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अमरनाथ यात्रा: इस पवित्र गुफा में आखिर क्या है दो सफेद कबूतरों का राज, क्या वे कभी नहीं मरते?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 26, 2019 11:27 IST

भगवान शिव जब पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा की ओर जा रहे थे तो उन्होंने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को भी चंदनवाड़ी में अलग कर दिया।

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ठळक मुद्देपवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए हर साल जाते हैं कई श्रद्धालुयहां मौजूद दो कबूतरों की कहानी है सबसे अनोखी और दिलचस्पमान्यता है कि ये दो कबूतर अमर हैं और हजारों साल से यहां हैं

अमरनाथ यात्रा-2019 इस बार एक जुलाई से आरंभ होने जा रही है। हर साल इस यात्रा में कई श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। इस बार 46 दिनों तक चलने वाले अमरनाथ यात्रा का समापन 15 अगस्त को रक्षा बंधन के त्योहार के साथ होगा।

जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित अमरनाथ की पवित्र गुफा का हिंदू मान्यताओं में बड़ा महत्व है। इस गुफा में हर साल प्राकृतिक तौर पर बर्फ से शिवलिंग बन जाने के कारण इसे बाबा बर्फानी का स्थान भी कहा जाता है। यह दुनिया में एकमात्र ऐसी जगह है जहां प्राकृतिक तौर पर इस तरह बर्फ से शिवलिंग का निर्माण स्वत: हो जाता है। यहां दो और छोटी-छोटी बर्फ से एक आकृति भी बनती है। इसे माता पार्वती और भगवान गणेश का रूप माना जाता है। 

इन सब बातों के बीच एक और बेहद रोचक और दिलचस्प बात यहां दो कबूतरों की मौजूदगी है। माना जाता है कि कि ये दोनों कबूतर अमर हैं और हजारों साल से यहां विचरण कर रहे हैं। आज भी जब श्रद्धालु अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए जाते हैं तो उनमें से कई इन कबूतरों को देखने का दावा करते हैं। अमरनाथ यात्रा के दौरान इन्हें देखना शुभ और लाभकारी माना जाता है।

अमरनाथ यात्रा: क्या है दो कबूतरों के अमरत्व की कहानी

पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार माता पार्वती ने एक बार भगवान शिव से पूछा कि उन्होंने कंठ में नरमुंड माला का धारण कब शुरू किया। इस पर भगवान शिव ने जवाब दिया- 'तुम्हारे जन्म से भी पहले।' इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके अमर होने का रहस्य पूछा। माता पार्वती ने पूछा कि वे आखिरकार क्यों बार-बार मृत्यु को प्राप्त करती हैं जबकि आप अमर कैसे हैं। 

पहले तो भगवान शिव ने इसे टालने की कोशिश की लेकिन माता पार्वती ने यह प्रश्न लगातार पूछना जारी रखा और आखिरकार एक दिन वे महादेव को इसके जवाब के लिए मनाने में कामयाब रहीं। भगवान शिव ने कहा कि वे अमरत्व की कहानी उन्हें जरूर सुनाएंगे। इसके बाद शिव एक ऐसे स्थान की तलाश करने लगे जहां कोई नहीं हो और जो कथा वे माता पार्वती को सुनाने जा रहे हैं उसे कोई भी सुन न सके। आखिरकार भगवान शंकर को एक गुफा मिली जो उन्हें कथा सुनाने के लिए सही जगह लगी।   

कहा जाता है कि भगवान शिव जब पार्वती के साथ इस गुफा की ओर जा रहे थे तो उन्होंने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को भी चंदनवाड़ी में अलग कर दिया। यही नहीं उन्होंने कंठ पर विराजमान सर्पों को भी शेषवाग झील के पास और अपने पुत्र भगवान गणेश को महागुणास पर्वत और पंजतरणी पर छोड़ दिया। इसके बाद भगवान शिव ने पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का भी त्याग कर दिया।

दो कबूतरों ने सुनी अमरत्व की कहानी 

सभी चीजों को त्याग माता पार्वती को अमरत्व की कहानी सुनाने के लिए भगवान शिव गुफा में पहुंचे। वे सुनिश्चित कर चुके थे कि वहां कोई मौजूद नहीं है। भगवान शिव ने इसके बाद कहानी आरंभ की लेकिन इसे सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। भगवान शिव को इस बारे में पता नहीं चला और वे कथा सुनाते रहे। इस दौरान वहां दो सफेद कबूतर भी थे जो गुफा के एक हिस्से में बैठ हुए थे। भगवान शिव को इसका आभास नहीं था। बहरहाल, दोनों सफेद कबूतर भगवान शिव की कथा सुनते रहे और आखिकार अमरत्व की पूरी कहानी उन्होंने सुन ली।

कथा समाप्त होने के बाद जब भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो वे हैरान रह गये। तभी उनकी नजर वहां मौजूद उन दो कबूतरों पर भी पड़ी। भगवान शिव को इस पर क्रोध आ गया और वे उन दोनों को मारने के लिए बढ़े।

इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए कहा कि अगर वे उन्हें मार देते हैं तो अमरत्व की ये कहानी झूठी साबित हो जाएगी। यह सुन भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने इन दोनों कबूतरों को आशीर्वाद दिया कि वे हमेश इस जगह पर ऐसे ही वास करते रहेंगे। इस तरह यह गुफा भी अमरनाथ गुफा के नाम से लोकप्रिय हो गई।

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