Dev Deepawali 2019: यहां पढ़िए देव दीपावली की पौराणिक कथा

By मेघना वर्मा | Published: November 4, 2019 03:53 PM2019-11-04T15:53:29+5:302019-11-04T15:53:29+5:30

देव दीपावली को देवों की दिवाली भी कहते हैं। माना जाता है कि जिस प्रकार इंसान दिवाली पर दीये जलाता है उसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता भी दीये जलाकर दीपावली मनाते हैं।

Dev Deepawali 2019: know the history of dev deepawali, dev deepawali ki kahani, story of dev deepawali | Dev Deepawali 2019: यहां पढ़िए देव दीपावली की पौराणिक कथा

Dev Deepawali 2019: यहां पढ़िए देव दीपावली की पौराणिक कथा

Highlightsदेव दीपावली इस साल 12 नवंबर को पड़ रही है।देव दीपावली को देवों की दिवाली भी कहते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा को हिन्दू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का जश्न भी मनाया जाता है। खासकर वारणसी में इस त्योहार का अलग ही रंग देखने को मिलता है। इसे देवों की दीपावली भी कहा जाता है। इस साल देव दीपावली का ये पावन पर्व 12 नवम्बर को पड़ रहा है। 

देव दीपावली को देवों की दिवाली भी कहते हैं। माना जाता है कि जिस प्रकार इंसान दिवाली पर दीये जलाता है उसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता भी दीये जलाकर दीपावली मनाते हैं। इसीलिए इसका नाम देव दीपावली रखा गया है।

देव दीपावली का शुभ मुहूर्त

देव दीपावली 2019 तिथि- 12 नवंबर 2019
शुभ मुहूर्त
देव दीपावली प्रदोष काल शुभ मुहूर्त - शाम 5 बजकर 11 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक 
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- शाम 6 बजकर 2 मिनट से (11 नवंबर 2019) 
पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगले दिन शाम 7 बजकर 4 मिनट तक (12 नवंबर 2019)

देव दीपावली की पौराणिक कथा

प्राचीन कथा के अनुसार भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। जिसने अपने उत्पात से सभी को परेशान कर रखा था। इसी के बाद से देवों ने खुश होकर इस दिन दीया जलाया था। तभी से आज तक देव दीपावली का ये जश्न मनाया जाता है। 

एक और कहानी के अनुसार

त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचा दिया। देवतागण इससे उद्विग्न हो गए और त्रिशंकु को देवताओं ने स्वर्ग से भगा दिया। शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे। त्रिशंकु को स्वर्ग से निष्कासित किए जाने से क्षुब्ध विश्वामित्र ने पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त एक नई समूची सृष्टि की ही अपने तपोबल से रचना प्रारंभ कर दी।

उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊँट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम प्रारंभ कर दिया। इसी क्रम में विश्वामित्र ने वर्तमान ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतिमा बनाकर उन्हें अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूँकना आरंभ किया। सारी सृष्टि डाँवाडोल हो उठी। हर ओर कोहराम मच गया। हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की अभ्यर्थना की।

महर्षि प्रसन्न हो गए और उन्होंने नई सृष्टि की रचना का अपना संकल्प वापस ले लिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह इस अवसर पर दीपावली मनाई गई। यही अवसर अब देव दीपावली के रूप में विख्यात है।

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