इस महिला को राजनीति में ले आई कांग्रेस, तो टूट जाएगा मायावती-ममता बनर्जी के पीएम बनने का सपना
By जनार्दन पाण्डेय | Updated: August 23, 2018 07:52 IST2018-08-23T07:52:03+5:302018-08-23T07:52:03+5:30
Lok Sabha Assembly Election 2019: बीते कुछ दिनों से संयुक्त विपक्ष की कोशिशों में मायावती और ममता बनर्जी सबसे तेजी से उभर रही हैं।

फाइल फोटो
नई दिल्ली, 22 अगस्तः एक बार संसद में अपने भाषण के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के तत्कालीन सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मजाकिया लहजे में कहा था कि सबके मन में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा है। उन्होंने कहा, "मेरे मन में हैं, मुलायम सिंह यादव के मन में है और मायावती के मन में भी है।" इसमें से लालू और मुलायम से रेस बाहर हो गए लेकिन बीते कुछ महीनों में ऐसा लगने लगा था कि लालू के कथन का आखिरी हिस्सा सही साबित हो सकता है।
क्योंकि जिस तरह से एक बार फिर से राष्ट्रीय राजनीति में मायावती का उदय हुआ और खासकर इससे भी बड़ा फैक्टर ये कि जिस तरह की राजनैतिक परिस्थितियां बनीं- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हराने के लिए विपक्ष के एकजुट होने की कोशिश, एकजुट विपक्ष में एक मजबूत नेता की जरूरत, जिसकी छवि कड़ाई से काम कराने की हो, ताकि नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा हो पाए, बीजेपी के सवर्ण और हिन्दू राजनीति के चेहरे का तोड़, मायावती का दलित और महिला होना, सब मिलकर एक पुंज तैयार हो रहा था, जिसमें मायावती को अगली प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखने की कोशिश की जा रही थी।
हालिया दिनों में जिस तरह से मायावती ने कनार्टक में केवल एक सीट जीतने के बाद भी उसे मंत्री बनवाने में सफल रही हैं, जबकि 76 सीटें जीमने वाली बीजेपी के दिग्गज नेता मंत्री बनने के लिए नाक-मुंह फुलाए रहे। फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को अपनी शर्तों पर गठबंधन के लिए झुकाने में सफल रहीं। उनकी ओर कई सुइयां मुड़ रही थीं।
इसी बीच तृणमूल कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं और नेताओं ने यह हवा उड़ाई कि ममता बनर्जी भी पीएम पद की रेस में हैं। जिस तरह से बीजेपी का इस बार का चुनाव फोकस का केंद्र पश्चिम बंगाल बना हुआ है, वहां बीजेपी को परास्त करने के लिए ममता को मजबूत करना होगा, वरना लोकसभा में जनता उसी करवट बैठती है जिसकी गाड़ी मजबूत होती है। ऐसे में ममता की दावेदारी भी कमजोर नहीं थी।
लेकिन इसी बीच एक हवा उड़ी कि इस बार रायबरेली से चुनाव पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी नहीं, उनकी बेटी प्रियंका गांधी लड़ेंगी। इसे महज हवा की तरह नहीं देखना चाहिए। क्योंकि 18 अगस्त को आए India Today-Karvy Insights Mood of the Nation (MOTN) सर्वे में इस बात पर मुहर लगते दिख रही है।
असल में कांग्रेस सत्ता की पुरानी खिलाड़ी है। कांग्रेस महागठबंधन और खरी-खरी बोलने वाली मायावती और ममता बनर्जी दोनों को ही जानती है। पार्टी यह भी अच्छी तरह से जानती है कि ये दोनों ही नेता अगर 2019 में संयुक्त विपक्ष राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को हराने में सफल होती है तो कई अहम पदों की मांग कर सकती हैं। ऐसे में कांग्रेस अगर राहुल गांधी के ऊपर प्रियंका गांधी को तरजीह देती है तो खुले तौर पर उनका विरोध कर पाना सबके लिए असहज होगा।
कांग्रेस की आंतरिक स्थितियों में प्रियंका गांधी बिना शर्त स्वीकार्य हैं। क्योंकि कई मौकों पर कांग्रेस कार्यकर्ता पोस्टर व अन्य माध्यमों से प्रियंका गांधी को कांग्रेस की कमान देने की मांग करते रहे हैं। हालांकि आलाकमान की बात करें तो किसी को भी प्रियंका के नाम पर आपत्ति नहीं होगी। कार्यकर्ताओं में भी किसी अन्य दल के हाथों में पीएम पद जाने से कहीं अच्छा यही विकल्प बेहतर लगेगा। सोशल मीडिया में भी कई बार प्रियंका में इंदिरा गांधी का अक्स दिखने की बातें होती रहती हैं।
प्रियंका के लिए बड़ी बात यह भी कि खुद बीजेपी भी राहुल के विरोध के चक्कर में प्रियंका को काबिल बताती है। ऐसे में प्रियंका के पास नैतिक आधार कई हैं। फिर माया-ममता का महिला होने का वीटो पावर भी प्रियंका के सामने निरर्थक हो जाता है।
इसमें एक बड़ी अपडेट ये है कि इंडिया टुडे-कर्वी इंसाइट्स ने जुलाई महीने में मूड ऑफ दी नेशन यानी कि देश का मंतव्य नाम का सर्वे कराया है। इसमें संयुक्त विपक्ष में सबसे मजबूत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प, जैसा भी एक कॉलम था। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि मायावती को महज दो फीसदी लोगों ने ही पीएम मोदी का विकल्प बताया। जबकि प्रियंका गांधी को छह फीसदी लोगों ने पीएम मोदी का विकल्प बताया। ममता बनर्जी का नाम तक इस पोल में शामिल नहीं हो पाया।
ऐसे में अगर कांग्रेस प्रियंका गांधी को अर्से से प्रियंका की बांट जोह रही भारतीय राजनीति में ले आती है और रायबरेली प्रियंका चुनाव जीतने में सफल होती हैं, तो निश्चित तौर पर समीकरण कुछ और ही बनेंगे।
