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जिमनास्ट की तरह लचीला शरीर और हाथों की तेज गति नीरज की सफलता का राज: राष्ट्रीय कोच नायर

By भाषा | Updated: August 8, 2021 17:20 IST

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...फिलेम दीपक सिंह...

नयी दिल्ली, आठ अगस्त राष्ट्रीय कोच राधाकृष्ण नायर को भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा की प्रतिभा पर पूरा विश्वास था जबकि वह राष्ट्रीय खेलों में पांचवें स्थान पर रहे थे और इसके बावजूद उन्होंने 17 साल की उम्र में राष्ट्रीय शिविर के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी।

इस शिविर में बायोमैकेनिक्स विशेषज्ञ डॉ. क्लॉस बार्टोनीट्ज की देखरेख में नीरज के खेल में काफी सुधार आया।

हरियाणा के 23 साल के नीरज शनिवार को पिछले 13 वर्षों में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले देश के पहले खिलाड़ी बने।

नायर ने उस समय को याद किया जब वह चोपड़ा युवा खिलाड़ी के तौर पर 2015 के राष्ट्रीय खेलों के दौरान पांचवें स्थान पर रहे लेकिन उन्होंने अपने कौशल से प्रभावित किया था।

राष्ट्रीय शिविर के लिए पांचवें स्थान के खिलाड़ी की सिफारिश करना मुश्किल था लेकिन विश्व एथलेटिक्स ‘स्तर -5’ के अनुभवी कोच नायर ने ऐसा किया और चोपड़ा के उन्हें सही साबित करते हुए इतिहास रच दिया।

नायर ने पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैंने उसे केरल में 2015 के राष्ट्रीय खेलों के दौरान देखा था। उसकी मांसपेशियों में बहुत लचीलापन था और उसका शरीर जिमनास्ट की तरह है। उसकी भाला फेंकने की गति काफी तेज थी।’’

उन्होंने बताया, ‘‘ उनकी तकनीक उस समय उतनी अच्छी नहीं थी लेकिन बायो-मैकेनिक्स विशेषज्ञ बार्टोनीट्ज ने उनकी तकनीक में काफी बदलाव किए हैं और गैरी कैल्वर्ट (पूर्व कोच) ने भी चोपड़ा के साथ काफी काम किया है।’’

चोपड़ा इस समय  पानीपत के शिवाजी स्टेडियम से पंचकुला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में अभ्यास करने आये थे।

नायर ने तब भारतीय एथलेटिक्स महासंघ के योजना आयोग के अध्यक्ष ललित भनोट से बात की और 73.45 मीटर के थ्रो के साथ पांचवें स्थान पर रहने वाले चोपड़ा को एनआईएस पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में ले गए।

नायर ने कहा, ‘‘हम राष्ट्रीय शिविर में शामिल करने के लिए शीर्ष तीन खिलाड़ियों पर विचार करते थे। नीरज फाइनल में पांचवें स्थान पर था, लेकिन मैंने जो देखा, उससे मुझे पता था कि वह दो साल में 80 मीटर से दूर भाला फेंकेगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने उन्हें राष्ट्रीय शिविर के लिए सिफारिश की और चोपड़ा शामिल हो गए।’’

नायर की भविष्यवाणी जल्द ही सच हो गयी और उस वर्ष के अंत में ही, चोपड़ा ने पटियाला में भारतीय विश्वविद्यालय चैंपियनशिप के दौरान 81.04 मीटर के थ्रो के साथ 80 मीटर का आंकड़ा पार कर लिया।

राष्ट्रीय शिविर का हिस्सा बनने के बाद चोपड़ा ने फरवरी 2016 में गुवाहाटी में 82.23 मीटर के थ्रो के साथ दक्षिण एशियाई खेलों में जीत हासिल करते हुए अपने प्रदर्शन में सुधार जारी रखा।

ऑस्ट्रेलियाई कोच गैरी कैल्वर्ट के आने के बाद चोपड़ा ने जुलाई 2016 में पोलैंड में 86.48 मीटर के बड़े थ्रो के साथ जूनियर विश्व चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रच दिया। उनका यह जूनियर विश्व रिकॉड अब भी कायम है।

  नायर ने कहा कि 2019 में बार्टोनीट्ज के साथ काम करने के चोपड़ा के अनुरोध को एएफआई (भारतीय एथलेटिक्स संघ) द्वारा स्वीकार किया जाना एक सही निर्णय था और इसने उन्हें विश्व विजेता खिलाड़ी बनाने में अहम योगदान दिया।

उन्होंने कहा,  ‘थ्रो (फ्रेंकने)’ करने वाली स्पर्धाओं में बायो-मैकेनिक्स दिमाग की तरह है। अगर एथलीट बायो-मैकेनिक्स विशेषज्ञ के बिना प्रशिक्षण लेते हैं तो चोटिल हो सकते हैं। एक बायो-मैकेनिक्स विशेषज्ञ एक गलत तकनीक का पता लगा सकता है और इसे ठीक कर सकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वह सही निर्णय था और अब हम इसका नतीजा देख रहे हैं।’’

उन्होंने बताया कि चोपड़ा ने भाला फेंक के राष्ट्रीय को कोच उवे हॉन की जगह  बार्टोनीट्ज के साथ काम करने को चुना।

उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारा चुनाव नहीं था। नीरज उवे हॉन की प्रशिक्षण विधियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा था। 2018 एशियाई खेलों के बाद, नीरज ने कहा कि वह हॉन के साथ प्रशिक्षण नहीं ले पाएंगे। फिर हमने डॉ क्लॉस बार्टोनीट्ज से उनके साथ काम करने का अनुरोध किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हॉन खराब कोच है, लेकिन प्रशिक्षण एक व्यक्तिगत चीज है। एक व्यक्ति एक कोच से प्रशिक्षण लेने में संतुष्ट नहीं हो सकता है लेकिन उसे दूसरे कोच का तरीका पसंद आ सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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