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Dev Uthani Ekadashi 2019: पढ़िए देवउठनी एकादशी की व्रत कथा

By मेघना वर्मा | Updated: November 3, 2019 07:15 IST

Dev Uthani Ekadashi vrat katha in hindi: कार्तिक मास में आने वाली इस एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु को पूजा जाता है। 

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ठळक मुद्देइस साल देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। देवश्यनी एकादशी के बाद से सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। जो की देवउठनी एकादशी पर ही आकर वापिस से शुरू होते हैं।

हिन्दू धर्म में अकादशी की सबसे ज्यादा महत्ता बताई गई है। कार्तिक मास में पड़ने वाली देवउठनी एकादशी पर लोगों पूरे विधि-विधान से श्री विष्णु की पूजा की जाती है। इस साल देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की नींद से जागते हैं। बताया तो ये भी जाता है कि इस दिन सभी देवता जागते हैं। इसी दिन के बाद से सारे शुभ और मांगलिक काम भी शुरू हो जाते हैं।

देवउठनी एकादशी की महत्ता

देवश्यनी एकादशी के बाद से सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। जो की देवउठनी एकादशी पर ही आकर वापिस से शुरू होते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी नींद से जागते हैं। कार्तिक मास में आने वाली इस एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु को पूजा जाता है। 

क्या है देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

देवउठनी एकादशी 2019 तिथि  देवउठनी एकादशी 2019 में कार्तिक मास की शुक्लपक्ष तिथि में 8 नवंबर 2019 को है।देवउठनी एकादशी तिथि प्रारम्भ - सुबह 9 बजकर 55 मिनट से ( 7 नवम्बर 2019) देवउठनी एकादशी तिथि समाप्त - अगले दिन दोपहर 12 बजकर 24 तक (8 नवम्बर 2019)

देवउठनी एकादशी की व्रत कथा

प्राचीन कथा के अनुसार एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। फिर चाहे वो प्रजा हो नौकर-चाकर हो या पशु। किसी को भी एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी पड़ोसी राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आया। यहां आकर वो नौकरी मांगने लगा। राजा ने नौकरी पर रखा तो मगर सामने एक शर्त भी रख दी। राजा ने कहा कि रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।

उस व्यक्ति ने अपनी नौकरी के लिए उस समय तो 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा। उसने कहा कि उसका पेट नहीं भरता उसे भूख लगती है। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई। वो आदमी अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ।

तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वो आदमी नदी किनारे पहुंचे और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजन करके भगवान अंतर्धान हो गए और वह अपने काम पर चला गया।

15 दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।

यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा बोले मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। राजा उस आदमी के साथ गए और पेड़ के पीछे छिपकर बैठ कर देखने लगे। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।

लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा देखकर भगवान तुरंत प्रकट हुए और उसके साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

(ये कहानी लोक कथा और लोगों की लौकिक मान्यताओं पर आधारित है )

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