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साल की अंतिम एकादशी आज, कथा पढ़ने मात्र से होती है पुत्र प्राप्ति

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: December 29, 2017 12:51 IST

हिंदु धर्म में पुत्रदा एकादशी का इतना महत्व है कि लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं। इसके पीछे एक किंवदंती बहुत प्रचलित है।

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आज 29 दिसंबर 2017 को साल की अंतिम एकादशी है। इसे वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पंचाग के अनुसार धनुर माह या धनुर्मास को मार्गाज्ही मास भी कहा जाता है। धनुर्मास के दौरान दो एकादशी आती है, जिसमें से एक शुक्ल पक्ष में तो दूसरी कृष्ण पक्ष में आती है। इस दिन को पुत्रदा एकादशी के रूप में भी मानाया जाता है। इस दिन लोग संतान की प्राप्ति के लिए व्रत भी रखते हैं। 

आज व्रत रखने से होगी स्वर्ग की प्राप्ति

मान्यता है कि इस एकादशी के दिन वैकुण्ठ जो कि भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है और जिसे हिंदु धर्म में स्वर्ग भी कहा जाता है, उसके द्वार खुले होते हैं । इसलिए लोग इस दिन व्रत करते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाते हैं। वैकुण्ठ एकादशी का दिन तिरुपति के तिरुमाला वेंकेटेश्वर मंदिर और श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन इन मंदिरों में उत्सव का आयोजन किया जाता है।

क्यों मनाया जाता है पुत्रदा एकादशी 

इस दिन को पुत्रदा एकादशी के रुप में भी मानाया जाता है। मान्यता है कि व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है। इसके पीछे एक किंवदंती बहुत प्रचलित है। पहले किसी समय में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी, इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में रहते थे। इसी शोक में एक दिन राजा सुकेतुमान वन में चले गए। जब राजा को प्यास लगी तो वे एक सरोवर के निकट पहुंचे। वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने उन सभी मुनियों की वंदना की।

प्रसन्न होकर मुनियों ने राजा से वरदान मांगने को कहा। मुनि बोले कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकदाशी कहते हैं। उस दिन व्रत रखने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। तुम भी वही व्रत करो। ऋषियों के कहने पर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया और न्यायपूर्वक शासन किया।

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