देता है। अगर राहु किसी जातक की कुंडली में छठे भाव में आकर बैठता है और कुंडली गुरु लग्न की है तो अष्टलक्ष्मी नाम का शुभ योग बनाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि अगर किसी की कुंडली में ऐसा योग बनता है तो राहु उसके जीवन को धन-दौलत और सुख संपदा से परिपूर्ण कर देता है। अष्टलक्ष्मी योग बनने से राहु का नकारात्मक प्रभाव खत्म हो जाता है और व्यक्ति को शुभ फल मिलने लगता है।
लग्नकारक शुभ योग
अष्टलक्ष्मी योग की ही तरह लग्नकारक शुभ योग भी राहु के द्वारा बनता है। जब राहु कुंडली के दूसरे, नौवें और दसवें में होता और जातक की कुंडली मेष, कर्क और वृष लग्न की होती है तब लग्नकारक शुभ योग बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी यह योग बनता है तब जातक की कुंडली से राहु का अशुभ प्रभाव खत्म हो जाता है। ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी रहती है और जीवन में ज्यादा परेशानियां नहीं मिलती है।
राहु की शुभ द्दष्टि
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली के छठे, तृतीय या फिर एकादश भाव के अलावा लग्न में मौजूद राहु पर शुभ ग्रहों की नजर पड़ रही होती है तो व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती है। हर मुश्किल काम बहुत ही आसानी के साथ हो जाता है।
राहु का अशुभ योग
कपट योग
जब शनि और राहु के साथ किसी की कुंडली के ग्यारहवें और छठे भाव में आकर बैठते हैं तो कपट योग बनता है। इस योग के बनने से व्यक्ति किसी का विश्वासपात्र नहीं बन पाता है।
पिशाच योग
राहु की वजह से यह सबसे खराब योग बनता है। जिन जातकों की कुंडली में यह योग बनता है उसे प्रेत संबंधी तमाम तरह की परेशानियां होती है।
गुरु चांडाल योग
जब गुरु और राहु की युति बनती है तब कुंडली में गुरु चांडाल योग बनता है। यह योग बहुत ही अशुभ योग कहलाता है। इस योग से राहु व्यक्ति को बहुत ज्यादा परेशान करता है।