हिन्दू धर्म में तुलसी को बेहद पवित्र माना गया है। जहां आस्था के लिए मां तुलसी की लगभग हर घर में पूजा होती है वहीं तुलसी को स्वास्थय के लिए भी लाभप्रद बताया गया है। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है।
सिर्फ यही नहीं इसी दिन विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं तो आज ही के दिन से शुभ काम जैसे शादी-विवाह शुरू होते हैं। इस साल यह त्योहार 19 नवंबर को पड़ रहा है। आइए आपको बताते हैं क्यों मनाया जाता है ये त्योहार।
देवोत्थान एकादशी को देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी नामों से भी जानते हैं। इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम संग किया जाता है। इस दिन महिलाएं या कोई भी जन अपने घर में पूजित तुलसी का श्रृंगार करता है उन्हें नए कपड़े चढ़ाता है और घी के दीयों, भोग के साथ मां तुलसी की शादी करवाता है।
भगवान शिव के बेटे जलंधर का घमंड तोड़ते हुए और अपनी ही माता पार्वती पर कुदृष्टी डालने की हरकत से परेशान होकर उसके वध की योजना बनाई। जब जलंधर की शक्तियों से वह हार गए तो भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने जलंधर की पत्नी वृंदा का रूप धारण किया और सतीत्व को भंग कर दिया।
इससे जलंधर की शक्तियां धीरे-धीरे कम हो गई और वो देवताओं के हाथों मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। बहुत मनाने के बाद उसने ये श्राप वापिस लिया। मगर विष्णु ने खुद के स्वरूप का एक पत्थर बनाया और उसे ही शालिग्राम कहा गया।
वृंदा अपने पति जलंधर के साथ ही सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा बना। भगवान विष्णु ने उसे अपने सिर पर स्थान दिया। देवताओं ने वृंदा का मान रखने के लिए तुलसी की शादी शालिग्राम से कर दी तब से ये परंपरा कायम है।