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वजन कम करने के लिए एथलेटिक्स से जुड़े नीरज बने ओलंपिक चैम्पियन

By भाषा | Updated: August 7, 2021 20:16 IST

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... फिलेम दीपक सिंह ...

नयी दिल्ली, सात अगस्त यह सुनने में भले ही परी कथा की तरह लगे की वजन कम करने के उद्देश्य से खेलों से जुड़ने वाला बच्चा आगे चल कर एथलेटिक्स में देश का पहला स्वर्ण पदक विजेता बन जाये लेकिन भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने इसे सच कर दिखाया।

हरियाणा के खांद्रा गांव के एक किसान के बेटे 23 वर्षीय नीरज ने तोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक के फाइनल में अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर भाला फेंककर दुनिया को स्तब्ध कर दिया और भारतीयों को जश्न में डुबा दिया। एथलेटिक्स में पिछले 100 वर्षों से अधिक समय में भारत का यह पहला ओलंपिक पदक है।

खेलों से नीरज के जुड़ाव की शुरुआत हालांकि काफी दिलचस्प तरीके से हुई। संयुक्त परिवार में रहने वाले नीरज बचपन में काफी मोटे थे और परिवार के दबाव में वजन कम करने के लिए वह खेलों से जुड़े।

वह 13 साल की उम्र तक काफी शरारती थे। वह गांव में मधुमक्खियों के छत्ते से छेड़छाड़ करने के साथ भैसों की पूंछ खींचने जैसी शरारत करते थे।

उनके पिता सतीश कुमार चोपड़ा बेटे को अनुशासित करने के लिए कुछ करना चाहते थे। काफी मनाने के बाद नीरज दौड़ने के लिए तैयार हुए जिससे उनका वजन घट सके।

उनके चाचा उन्हें गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम लेकर गये। नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उन्होंने स्टेडियम में कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से प्यार हो गया।

उन्होंने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया और अब वह एथलेटिक्स में देश के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक बन गये हैं।

अनुभवी भाला फेंक खिलाड़ी जयवीर चौधरी ने 2011 में नीरज की प्रतिभा को पहचाना था । नीरज इसके बाद बेहतर  सुविधाओं की तलाश में पंचकूला के ताऊ देवी लाल स्टेडियम में आ गये और 2012 के आखिर में वह अंडर-16 राष्ट्रीय चैंपियन बन गए थे।

उन्हें इस खेल में अगले स्तर पर पहुंचने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत थी जिसमें बेहतर उपकरण और बेहतर आहार की आवश्यकता थी।

ऐसे में उनके संयुक्त किसान परिवार ने उनकी मदद की और 2015 में नीरज राष्ट्रीय शिविर में शामिल हो गए।

वह 2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ एक ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आये और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

  नीरज ने 2017 में सेना से जुड़ने के बाद कहा था, ‘‘हम किसान हैं, परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है और मेरा परिवार बड़ी मुश्किल से मेरा साथ देता आ रहा है। लेकिन अब यह एक राहत की बात है कि मैं अपने प्रशिक्षण को जारी रखने के अलावा अपने परिवार का आर्थिक रूप से समर्थन करने में सक्षम हूं।’’

वित्तीय परेशानी दूर होने के बाद नीरज ने 2017 एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल किया है और इसके बाद 2018 में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे।  वह 2018 अर्जुन पुरस्कार विजेता बने।

इसके अगले साल (2019) उन्हें दाहिनी कोहनी की आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी करवानी पड़ी,  जिसने उन्हें लगभग एक साल तक खेलों तक दूर रखा। इसके बाद उन सवाल उठने लगे थे लेकिन उन्होंने मजबूती से वापसी कर सबको चौका दिया।

कोविड-19 महामारी के दौरान लागू प्रतिबंधों के कारण उन्हें अभ्यास करने में परेशानी हुई और वह ओलंपिक से पहले कई अहम वैश्विक टूर्नामेंटों में हिस्सा नहीं ले पाये थे। उन्होंने हालांकि अपने सपने को पूरा करने के लिए इन रुकावटों को आड़े नहीं आने दिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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