अकोला, 13 नवंबर: सारा संसार जब जलमग्न था एवं ब्रम्ह देव कमल पुष्प में बैठ कर निराकार परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे. 'टप, टप, टप, टप' सारे ब्रम्हांड में ब्रम्हा जी के नेत्रों से, ईश-प्रेम के अनुराग के टपकते अश्रुओं की ध्वनि गूंज उठी तथा इन्हीं प्रेम अश्रुओं से जन्म हुआ आंवले के वृक्ष का.
कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी, आंवला नवमी या युगतिथि कहते हैं. इसी दिन आंवले के वृक्ष की पूजा कर इसी वृक्ष की छाया में भोजन करने का विधान है. कार्तिक महात्म्य में आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने को ''अन्न-दोष-मुक्ति'' कहा है. श्री हरि को आंवला सर्वाधिक प्रिय है, इसीलिए कार्तिक में रोज एक आंवला फल खाने की आज्ञा धर्मशास्त्र देते हैं.
अब जरा आंवले का सौ प्रतिशत आर्यसत्य भी जान लें - ''वय:स्थापन'' यह आचार्य चरक कहते हैं. अर्थात सुंदरता को स्तंभित (रोक कर) करने के लिए आंवला अमृत है. बूढ़े को जवान बनाने की क्षमता केवल आंवले में है. आखिर इसमें सत्यता कितनी है ? इसे विज्ञान की दृष्टि से देखते हैं- शरीर के अंगों में नए कोषाणुओं का निर्माण रुक जाने, कम हो जाने से कार्बोनेट अधिक हो जाता है, जो घबराहट पैदा करता है. आंवला पुराने कोषाणुओं को भारी शक्ति प्रदान करता है, ऑक्सिजन देता है.
संक्षिप्त में आंवला चिर यौवन प्रदाता, ईश्वर का दिया सुंदर प्रसाद है. आंवला एकमात्र वह फल है, जिसे उबालने पर भी विटामिन 'सी' जस-का-तस रहता है. च्यवनप्राश में सर्वाधित आंवले का प्रयोग होता है. आंवले को कम-ज्यादा प्रमाण में खाने से कोई नुकसान नहीं है, फिर थोड़ा-सा शहद डाल कर खाने से अति उत्तम स्वास्थ्य-लाभ होता है.
आयुर्वेद में आंवले को त्रिदोषहर कहा गया है. यानी वात, पित्त, कफ इन तीनों को नियंत्रित रखता है आंवला. सिरदर्द, रक्तपित्त, पेचिश, मुखशोथ , श्वेद प्रदर, अपचन जनित ज्वर, वमन, प्रमेह, कामला, पांडु, दृष्टिदोष एवं शीतला जैसे हजारों रोगों में आंवले का उपयोग होता है. आंवला केवल फल नहीं, हजारों वर्ष की आयुर्वेदाचार्यों की मेहनत का अक्षयपुण्य फल है. आंवला धर्म का रूप धारण कर हमारे उत्तम स्वास्थ्य को बनाए रखता है.
आंवला नवमी से तुलसी विवाह आरंभ हो कर पूर्णिमा तक शुभ फलदायी रहता है. कथा संक्षेप में -किशोरी नामक कन्या की जन्मकुण्डली में वैधव्य योग रहता है. अक्षय नवमी को वह किशोरी तुलसी का व्रत करती है. पीपल, तुलसी का पूजन करती है. विलेपी नामक युवक किशारी से प्रेम करता है एवं किशोरी का स्पर्श होते ही वह मृत्यु को प्राप्त करता है. इधर किशोरी को प्राप्त करने का वरदान सूर्य से प्राप्त करता है राजकुमार मुकुन्द. ईश्वर का लिखा (भाग्य) भी पूरा हो जाता है. वैधव्य योग भी पूर्ण होता है तथा मुकुंद को पत्नी रूप में किशोरी भी प्राप्त हो जाती है.
विशेष- कुण्डली में वैधव्य या विधुर योग होने पर इस दिन कुंभ विवाह करना शुभ होता है. - पं. रविकुमार शर्मा अकोला.